चिरंजीत परमार।। भारत की स्वतन्त्रता की घोषणा 14 अगस्त 1947 रात के ठीक बारह बजे हुई थी और इसी के साथ भारत एक आज़ाद देश बन गया था। सारे भारत में उस दिन समारोह हुए थे। उस ऐतिहासिक दिन हमारे शहर मंडी में भी एक समारोह हुआ था जो मुझे अच्छी तरह याद है। मेरी उम्र तब आठ साल थी।
आज का मंडी शहर पर इस समारोह के बारे में बताने से पहले मैं अपने उन मित्रों को जो मंडी के निवासी नहीं हैं, मंडी के बारे में कुछ जानकारी देना चाहूँगा. मंडी हिमाचल प्रदेश का एक छोटा शहर है और अब जिला भी है. स्वतन्त्रता से पहले मंडी एक रियासत हुआ करती थी जिस पर उस समय राजा जोगेंद्र सेन राज किया करते थे. स्वतंत्रता के बाद इस रियासत का हिमाचल प्रदेश में विलय कर दिया गया और इस के साथ एक अन्य रियासत सुकेत को मिला कर आज के मंडी जिले कया गठन किया गया.
मंडी उस समय की काफी प्रगतिशील रियासतों में एक थी. यहाँ बिजली थी, दो तीन हाई स्कूल थे, हॉस्पिटल था, टेलीफोन भी थे. उस समय मंडी में हिमाचल के सबसे ज्यादा पढ़े लिखे लोग थे. मंडी के तत्कालीन शासक राजा जोगिन्द्र सेन रियासत के दिनों हमारा परिवार पैलेस (जहां अब सोल्जर बोर्ड तथा फौजी केंटीन है) के स्टाफ क्वार्टरों में रहता था। मेरे स्वर्गीय पिता मियां नेतर सिंह राजा मंडी के निजी स्टाफ में थे. निजी स्टाफ के लगभग सारे कर्मचारी उन स्टाफ क्वार्टरों में रहा करते थे।
उस दिन क्वार्टरों के निवासियों में कुछ विशेष हलचल थी और सब बड़े आपस में यह कह रहे थे की आज रात को आज़ादी आएगी। हमारे साथ वाले क्वार्टर में मिस्त्री शेर सिंह रहते थे। पैलेस के बिजली से जुड़े सारे काम उनके जिम्मे थे। पैलेस के तमाम बिजली के उपकरणों का रख रखाव भी उन्हीं ज़िम्मेदारी थी। इन उपकरणों में दो सिनेमा प्रॉजेक्टर भी थे जिन पर कभी कभी वो हमको कार्टून फिल्मे दिखाया करते थे जो शायद पैलेस में राजकुमार (आज के मंडी के राजा अशोक पाल सेन, जो शाम को अक्सर राजमहल होटल में टीवी देखते रहते हैं) और राजकुमारी के देखने के लिए मंगाई हुई होती थीं। इस कारण मिस्त्री जी (उनको हम इसी नाम से संबोधित किया करते थे, उन दिनों अंकल आंटी का रिवाज अभी नहीं चला था) हम बच्चों में बहुत लोक प्रिय थे।
हम बच्चों को वह ऐतिहासिक क्षण दिखाने वाले मिस्त्री शेरसिंह अपनी धर्मपत्नी जसोदा के साथ आज़ादी का समारोह चौहटे में आयोजित किया जा रहा था। शायद आयोजकों की इच्छा हुई होगी की इस विशेष दिन पर समारोह में लाउड स्पीकर भी लगाया जाए। मेरा अंदाजा है कि उस वक़्त मंडी में एक ही लाउडस्पीकर सिस्टम था और वह भी केवल पैलेस में। इसलिए पैलेस से यह साउंड सिस्टम माँगा गया. पैलेस की और से मिस्त्री जी को यह काम सौंपा गया और उन्होंने साउंड सिस्टम तैयार करना शुरू किया। मिस्त्री जी के मन में अचानक यह विचार यह आया कि क्यों न बच्चों को भी आज़ादी आने का यह जश्न दिखाया जाये और उन्होंने मेरी ही उम्र की अपनी बेटी चंद्रा, भतीजे रूप सिंह और मुझे भी साथ चलने को कहा। हम तीनों बहुत ही प्रसन्न थे।
मंडी के वर्तमान राजा श्री अशोक पाल सेन समारोह के लिए चौहटे की भूतनाथ वाली साइड पर एक मंच बनाया गया था जिस पर दरियाँ बिछायी गई थी। मंच के एक कोने पर मिस्त्री जी ने अपना साउंड सिस्टम सेट किया और लाउड स्पीकर भी लगा दिया। स्टेज पर ही एक छोटा मेज़ रखा गया जिस पर एक रेडियो सैट लगा दिया गया। फिर इस रेडियो के आगे माइक्रोफोन रख दिया गया और इस के साथ ही रेडियो में चल रहा प्रसारण लाउड स्पीकर में आने लगा। मंच के आगे कुछ दरियाँ बिछा दी गई थीं जिस पर लोग आ कर बैठने शुरू हो गए थे। क्योंकि हम तीनों मिस्त्री जी के साथ थे जो अपने लाउडस्पीकरों के कारण उस समारोह के बहुत महत्त्वपूर्ण व्यक्ति थे, इसलिए हम तीनों को को भी वी आई पी ट्रीटमेंट मिला। हम तीनो को आम पब्लिक के साथ नीचे दरियों के बजाय स्टेज पर बिठाया गया, हालांकि बैठे हम वहाँ भी नीचे ही थे।
उस समय तो मेरी समझ में कुछ नहीं आया था पर अब में समझ सकता हूँ। रेडियो पर शायद कमेंटरी किस्म का प्रोग्राम आ रहा था। स्वतन्त्रता की घोषणा रात को बारह बजे दिल्ली में होनी थी। दिल्ली में चल रहे समारोह की जानकारी वहाँ उपस्थित जन समूह को रेडियो के माध्यम से दी जा रही थी। फिर अचानक जनसमूह में जोश आ गया और लोग खुशी के मारे झूम उठे और नारे लगाने लग गए। ध्वजारोहण भी हुआ था। मुझे याद नहीं कि मंडी में उस रात झंडा किसने फहराया था. शायद स्वामी पूर्णानन्द ने यह काम किया था.
उस क्षण शायद दिल्ली में भारत के आज़ाद होने की घोषणा हुई होगी। चौहटे के कोर्ट वाले सिरे पर पटाखे छोड़े जाने लगे। 5-6 हॉट एयर बैलून, जिन्हें बच्चे उस वक़्त “पेड़ू” कहा करते थे, भी छोड़े गए। फिर आया हम लोगों के लिए सबसे बढ़िया क्षण। बड़ी बड़ी परातों में गरम गरम हलुआ आया और लोगों में बांटा जाने लगा। आज़ादी क्या होती है इसकी तो हमको समझ नहीं थी, पर उस दिन के हलुए का स्वाद आजतक भी नहीं भूला है। क्यों कि हम मिस्त्री जी के साथ थे और स्टेज पर थे, इसलिए हमको सामान्य दर्शकों से ज्यादा, दोनों हाथों की हथेलियाँ भर के हलुआ मिला और हमने पेट भर के खाया। तो ऐसे हुआ था मंडी शहर में भारत आज़ाद।
(लेखक चिरंजीत परमार हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले से हैं जाने-माने फ्रूट साइंटिस्ट हैं। पूरी दुनिया में विभिन्न प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय उनकी सेवाएं ले चुके हैं। यह लेख उनकी फेसबुक टाइमलाइन और ब्लॉग से साभार लिया गया है।)