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गोट फार्मिंग को बिज़नस स्टार्टअप की तरह अपनाकर कमाएं लाखों

आशीष नड्डा।। भारत में पारम्परिक बकरी पालन सदियों से किया जा रहा है। देश के अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग जातियां-जनजातियां भी पेशेवर तरीके से बकरी और भेड़ पालन करती रही हैं। इनमें मुख्यत: गड़रिया, पाल,बघेल,गाडऱी और गद्दी प्रमुख हैं। हिमाचल में प्रदेश में बड़े स्तर पर हालांकि गद्दी जनजाति भेड़ बकरी पालन बड़े स्तर पर करती है। प्रदेश में छोटे स्तर पर भी ग्रामीण आंचलों में लोग बकरियां और भेड़े पालते है।

दुनिया के अन्य देशों में भी बकरी और भेड़ पालने का रिवाज है। ऑस्ट्रेलिया और अन्य पाश्चात्य देशों में भेड़ और बकरी पालन अब पारंपरिक तरीकों से हटकर पेशेवर रूप में किया जा रहा है। लेकिन, भारत और हिमाचल में में अभी यह पेशा व्यावसायिक रूप नहीं ले पाया है। बकरी या भेड़ साल में दो बार और दो या दो से अधिक बच्चे देती हैं। इसका दूध,मांस और खाल भी उपयोगी है। यह बाजार में ऊंचे दाम पर बिकता है। बाजार में बकरी के मांस की लगातार मांग बढ़ रही है। भेड़ की ऊन की इतनी डिमांड है कि यह पूरी नहीं हो पा रही है।

आज भी अधिकांश ग्रामीण बिना किसी वैज्ञानिक जानकारी के आधार एवं व्यवसाय का आर्थिक विश्लेषण किए बिना बकरी पालन के धंधे में उतरते हैं। कुछ समय बाद इसके परिणाम व्यावसायिक फार्म के आशा के विपरीत होते हैं तो वे इस धंधे को कोसते हुए गोट फार्मस को बंद कर देते हैं। बकरी और भेड़ पालन में सबसे बड़ा नुकसान इनकी बीमारी से होता है। एक ही झटके में बीमारी से तमाम बकरियां या भेड़ मर जाती हैं। इसलिए लोगों को नुकसान होता है। अमूमन अपने प्रतिरक्षा तंत्र से बकरियां तमाम बीमारियों पर नियंत्रण रखती हैं परन्तु जैसे ही वातावरण में किसी प्रकार का परिवर्तन होता है वे अक्सर बीमार पड़ जाती हैं।

स्टार्टअप बिजनेस की तरह ले गोट फार्मिंग को
भेड़ और बकरी पालन को एक व्यवसाय के रूप में लेने की जरूरत है। इसलिए परंपरागत सोच छोडक़र वैज्ञानिक तरीके से भेड़-बकरी पालन को करना चाहिए। प्रत्येक बकरी का टीकाकरण और बीमा जरूरी है। बकरी पालक अमूमन अपने आसपास बाजारों ,मंडियों आदि से बकरी खरीद लेते हैं। यह गलत है। भेड़-बकरी की उन्नतिशील प्रजातियों को पालना चाहिए। जैसे अधिक दूध देने के लिए गाय-भैंस को पाला जाता है। उन्नतशील प्रजातियां तमाम तरह की बीमारियों और संक्रमण से मुक्त होती हैं। ये अधिक दूध,मांस और ऊन देती हैं। इससे ज्यादा फायदा होता है।

व्यावसायिक तरीके से बकरी और भेड़ पालन करने पर एक बकरी पर प्रति वर्ष 5 से 7 हजार रुपए का खर्च आता है। अमूमन एक बकरी का बाजार मूल्य भी इससे कम या लगभग इतना ही रहता है। इसलिए नए व्यवसायी को इसमें लाभ प्राप्त करना मुश्किल लगता है। इसलिए वह इस व्यवसाय को अधर में छोड़ देता है। जैसे अन्य व्यवसायों में कार्यशील पूंजी लगती है उसी तरह इस व्यवसाय में भी एक-दो साल के लिए कार्यशील पूंजी की व्यवस्था कर लेनी चाहिए। हालांकि अन्य व्यवसायों की तुलना में भेड़-बकरी पालन में आहार और अन्य प्रबंधन में बहुत कम धन लगता है।

कैसे अन्य पशुपालन से अलग है गोट फार्मिंग
गोट फार्मिंग की तुलना अन्य पशुपालन जैसे गौ पालन या भैंस पालन से करें तो हमें पहला लाभ ये मिलता है कि इसके लिए गौ या भैंस पालन के मुकाबले काफी कम जगह चाहिए। दूसरी लाभ जितनी जगह में आप 1 भैंस या गाय पाल सकते हैं उतनी जगह में 5-7 बकरियां आराम से पाली जा सकती हैं। अधिकतर नस्ल की बकरियाॅ को गर्मी हो या ठण्ड या बारिश किसी भी वातावरण में ढलने की अद्भुत क्षमता होती है। बकरियां अन्य बडे़ पशुओं के मुकाबले बहुत छोटी होती हैं लेकिन ये परिपक्व बहुत जल्द हो जाती हैं।

बकरी का जीवित तथा मृत्यु के उपरान्त केवल एकमात्र ही उपयोग नहीं है। जहाॅ इसके माॅस का उपयोग लोग खानें में करते हैं वहीं इसके दूध का उपयोग पीने में किया जाता है। बकरी के बालों का उपयोग फाइबर बनाने में तथा खाल का उपयोग विभिन्न प्रकार के वाद्य यंत्र बनाने में किया जाता है। गोट फार्मिंग को बहुत कम पूॅजी में भी शुरु किया जा सकता है। चूॅकि बकरियों के अनेकों नस्ल होती हैं जो साल में 2 बार बच्चे देती हैं और हर बार 2 से 3 बच्चे देती हैं। इसलिए इस व्यापार के जल्द से जल्द बढ़ने की अधिक सम्भानाएं होती हैं।

यदि आप पहले से कोई पशुपालन कर रहे हैं और Goat farming Training in India भी करना चाहते हैं तो आप बकरियों को वही जगह दे सकते हैं, जिस जगह पर आप पहले से पशुपालन कर रहे हैं। गोट फार्मिंग में आपको अपने उत्पादों की मार्केटिंग करने की जरुरत नहीं पड़ती क्योंकि मांग अधिक होने के कारण ग्राहक आपको ढ़ूढते-ढ़ूढते आपके फार्म हाउस तक पहॅुच जाते हैं।

गोट फार्मिंग के लिए उपयुक्त स्थान

जमीन का चुनाव
हमारे देश का हर कोना Goat Farm का व्यवसाय करने के लिए उपयुक्त माना गया है। हमें यह व्यवसाय शुरु करने के लिए अपने घर के आस-पास ही कोई जगह तलाश करनी है, जहाॅ से हम इस व्यवसाय को आसानी से क्रियान्वित कर सकें। इसके अतिरिक्त जमीन का चुनाव करते समय निम्न बातों का ध्यान रखा जाना बेहद आवश्यक
है:

बकरी पालन को क्षेत्र ऐसा हो जहां आस-पास कोई पशु चिकित्सालय हो ताकि आपको टीके व अन्य दवाइयां आसानी से उपलब्ध हो सके न हीं तो आपको सारी दवाइयां और टीके अपने फार्म पर ही रखने पड़ेगें। यातायात की सुविधा का होना जरुरी है ताकि जरुरत पड़ने पर आप अपनी जरुरत की वस्तुएं किसी नजदीकी मार्केट से खरीद सकें तथा अपने फार्म के उत्पादों को आसानी से बाजार में पहॅुचा और बेच सकें।

शुरू में एक 20 बकरी और एक नर बकरा से शुरुआत करना बेहतर है जोकि बजट में भी है और रिस्क भी कम है । इसके लिए आपको 80 x 14 वर्ग फ़ीट का शेड बनाना है जिसमे आप आसानी से 100 बकरी रख सकते हैं , यह विशेषज्ञों द्वारा बताया जाता है की कम से कम एक बकरी को रखने के लिए 10 -12 वर्ग फ़ीट का जगह जरूर रखें।

शेड निर्माणः
गोट फार्मिंग करने के लिए बकरियों के लिए घर या शेड का निर्माण बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य है। लेकिन हमारे देश में अभी तक इस क्रिया को एक महत्वपूर्ण स्थान नहीं दिया जाता क्यांेकि जो लोग छोटे पैमाने पर goat farming करते हैं वे बकरियों के लिए अलग सा घर न बना कर उन्हें अन्य पशुओं के साथ ही ठहरा देते हैं, जिससे उनकी उत्पादकता पर असर स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है। व्यवसायिक रुप से बहुत ही जरुरी हो जाता है कि बकरियों के रहने के लिए एक अलग मानक स्थान तैयार किया जाए और निम्न् बातों का स्पश्ट ध्यान रखा जाए कि:

कामयाबी का उदाहरण- 9 महीने में भेड़ पालन से कमाए 7 लाख
तरीके से चलेंगे तो कामयाबी कदम चूमेगी। मथुरा के एक फर्नीचर व्यवसायी हैं रवींद्र चड्ढा ने परंपरागत पेशे से हटकर भेड़ पालन शुरू किया और नौ माह में साल लाख रुपये कमा लिए। उनका लक्ष् हैय कि अब पांच साल में 72 लाख कमाएं। उन्होंने विधिवित ट्रेनिंग ली और ऊपर जो तरीके बताए हैं, उसी तरह से प्लानिंग के साथ काम किया। आज उनके फार्म को देखने के लिए विदेश से भी लोग आते हैं।

तो देर किस बात की? आप भी संभावनाएं तलाशना शुरू करें। हिमाचल में वैसे भी जयराम सरकार ने इस बजट में भेड़-बकरी पालन के प्रोत्साहन के लिए अलग प्रावधान किया है। जैसे कि सरकार की तरफ से बकरियां देने की बात कही गई है। तो सरकारी योजनाओं का लाभ भी उठाएं, मार्केट को स्टडी करें और आत्मनिर्भर होने की तरफ कदम बढ़ाएं।

(लेखक वर्ल्ड बैंक ग्रुप में एनर्जी पॉलिसी और माइक्रो फाइनैंसिंक एनालिस्ट हैं। उनसे उनसे aashishnadda @gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)

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