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धर्मशाला में 2019 लोकसभा चुनाव का अजेंडा सेट कर गए मोदी?

आई.एस. ठाकुर।। गुरुवार को धर्मशाला में आयोजित ‘जन आभार रैली’ हिमाचल में बीजेपी की सरकार का एक साल पूरा होने का जश्न ही नहीं था बल्कि अगले साल होने जा रहे लोकसभा चुनावों के लिए भारतीय जनता पार्टी के चुनाव प्रचार अभियान की अनौपचारिक शुरुआत थी।

धर्मशाला में नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पर फिर वैसे ही आक्रामक भाषा इस्तेमाल की, जैसी भाषा वह 2014 में करते थे। लेकिन जिस समय उन्हें अपनी सरकार की उपलब्धियों को गिनाने में व्यस्त होना चाहिए, उस समय उनका विपक्ष के आरोपों की सफाई में समय गंवाना खटकता है। 2014 में पालमपुर में परिवर्तन रैली के दौरान उन्होंने कहा था कि मैं आपके जीवन को रोशनी से भर दूंगा, मैं सेवक की तरह काम करूंगा और 60 सालों के जो अंधेरा फैला है उसे खत्म कर दूंगा।

मगर पांच साल खत्म होने को हैं और प्रधानमंत्री का अपने भाषण में ज्यादा समय विपक्ष पर आरोप लगाने और अपने ऊपर लगे आरोपों की सफाई देने में बिताना दिखाता है कि कहीं न कहीं उन्हें अहसास है कि जो वादे उन्होंने किए थे, उनपर वे पूरी तरह खरे नहीं उतर पाए हैं।

हालांकि ऐसा नहीं है कि नरेंद्र मोदी सरकार हर मोर्चे पर विफल रही है। मगर रफाल विमान के मुद्दे को विपक्ष ने इतने जोर-शोर से उठाया है कि वह यह संदेश देने में कहीं न कहीं कामयाब रही है कि सौदे में कुछ तो गड़बड़ है। भले ही सरकार आश्वस्त हो कि उसने कुछ गलत नहीं किया है, मगर उसकी ऊर्जा रफाल को लेकर बने माहौल में अपना बचाव करने में ज्यादा नष्ट हो रही है।

लेकिन बीजेपी भूल गई है कि पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान जब मोदी देश में घूम रहे थे तो लोगों में उन्हें लेकर जिज्ञासा थी। उन्होंने मोदी के बारे में सुना था मगर वे नहीं जानते थे कि वह कैसे हैं, गुजरात में उन्होंने क्या किया है। गुजरात मॉडल की मीडिया में बहुत चर्चा थी। मगर पिछले पौने पांच सालों में प्रधानमंत्री जिस तरह से हर मौके पर सोशल मीडिया, टीवी और रेडियो पर छाए रहे, उससे लोगों में वह जिज्ञासा खत्म हुई है।

पहले जहां उनके पास दिखाने और गिनाने के लिए कथित गुजरात मॉडल था, अब उनके पास प्रधानमंत्री के तौर पर उसी तरह कोई मॉडल होना चाहिए था। चूंकि 2014 में लोग मोदी के काम और उनके बारे में जानते नहीं थे, तो उन्हें नहीं मालूम था कि किस मॉडल की बात मोदी कर रहे हैं। मगर अब पीएम के तौर पर जनता ने उन्हें लंबे समय तक फॉलो किया है। वह क्या कहते हैं, क्या करते हैं, इस पर नजर रही है। इसलिए इस बार पीएम के तौर पर उनका काम जनता से छिपा नहीं है।

राज्यों के मुद्दे उठाने हों, तब भी नरेंद्र मोदी को सावधान रहना होगा। हिमाचल की ही बात करें तो धर्मशाला का भाषण बहुत से लोगों को पुराना लगेगा क्योंकि उसमें अधिकतर बातें वही हैं जो उन्होंने हिमाचल के हर दौरे में कही हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंच से जिस तरह की बातें की, वो अप्रैल 2014 में ‘परिवर्तन रैलियों’ के दौरान पालमपुर, सुजानपुर और मंडी में दिए गए भाषणों या इसके बाद शिमला, बिलासपुर आदि जगहों पर कही गई बातों से अलग नहीं थीं। धर्मशाला में उनके पास गिनाने को कम, कांग्रेस को सुनाने के लिए ज्यादा था। 2014 में जब वह वोट मांग रहे थे, तब उनके भाषण का जो कॉन्टेंट होता था, 2018 तक अधिकतर वही कॉन्टेंट रिपीट हो रहा है

उदाहरण के लिए वह हर बार हिमाचल प्रभारी होने के दौरान यहां बिताए समय, यहां के खान-पान की बातें करते हैं, फिर कहते हैं कि टूरिजम का विकास होना चाहिए, फिर कहते हैं लाहौल स्पीति के आलू फ्लां जगह खाए जाते हैं, फिर कहेंगे कि फलों का जूस कोका कोला में होना चाहिए और फिर रेल और सड़कों के विकास की बातें करते हैं। साथ ही हिमाचल से बहुत ज्यादा सैनिक होने का जिक्र करना भी वह नहीं भूलते। मगर वह यह गिनाने में नाकाम रहते हैं कि इन चार सालों में इन विषयों पर उन्होंने क्या किया।

वह केंद्र सरकार से राज्य को मिलने वाली मदद बढ़ने की बात तो करते हैं मगर ये आंकड़े किस आधार पर दिए गए हैं, यह स्पष्ट नहीं करते। इसमें कोई शक नहीं कि केंद्र और राज्य में एक ही पार्टी की सरकार हो तो अचानक राज्यों को मिलने वाली आर्थिक मदद बढ़ जाती है। वैसे भी संघीय ढांचे में हिमाचल जैसे छोटे और कम राजस्व वाले प्रदेशों को तो केंद्र सरकारों पर आश्रित तो होना ही पड़ता है।

बाकी उन्होंने अन्य योजनाओं के आंकड़े पेश किए जो हिमाचल के लिए शायद उतनी लाभकारी न हों, जितनी देश के अन्य हिस्सों के लिए हुई हो। धर्मशाला में दिए गए मोदी के भाषण ने यह स्पष्ट कर दिया है कि आने वाले दिनों में जब पार्टी चुनाव के मैदान में उतरेगी तो उसके मुद्दे क्या होंगे और प्रधानमंत्री के भाषण के तेवर क्या रहेंगे। लेकिन अगर वह इसी तरह का भाषण देंगे, ऐसी ही बातें गिनाएंगे तो जनता पर इसका प्रभाव होने की संभावनाएं कम ही हैं। हो सकता है कि संसद सत्र जारी होने के कारण इस रैली के लिए भाषण तैयार करते समय उन्होंने पूरी तैयारी न की हो, मगर आगे उन्हें ख्याल रखना होगा।

बेहतर तो यह होता कि मोदी खुद अपने पुराने (2014 के प्रचार अभियान के दौरान दिए गए) भाषणों में किए गए वादों की सूची निकालते और फिर बारी-बारी से गिनाते कि इस संबंध में उन्होंने और उनकी सरकार ने क्या काम किए हैं। हो सकता है कि सभी वादे पूरे न हुए हों। और सभी वादों को पूरा करना संभव भी नहीं है। लेकिन जितने वादे पूरे हों, उन्हें गिनाना उनके लिए सही रहेगा। वरना ऐसा न हो कि जनता को यही लगे कि वह 2014 के चुनाव से पहले के भाषणों के रिकॉर्डेड टेप को 2019 के चुनावों से पहले दोबारा सुन रही है।

(लेखक हिमाचल से जुड़े विषयों पर लिखते रहते हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)

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