हर तरफ पेड़ कट रहे हैं तो हिमाचल में वन क्षेत्र कैसे बढ़ रहा है?

इन हिमाचल डेस्क।। फरवरी के दूसरे हफ्ते में इंडियन स्टेट ऑफ़ फॉरेस्ट-2017 रिपोर्ट आई, जिसपर बनी खबरें खूब शेयर की गईं। इसमें सैटलाइट सर्वे से जुटाई गई जानकारी के आधार पर दावा किया गया कि हिमाचल प्रदेश में वन क्षेत्र 393 वर्ग किलोमीटर बढ़ गया है। हिमाचल के लोग, जो हिमाचल की हर छोटी-बड़ी उपलब्धि पर उत्साहित होते हैं, इस रिपोर्ट पर भी खुश हुए और उन्होंने धड़ाधड़ खबरें शेयर कीं मानो यह गर्व का विषय हो।

गर्व होना भी चाहिए। लेकिन खुश होने की जल्दी में हम उन खबरों को कैसे भूल जाते हैं, जो आए दिन हिमाचल के अखबारों पर छपती हैं। कहीं पर देवदार के पेड़ साफ करके सेब के पौधे लगा दिए गए हैं, कहीं पर खैर की लकड़ी के ट्रक पकड़े जाते हैं, कहीं पर हजारों पेड़ों का कटान हो जाता है तो कहीं पर वनरक्षक संदिग्ध हालात में मृत पाया जाता है। चारों तरफ हिमाचल से इतनी ज्यादा लकड़ी कट रही है तो वन क्षेत्र बढ़ा या घटा? और वन क्षेत्र मानो बढ़ भी गया, जंगलों में पेड़ों का घनत्व बढ़ा या घटा?

सवाल यह है कि मान लीजिए पहले एक वर्ग किलोमीटर में 500 पेड़ थे और वन माफिया ने बीच-बीच से 150 पेड़ काट दिए। तो वन क्षेत्र तो उतना ही रहा, पेड़ तो कम हो गए। इसका हिसाब कौन देगा? हिमाचल प्रदेश के विभिन्न हिस्सों पर पेड़ों का अवैध कटान चल रहा है। इसकी तस्दीक हाल ही की कुछ खबरें करती हैं। नैना देवी के जंगल से खैर के 25 हजार पेड़ कटने की खबर आई, मुख्यमंत्री जयराम के गृह जिले में पेड़ों के कटान की खबर आई, शिमला और सिरमौर के जंगलों से पेड़ कट गए। ये खबरें आती हैं, एक दिन छपती हैं, मंत्रियों के बयान आते हैं- माफिया को बख्शा नहीं जाएगा।

मगर सवाल है कि कितने माफिया पकड़े गए, कितनों पर कार्रवाई हुई और मिलीभगत के लिए कितने वन विभाग के कर्मियों पर कार्रवाई हुई? और अगर वन विभाग के कर्मचारी खुद को असुरक्षित महसूस करते हैं तो उन्हें सशक्त करने के लिए क्या इंतजाम किए? कितनों को ट्रेनिंग दी गई, कितनों को बंदूकें दी गईं, कितने वायरलेस सिस्टम दिए गए और उनकी SOS कॉल पर तुरंत कार्रवाई करके बैकअप देने के लिए कितनी यूनिट्स लगाई गई हैं।

एक महीने के अंदर ये कर दिया जाएगा, दो महीनों में वो कर दिया जाएगा, पिछली सरकार जैसी ये सरकार नहीं चलेगी… इस तरह के बयान अखबारों की सुर्खियों के लिए अच्छे हैं। मगर जंगलों की रक्षा बयानवीर बनकर नहीं की जा सकती। ठोस नीतियां बनाकर और उन नीतियों को सही ढंग से लागू करने से जंगल बचेंगें। लोगों की भागीदारी बढ़ाकर जंगल बचेंगे। वन विभाग और पुलिस महकमे के बीच तालमेल बिठाकर जंगल बचेंगे।

वरना सरकारें आएंगी, जाएंगी और वन विभाग के कर्मचारी दबाव में काम करते रहेंगे। उनके सामने दो ऑप्शन होंगे- या तो करप्ट सिस्टम का हिस्सा बनकर खुद भी लाभ उठाएं या फिर सबकुछ नजरअंदाज करके चुपचाप बैठे रहें। क्योंकि कोई नहीं चाहेगा कि वह भी किसी दिन नौकरी के चक्कर में किसी जंगल में पेड़ पर उल्टा टंगा पाया जाए और पुलिस कहे कि उसने आत्महत्या कर ली थी। जब वनरक्षक होशियार सिंह की मौत हुई थी, तब इन हिमाचल ने आर्टिकल छापा था- सिर्फ डंडे के सहारे बहुत बड़े इलाके में जंगलों की रक्षा करते हैं फॉरेस्ट गार्ड. इस आर्टिकल के छपने के बाद तत्कालीन वन मंत्री की तरफ से इन हिमाचल को कानूनी नोटिस भेज दिया गया था। मगर वनरक्षकों की सुरक्षा के लिए कोई ठोस कदम आगे के छह महीनों में नहीं उठाया गया था।

होशियार सिंह (बाएं) और उनकी दादी।

जंगलों को बचाने के लिए क्या किया जाए?
बरहरहाल, हिमाचल के जंगलों को बचाना है तो जनता को ही आगे आना होगा। नीति और कानून निर्माताओं को चेताना होगा कि भाषणों और मीडिया को दी जाने वाली बाइट्स से काम हीं चलेगा। इसलिए आज से हम अपने मंच को हिमाचल प्रदेश के उन युवाओं के लिए खोल रहे हैं, जो अपने आसपास चल रहे अवैध कटान की जानकारी हमें देना चाहते हैं।

हमारा विचार है कि अगर आप इस काम में लगे माफिया और प्रभावशाली लोगों के नाम सबूतों सहित बताना चाहते हैं, वे हमें contact @ inhimachal.in पर ईमेल करें। आपका नाम और पता गुप्त रखा जाएगा और आपके द्वारा मुहैया करवाई गई जानकारी को वेरिफाई करने बाद संबंधित लॉ एन्फोर्समेंट एजेंसी तक पहुंचाकर सार्वजनिक किया जाएगा।

आपके पास कोई और सुझाव हो कि इस विषय में और क्या किया जा सकता है, तो उसे आप contact @ inhimachal.in पर भेज सकते हैं।

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