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राजीव बिंदल कैसे और क्यों बनाए गए हिमाचल प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष, जानें

सुरेश चंबयाल।। दर्जन भर नामों की चर्चा मीडिया से लेकर सोशल मीडिया में होने के बाद हिमाचल भाजपा अध्यक्ष का दंगल विधानसभा अध्यक्ष और नाहन से बीजेपी विधायक डॉक्टर राजीव बिंदल के नाम पर मुहर के साथ शांत हो गया। तेजतर्रार बिंदल के नाम की चर्चा कभी मंत्रिमंडल में शामिल किए जाने को लेकर गाहे बगाहे होती रहती थी परन्तु जयराम सरकार में हाशिये पर चल रहे बिंदल यकायक संग़ठन के सुप्रीमो हो जाएंगे, ऐसा क़यास कोई भी नहीं लगा पाया था। शायद ख़ुद डॉक्टर बिंदल भी नहीं।

पूर्व मख्यमंत्री शांता कुमार के शागिर्द रहे राजीव भारद्वाज, पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के करीबी रणधीर शर्मा और वर्तमान मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की टीम से त्रिलोक जम्वाल और महेंद्र धर्माणी को दरकिनार करते हुए राजीव बिंदल का नाम क्यों परवान चढ़ा, इसके कारणों और पटकथा के लिए इतिहास में झाँकना बहुत आवश्यक है। मगर इसके लिए कुछ हद तक वर्तमान की परिस्थितियों को भी अहम भूमिका है।

20 जनवरी को नड्डा बीजेपी के अध्यक्ष बनने जा रहे हैं, अभी वह कार्यकारी अध्यक्ष हैं। जैसे ही संगठन के शीर्ष पद की कमान नड्डा को मिलने की डेट फ़ाइनल हुई, उसके अगले ही दिन बिंदल का नाम हिमाचल प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए चर्चा में आ गया। मानो अपने औपचारिक राज्याभिषेक का दिन तय होते ही नड्डा ने अपने प्रदेश में अपने सेनापति का भी फ़ैसला कर लिया। ये वह फ़ैसला था जो लंबे समय से लटका हुआ था या फिर लटकाया गया था।

यह मात्र संयोग नहीं है कि नड्डा के अध्यक्ष बनाए जाने के समय अचानक बिंदल का नाम प्रदेश अध्यक्ष के लिए तय हो गया। बल्कि यह इतिहास का मात्र एक दोहराव है और बिंदल की काबिलियत की भी इसमें भूमिका है। इस बात में किसी भी राजनीतिक पंडित को संदेह में नहीं है कि बिंदल को प्रदेश अध्यक्ष की कमान जेपी नड्डा यानी बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की विशेष पावर से ही मिली है।

नड्डा-बिंदल संबंध
20 साल पहले बिंदल को सोलन उपचुनाव में टिकट दिलवाने में भी नड्डा की अहम भूमिका रही थी। उस जमाने के युवा तुर्क पूर्व मंत्री शांता कुमार के कट्टर समर्थक महेंद्र नाथ सोफट का टिकट कट गया था और सोलन नगर परिषद के तत्कालीन अध्यक्ष डॉक्टर बिंदल को मिला था। ये तब हुआ था, जब सोफत ने कोर्ट में केस जीतकर सोलन में हुए चुनाव को रद्द करवाया था और फिर उपचुनाव होने जा रहा था।

क़ानूनी लड़ाई जीतने वाले सोफत ही टिकट से महरूम कर दिए गए थे। पूर्व सगठन महामंत्री महेंद्र पांडे, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष एवं सांसद सुरेश चंदेल और तत्कालीन केंद्रीय मंत्री शांता कुमार जहाँ सोफत के नाम की पैरवी कर रहे थे, वहीं तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल, स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा और प्रदेश के प्रभारी व वर्तमान प्रधानमंत्री मोदी डॉक्टर बिंदल के लिए डटे थे। अंत में जीत बिंदल की हुई और बिंदल ने उसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा। 20 साल बाद नड्डा ने बिंदल को एकबार फिर बड़े ओहदे पर बिठा दिया।

नड्डा के बिंदल पर विश्वास जताने के और भी बहुत कारण हैं। वर्तमान हालात में जिन नेताओं के नाम अध्यक्ष पद के लिए चल रहे थे, वो चुनाव प्रबंधन और संगठन के मैनेजमेंट में कहीं भी बिंदल के आसपास नहीं ठहरते।

झारखंड, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में हारने के बाद भाजपा को पहला सबक यह मिला कि जब-जब मुख्यमंत्री का राज्य के संगठन पर कंट्रोल हो यानी कि सीएम का ही करीबी अध्यक्ष हो तो यह पार्टी के लिए ठीक नहीं होता। ऐसा इसलिए क्योंकि सरकार भी उसी की, संगठन भी उसी का। तो कैडर को अगर असंतोष हो तो दोनों जगह उसकी सुनवाई नहीं होती और यही असंतोष चुनावों में महँगा पड़ जाता है। जनता के साथ-साथ अपने लोगों का असंतोष ही है जो सरकारों को सत्ता से हटा देता है।

इसलिए ज़रूरी होता है कि प्रदेश में संगठन का मुखिया चुस्त-दुरुस्त हो और जिनका अपना वजूद हो। अगर प्रभावी शख़्स संगठन का मुखिया होगा तो वह आम कार्यकर्ता की आवाज सरकार के सामने मुखर होकर रख सकता है। अध्यक्ष ऐसा होना चाहिए जो मुख्यमंत्री की छत्रछाया में संग़ठन को बढ़ाने की जगह अपने वजूद से उसका विस्तार करे। साथ ही उसका काम सरकार की कार्यप्रणाली पर नज़र रखना भी है ताकि केंद्रीय आलाकमान के लिए वह आँख-कान बने। अगर सीएम का ही करीबी अध्यक्ष बन जाएगा तो वह सरकार की कमियों को ऊपर नहीं पहुँचाएगा, जिससे सुधार की गुंजाइश ख़त्म हो जाएगी।

यही सब कुछ ऐसे क्राइटेरिया हैं जिनके आधार पर बीजेपी आलाकमान अपने प्रदेश अध्यक्ष के उम्मीदवारों को तौलकर देखने लगा है। बिंदल इसी कारण त्रिलोक जम्वाल, रणधीर, महेंद्र धर्माणी और राजीव भारद्वाज जैसे नामों पर भारी पड़ गए।

नए अध्यक्ष नड्डा पर होगा अपने राज्य हिमाचल में बीजेपी सरकार रिपीट करवाने का प्रेशर

नड्डा पर ख़ुद को साबित करने की ज़िम्मेदारी
अपनी ही पार्टी की सरकार में एक तरह से पावरलेस चल रहे बिंदल को संगठन शीर्ष के रूप में पावर देकर नड्डा ने यह भी उम्मीद जताई होगी कि अपने प्रदेश में सरकार कम से कम उन कारणों से न हारे, जिन कारणों से हर राज्य में सत्ता हाथ से निकलती जा रही है। नए अध्यक्ष के लिए यह ज़रूरी होगा कि बाक़ी प्रदेश तो जीते ही, अपने गृहराज्य में भी सरकार रिपीट करवाए।

प्रदेश में यह भी देखा जा रहा था कि पार्टी का एक धड़ा मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के सामने धूमल परिवार को चुनौती के रूप में खड़ा करने की कोशिश में जुटा था। ये वो लोग हैं जिन्हें जयराम दौर में ‘सत्ता की मलाई’ नसीब नहीं हो पाई है। उपचुनावों में भी देखा गया कि सरकार से लेकर और संगठन तक के स्तर पर हर जगह जयराम ही जूझ रहे थे। पर यह भी सच है जयराम भी संगठन के मोर्चे में अपने लोगों को रखने की ताक में थे, जैसा कि हर सीएम चाहता है। इसीलिए अध्यक्ष पद के लिए दो-तीन नाम सीएम जयराम के ख़ेमे से ही आगे किए गए ताकि एक पर तो मुहर लग ही जाए। मगर ऐसा हुआ नहीं।

मुख्यमंत्री के ओएसडी महेंद्र धर्माणी का नाम भी आगे चल रहा था

फिर भी बिंदल के आने से अब कम से कम जयराम एक मोर्चे पर राहत ले सकते हैं क्योंकि बिंदल अब प्रोटोकॉल से नहीं बंधे होंगे और अपने अनुभव के आधार पर विपक्ष के हमलों से सरकार के लिए ढाल बन सकते हैं। इससे जयराम को काम करने की स्वतंत्रता ही मिलेगी।

हालाँकि, ऐसा माना जा सकता है कि बिंदल के अध्यक्ष बनने से भाजपा में अब नए ध्रुव का उदय होगा। बिंदल मीडिया के फोकस में भी रहेंगे और मीडिया को मैंनेज करना भी वो अच्छी तरह जानते भी हैं। पहचान की तलाश में भटकता भाजपा का एक वर्ग बिंदल की तरफ आकर्षित होगा और साथ ही वो लोग भी बिंदल के सामने दुखड़ा रोएंगे, जिनकी अपनी ही सरकार में पूछ नहीं हो पा रही।

अगले चुनावों के दौरान टिकट आवंटन सबसे महत्वपूर्ण काम होगा और उसमें प्रदेश अध्यक्ष की ज़िम्मेदारी अहम होती है। इसलिए हर ख़ेमा चाहता है कि अध्यक्ष उनका आदमी बने। ऐसे में बिंदल का रोल काफ़ी अहम होने वाला है। साथ ही ऐसा भी नहीं लगता कि बिंदल सरकार की हाँ में हाँ मिलाते रहेंगे और भविष्य में संगठन को लेकर सरकार के अनुसार फ़ैसले लेंगे। वह सरकार के मुखौटा अध्यक्ष नहीं होंगे बल्कि अपनी एक अलग पहचान लेकर चलेंगे। अगले डेढ़ साल में स्पष्ट हो पाएगा कि बिंदल का प्रदेशाध्यक्ष बनना पार्टी के लिए कैसा रहेगा।

(लेखक हिमाचल प्रदेश से जुड़े विभिन्न मसलों पर लिखते रहते हैं। इन दिनों इन हिमाचल के लिए नियमित लेखन कर रहे हैं।)

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