सरकार और ट्रक आॅपरेटर्स के बीच पिसते किसान-बागवान

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प्रशांत प्रताप सेहटा।। आॅल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट यूनियन अपनी मांगों को लेकर कांग्रेस की अपील पर 20 जुलाई से देशव्यापी चक्का जाम व अनिश्चितकालीन हडताल पर है। आंदोलनकारी मांगे पूरी न होने पर उग्र आंदोलन होने की संभावनाओं से भी इंकार नहीं कर रहे। कई जगहों से ट्रकों के साथ आगजनी और ड्राईवरों के साथ मारपीट की घटनाएं भी सामने आ रही है। लेकिन हैरत है कि इस बारे में न तो मीडिया में कोई शोरगुल मचा है और न ही किसी अखबार के पन्ने पर मोटे अक्षरो में लिखी खबर दिखाई दे रही है। क्या यह कोई ऐसी घटना है जिसे टीवी पर 30 सेकेंड चलाकर या अखबार में दो काॅलम में छापकर बात खत्म कर दी जाए? यदि सड़कें किसी देश की लाइफलाइन हैं तो उस पर दौड़ने वाले ट्रक के पहिए उस देश के विकास को गति देते है। ऐसे में अगर किसी विकासशील देश के पहिए ही रुक जाएं तो आप समझ सकते हैं उसकी अर्थव्यवस्था कहां जाकर रुकेगी। मैं इस लेख में सिर्फ हिमाचल की अर्थव्यवस्था और यहां के जनजीवन पर हड़ताल के प्रभावों का उल्लेख करूंगा। केवल हिमाचल में ही इस हड़ताल के कारण करीब 80 हज़ार ट्रकों के पहिए थम गए है। इससे न सिर्फ उद्योगों को नुकसान हो रहा है बल्कि किसान बागवानों में भी त्राहि-त्राहि मची हुई है। उद्योगों में तैयार माल बाजारों तक पहुंचने की बजाए फैक्ट्रयों के गोदामों में जमा हो रहा है। कच्चे माल की सप्लाई न होने के कारण फैक्ट्रियों में क्षमता के अनुरूप उत्पादन नहीं हो पा रहा है। दूसरा सबसे बड़ा खतरा प्रदेश के किसान बागवानों के सिर पर मंडराने लगा है। सोलन सिरमौर के इलाकों में सब्जियां खेतों मे तैयार है और मार्केट में बेचने के लिए भेजी जा रही है। वहीं हिमाचल के सेब बहुल इलाकों में भी सेब व नाशपाती का सीज़न रफ़्तार पकडने लगा है। रोजाना फलों की पेटियों से लदे मिनी ट्रक प्रदेश और बाहरी राज्यों की मंडियों की तरफ रवाना हो रहे है। लेकिन कम फसल होने के बावजूद बागवानों को इसके उचित दाम मिल रहे है। वीरवार को शिमला के भट्ठाकुफ़्फर और पराला स्थित फल मडियां बंद रहीं क्योंकि ट्रक न चलने से खरीददरो द्वारा खरीदा गया सारा सेब फल मंडियों में पड़ा सड़ने लगा है। उन्होने हडताल खत्म होने तक फलों की खरीद फरोख्त करने से इनकार कर दिया है। बागवानों को मजबूर होकर सेब परवाणु, चंडीगढ और दिल्ली की फल मंडियों में बेचना पड रहा है। इन मंडियों तक सेब छोटी गाडियों में दोगुना किराया देकर पहुंचाया जा रहा है। वहां मंडियों में ज्यादा सेब पहुंचने पर बागवानों को कम कीमतें मिल रही है। कुछ बागवानों ने अब फल तोडना कुछ दिनों के लिए बंद कर दिया है लेकिन तैयार फलों को ज्यादा दिनों तक पेड पर भी नहीं रखा जा सकता। ऐसे में अगर यह हडताल जल्द खत्म नहीं होती तो किसान बागवानों को इसकी सबसे ज्यादा मार झेलनी पड़ेगी। ट्रक आॅपरेटर्स की हडताल से अब तक अरबों रुपयों का नुकसान हो गया हे। ऐसा नहीं है कि इस हडताल का असर केवल किसान बागवानों और उद्योंगों पर ही हो रहा है। इससे सरकार को भी प्रतिदिन करोडों रुपये का नुकसान हो रहा है। सरकार को टैक्स के तौर पर रोज़ाना मिलने वाले करोडों रूपयों का घाटा हो रहा है। ट्रक आॅपरेटर्स भी काम न करने से नुकसान झेल रहे हैं और इसका सीधा असर देश की अर्थव्यस्था पर देखने को मिलेगा। यदि यह हड़ताल जल्द खत्म न हुई तो रोज़मर्रा की ज़रूरतों का सामान मिलना मुश्किल हो जाएगा। लेकिन इस तरफ सरकार का उदासीन रवैया देश के भीतर गृहयु़द्ध जैसे हालातों की तरफ ले जा रहा है। किसान हित के मुद्दों के लेकर केंद्र की एनडीए सरकार पहले ही फज़ीहत झेल रही है। इधर लोकसभा चुनाव के लिए भी कम ही समय बचा है ऐसे में इस हड़ताल का ज्यादा दिनों तक चलना एनडीए के मिशन रिपीट के सपने को धूल चटा सकता है। (लेखक शिमला के जुब्बल के रहने वाले हैं। बाग़वानी और लेखन में उनकी रुचि है। उनसे prashantsehta89 @ gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)