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कमाल का हिमाचल: मानसिक रूप से अस्वस्थ बच्चों की हो रही पूजा

इन हिमाचल डेस्क।। हिमाचल प्रदेश भले ही शिक्षा के मामले में देश में सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले राज्यों में है, लेकिन यहां शायद यहां शिक्षा का मतलब साक्षरता ही है। ऐसा इसलिए क्योंकि आज भी कई इलाकों में पढ़े-लिखे लोग भी अंधविश्वास की चपेट में हैं। प्रदेश के विभिन्न इलाकों में कई देवी-देवता हैं, जिनके पुजारी ‘खेल’ आने पर भविष्यवाणियां करते हैं। माना जाता है कि उनके माध्यम से देवी या देवता बोल रहे होते हैं। यह आपकी आस्था का विषय जरूर हो सकता है, मगर साइंस इसके भी कारण बताती है।

सबसे पहले तो आपको यह बताते हैं कि इस बात का जिक्र छिड़ा क्यों। शिमला के ठियोग में एक ही परिवार के तीन बच्चे अजीब हरकतें करते हैं। गरीब परिवार के ये बच्चे पढ़ाई छोड़कर अपने टूटे से घर में बैठे रहते हैं। दो भाई खुद को शिव और विष्णु का अवतार बताते हैं तो उनकी बहन खुद को काली माता का अवतार। हैरानी की बात यह है कि इन बच्चों से मिलने और इनसे अपनी समस्याओं का समाधान चाहने के लिए हिमाचल के विभिन्न हिस्सों से ही नहीं, बल्कि पड़ोसी राज्यों से भी लोग आ रहे हैं।

हर कोई अपनी समस्या का समाधान चाहता है, मगर इन बच्चों की समस्या की फिक्र न तो परिजनों को है और न ही प्रशासन को। मूर्खता ही हद देखें कि इन बच्चों को, जिन्हें खुद इलाज की जरूरत है, उनके कहने पर कई लोग गंभीर बीमारियों की दवाइयां तक छोड़ रहे हैं। और प्रशासन को भी मजबूरी में पुलिस की तैनाती करनी पड़ रही है भीड़ संभालने के लिए, क्योंकि लोग यह मानने को तैयार नहीं है कि इन बच्चों को कोई समस्या है। यानी अंधविश्वास हदें पार कर चुका है। नीचे वीडियो देखें-

वैसे प्रशासन अगर इन बच्चों पर कार्रवाई करे भी तो कैसे? ये बच्चे वैसी ही हरकतें तो कर रहे हैं जैसी हरकतें स्थापित और पुराने देवी-देवताओं के पुजारी करते हैं। हो सकता है कल को इन बच्चों के यहां भी तीन देव पालकियां बन जाएं और बाकयादा ढोल-नंगाड़ों के साथ उनकी यात्राएं निकलें। अब इन बच्चों पर सवाल उठाने का मतलब है हिमाचल के विभिन्न मेलों में दिखने वाले द्यो (देवी-देवता, जिन्हें पालकियों में लाया जाता है) पर भी सवाल उठाना। क्योंकि उन देवताओं के पुजारी भी ऐसे ही तो खेलते हुए पूछ देते हैं। अगर ये बच्चे बीमार हैं तो क्या पूरे हिमाचल में देवी-देवताओं के नाम पर खेलने और पूछ या प्रश्ना देने वाले पुजारी भी बीमार नहीं हैं? यह ऐसा सवाल है जिसके जवाब में हमारी आस्था भारी हो जाती है।

क्या है इन बच्चों की हरकतों का कारण?
जब पूरे देश में चोटी काटे जाने की अफवाह चली थी, तब इन हिमाचल ने बताया था कि हिस्टीरिया क्या होता है और कैसे मानसिक रूप से कमजोर लोग एकसाथ हिस्टीरिया की चपेट में आ जाएं तो उसे मास हिस्टीरिया कहा जाता है(यहां क्लिक करके पढ़ें)। आपने विभिन्न  धर्मों के धार्मिक आयोजनों में देखा होगा कि शुरू में एक महिला या पुरुष उछल-कूद मचाकर यह दिखाता है कि उसके अंदर कोई दैवीय शक्ति आ गई है। कुछ जगहों पर इसे माता आना कहा जाता है और हिमाचल में खेल आना। कई जगहों पर इसे भूत का आना भी कहा जाता है।

कई बार एक व्यक्ति के इस तरह से व्यवहार करने के बाद भीड़ से बहुत से लोग उसी तरह का व्यवहार करने लगते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वे मास हिस्टीरिया की चपेट में आ गए होते हैं। कुछ लोग धार्मिक आधार पर दूसरों को ठगने के लिए मास हिस्टीरिया को हथियार की तरह इस्तेमाल करते हैं।

आपने सुना होगा कि फ्लां जगह पर स्कूल की बच्चियां एक के बाद एक चीखकर बेहोश होने लगीं। कई बार किसी खास जगह पर कुछ लोग अजीब हरकतें करने लगते हैं। इसके बाद लोग अक्सर ओझाओं और तांत्रिकों की मदद लेने लगते हैं मगर उन्हें पता होना चाहिए कि ऐसा करने से समस्या और खराब हो सकती है। मन में डर और गहरा बैठ सकता है। ऐसा ही मामला बिलासपुर में हुआ था और उस वक्त भी In Himachal ने लोगों को वैज्ञानिक ढंग से सोचने के लिए कहा था। (यहां क्लिक करके पढ़ें)

सामाजिक और मनोविज्ञान में इसे ग्रुप हिस्टीरिया या सामूहिक उन्माद कहते हैं। इसमें बहुत सारे लोग एक साथ भ्रम के शिकार हो जाते हैं। अफवाहों की वजह से होने वाले डर या उत्तेजना की वजह से उनका व्यवहार एक जैसा हो जाता है। दुनिया भर के कई देशों में ऐसे उदाहरण हैं जहां पर कहीं लोगों को लगने लगा कि उनके ऊपर शैतान आ गया है तो कहीं लोगों को लगने लगा कि प्रभु की कृपा उनके ऊपर हो गई है। ऐसे उदाहरण पढ़ने के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं। खास बात यह है कि अफवाहें और डर जितना ज्यादा फैलता है, हिस्टीरिया उतना ही बढ़ता जाता है। इन बच्चों के साथ भी वैसा ही हुआ।

इन बच्चों के साथ क्या हुआ है?
साइकोसिस (psychosis) वह डिसऑर्डर है, जिसमें विचार और भावनाएं इतनी हावी हो जाती हैं कि इंसान सच्चाई से दूर होता चला जाता है। साइकोसिस के पीछे कई मानसिक समस्याएं हो सकती हैं। संभव है कि ये बच्चे सिज़ोफ्रेनिया (Schizophrenia) के शिकार हो सकते हैं। यह एक ऐसा मेंटल डिसऑर्डर है, जो किशोरावस्था के दौरान होता है। इसमें भ्रम, कल्पनाओं में कुछ देख लेना, समझने में दिक्कत आदि जैसी समस्याएं आती हैं। वे बॉर्डरलाइन पर्सनैलिटी डिसऑर्डर यानी BPD के जूझ रहे हो सकते हैं, जिसमें व्यवहार अचानक बदलता रहता है।

निश्चित रूप से इन बच्चों ने अपने आसपास किसी को तथाकथित भूत की चपेट में अजीब व्यवहार करते देखा होगा या फिर किसी देवता के पुजारी को खेलते हुए देखा होगा। निजी कारणों या मानसिक अवसाद के कारण इन बच्चों पर भी उस घटना का असर हुआ और वे हिस्टीरिया की चपेट में आ गए। जैसे कि यूट्यूब पर एक वीडिया है, जिसमें बच्चे देवता के पुजारी की तरह खेल का नाटक कर रहे हैं। ये तो जानबूझकर कर रहे हैं लेकिन साइकोसिस के दौरान आप अनजाने में ऐसा ही व्यवहार करने लग जाते हैं और आपको पता भी नहीं होता।

ठियोग के तीन भाई बहन ऊपर के वीडियो वाले बच्चों की तरह व्यवहार क्यों कर रहे हैं, इसका पता तभी चल सकता है जब डॉक्टर और सायकायट्रिस्ट इनकी जांच करें और इलाज शुरू करें। मगर हमारा समाज, जहां पर मानसिक समसम्याओं को भूत-प्रेत और माता आने से जोड़ा जाता है, वह इन्हें मानसिक समस्याएं मानने को ही तैयार नहीं है। कई गांवों में तो ऐसे मानसिक मरीज खुद को अवतार घोषित करके बैठे हैं, लोगों की समस्याओं का निदान करने का दावा करते हैं और पूछ देते हुए यानी सवालों का जवाब देते हुए कहते हैं- आपके ऊपर फ्लाणे ने जादू किया, आपके उस रिश्तेदार ने टोटका किया है।

यानी जिन्हें खुद इलाज और देखभाल की जरूरत है, वे अंधविश्वास का प्रचार प्रसार नहीं कर रहे, बल्कि समाज और परिवारों में शक के बीज बोकर उन्हें बर्बाद भी कर रहे हैं। इसलिए जरूरत है कि देव परंपरा के नाम पर बहुत से लोगों ने जो दुकानें खोली हुई हैं, उन्हें बंद किया जाए। आज बहुत से लोग प्रश्न उठाते हैं कि 21वीं सदी में आस्था अपनी जगह है, मगर वास्तव में ही अगर कोई अवतार है या कोई शक्ति अपने पुजारी के माध्यम से बोलती है, तो वह क्यों नहीं पहले ही समस्याओं के बारे में बता देती। उदाहरण के लिए गुड़िया रेप केस को लेकर एक सवाल बहुत शेयर हुआ था सोशल मीडिया पर- अगर कोई देवी या देवता यह बता दे कि गुड़िया के साथ किसने ऐसी हरकत की थी तो मैं मान लूंगा कि देवता हैं, वरना सब ढोंग है।

साफ है, आस्था और अंधविश्वास में मामूली सा फर्क है। पढ़े-लिखे होने के कारण हमारी जिम्मेदारी बनती है कि अंधविश्वास को फैलने न दिया जाए। क्योंकि भले ही आप आज इससे अछूते हों, कल को आपपर भी इसकी आंच आएगी। प्रशासन को चाहिए इन बच्चों को तुरंत अंधविश्वासी और स्वार्थी लोगों के चंगुल से बचाकर बाहर ले जाए और इलाज शुरू करवाए। वैसे पूरे प्रदेश में ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां मंदिर खोलकर बैठे कुछ मानसिक रोगी (जो खुद को अवतार समझते हैं) दूसरे मानसिक रोगियों (समझा जाता है कि जिनपर भूत-प्रेत है) का इलाज कर रहे हैं। जबकि दोनों को ही डॉक्टरों की जरूरत है।

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