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सिर्फ डंडे के सहारे बहुत बड़े इलाके में जंगलों की रक्षा करते हैं फॉरेस्ट गार्ड

शिमला।। मंडी में लापता हुए फॉरेस्ट गार्ड का शव पेट से टंगा मिलने के मामले में पुलिस ने पहली नजर में हत्या का मामला मानकर छानबीन शुरू की है। शक है कि जंगल से पेड़ काटने वालों ने ही गार्ड को बेरहमी से मारा और फिर उसके शव को देवदार में टहनियों के बीच टांग दिया। यह घटना दिखाती है कि हमारे वनरक्षक किन हालात में काम करने को मजबूर हैं और उनके पास अपनी सुरक्षा के लिए न तो हथियार हैं और न ही कोई ऐसा बैकअप कि वे निडर होकर अपना काम कर सकें। गौरतलब है कि हिमाचल प्रदेश के वन मंत्री ठाकुर सिंह भरमौरी हैं। वही मंत्री, जो आए दिन कार्यक्रमों में शिरकत करते दिखते हैं और उनमें गाने गाते और नाचते नजर आते हैं। नाचने-गाने में कोई बुराई नहीं मगर उन्हें समझना चाहिए कि वह कला एवं संस्कृति मंत्री नहीं, बल्कि वन मंत्री हैं। दरअसल उन्होंने बातों के अलावा विभाग में पॉलिस ऐंड प्लानिंग के मामले क्या अभूतपूर्व किया है, अब तक नजर नहीं आया।

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पिछले साल जब ऊना में वन माफिया ने वन विभाग की टीम पर हमला किया था, उस वक्त मामला हिमाचल प्रदेश विधानसभा में भी गूंजा था। तब वन मंत्री ठाकुर सिंह भरमौरी ने कहा था कि जो बीट्स संवेदनशील हैं यानी जहां पर खतरा ज्यादा है, वहां पर कर्मचारियों को हथियार मुहैया करवाए जाएंगे। एक साल से ज्यादा वक्त हो गया मगर आज तक कोई नियम नहीं बना। हथियार रखने या गोली चलाने को लेकर कोई नियम या कानून नहीं बना। साफ है, यह घोषणा हवा-हवाई साबित हुई और अगर इस पर काम हो रहा है तो फाइलें कहां लटकी हैं और कब तक लटकी रहेगी। प्रेस कॉन्फ्रेंसों में भी मंत्री ने कहा था कि कर्मचारियों को असलहा दिया जाएगा। मगरवे भूल गए क्योंकि शायद उनकी रुचि वनों में नहीं, गानों में है। वरना अच्छा नेता और मंत्री वह है जो अपने विभाग को लेकर बेचैन रहे। फाइल के पीछे पड़ जाए और काम पूरा करवाकर दम ले। वह पुलिस और प्रशासन को भी कसे कि मेरे विभाग के कर्मचारियों का साथ देने में कोताही न बरती जाए और वन माफिया की कमर तोड़ी जाए। मगर अफसोस, ऐसा देखने को नहीं मिला।

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बहुत मुश्किल हालात में काम करते हैं वनरक्षक
वनरक्षकों को अकेले ही बहुत बड़े इलाके की निगरानी करनी होती है और वह भी डंडे के सहारे। वन माफिया छोड़िए, कोई जंगली जानवर हमला कर दे तो उससे बचने के लिए धमाका करने वाली कोई खिलौना बंदूक तक नहीं। प्रदेश में 1700 के लगभग फॉरेस्ट बीट्स हैं और इनमें से एक चौथाई खाली हैं। ऐसे में इनमें ड्यूटी करने का काम भी बगल की किसी बीट को दे दिया जाता है। हिमाचल में ज्यादातर जंगल पहाड़ों में हैं। ऐसे में पैदल ही वनरक्षकों को अपने नॉलेज के सहारे चलना होता है। आज के इस युग में कोई जीपीएस डिवाइस तक नहीं दिया जाता (सिर्फ ब्लॉक लेवल पर उपलब्ध है, BO से लिया जा सकता है), आत्मरक्षा के लिए हथियार तो दूर बात है।

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वनरक्षकों के लिए हालात वहां मुश्किल हो जाते हैं जहां पर दूसरे राज्यों से सीमाएं लगती हैं। वहां तस्कर ज्यादा सक्रिय हैं। इन हालात में बेचारे वनरक्षकों को जबरदस्त दबाव के बीच काम करना पड़ता है। अकेले जंगल कोई मारकर कहां फेंक दे, पता ही नहीं चलेगा। होशियार के साथ भी ऐसा ही तो हुआ। कितने दिन लोग ढूंढते रहे मगर सुराग नहीं मिला। आखिरकार लाश पेड़ पर टंगी हुई मिली। दरअसल वनरक्षक अकेले कुछ नहीं कर सकते। विभाग को फ्री हैंड देना चाहिए और पुलिस का बैकअप होना चाहिए। राजनीतिक संरक्षण न मिले और पुलिस तुरंत कार्रवाई करे वन माफिया किसी पेड़ पर कुल्हाड़ी चलाने से पहले 100 बार सोचेगा और किसी की जान लेने से पहले 1000 बार। ऐसे में इस बार प्रदेश के पूरे सिस्टम पर जिम्मेदारी है जनता के बीच में विश्वास और माफिया के मन में दहशत पैदा करने की।

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मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक हिमाचल प्रदेश के वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं कि कर्मियों को हथियार देने की प्रक्रिया चल रही है। मगर  अभी तक विभाग के पास हथियारों के रखरखाव और आवंटन को लेकर कोई सिस्टम नहीं है। अब पता नहीं कब बनेगा इस बारे मे नियम और कब सरकारें होश में आकर वन माफिया पर नकेल कसेगा। हिमाचल वनों की वजह से ही हिमाचल है। वन नहीं रहेंगे तो सूखे पहाड़ों की क्या शोभा होगी? खैर, उम्मीद करें भी तो किससे। लोगों ने राजनेताओं के संरक्षण से देवदार के जंगल काटकर सेब के बागीचे लगा लिए हैं और सरकार भी अवैध कब्जों को नियमित करने को लेकर कानून लाने में जुटी रहती है। ऐसे में वनरक्षक बेचारे निहत्थे किस-किस से लड़ेंगे।

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