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नूरपुर और जसवां परागपुर: मंत्रियों को अपनों से ही मिल रही चुनौती

मृत्युंजय पुरी, धर्मशाला।। चुनाव आते ही पार्टियों के लिए सबसे बड़ी मुश्किल यह खड़ी हो जाती है कि टिकट चाह रहे अपने कार्यकर्ताओं को कैसे संभावा जाए। जाहिर है, टिकट तो एक को ही मिलता है। फिर होता यह है कि अपने ही कार्यकर्ता नाराज हो जाते हैं और अक्सर हार का कारण भी बन जाते हैं। ऐसी ही परिस्थितियां कांगड़ा जिले के दो मंत्रियों के लिए बनती हुई दिख रही हैं।

जसवां परागपुर और नूरपुर, ये दोनों ऐसी सीटें हैं जहां पर अपने ही भाजपा के लिए चुनौती बने हुए हैं। दोनों सीटों के विधायक इस समय मंत्री हैं और अपने-अपने क्षेत्र में पूरे जोर-शोर से जुटे हुए हैं। इस बार वे और भी ज्यादा ताकत लगा रहे हैं क्योंकि उन्हें खतरा विपक्षी कांग्रेस से नहीं, बल्कि अपनी ही पार्टी के कार्यकर्ताओं से है।

जसवां परागपुर के विधायक बिक्रम ठाकुर इस समय उद्योग मंत्री हैं। अपने क्षेत्र के लिए उन्हें दो नए एसडीएम ऑफिस और दो ब्लॉक ऑफिस खुलवाने में सफलता मिली है। लेकिन  उनके क्षेत्र में संजय पराशर भाजपा के टिकट की दौड़ में हैं। पराशर आरएसएस से जुड़े हैं और कोविड महामारी के समय से क्षेत्र में सक्रिय हैं। उन्होंने निशुल्क दवाएं बांटकर इलाके में अपनी पहचान बनाने की कोशिश की थी।

इसी तरह, वन मंत्री राकेश पठानिया के नूरपुर में रणवीर निक्का चुनाव लड़ने का एलान कर चुके हैं। बीजेपी के नूरपुर संगठनात्मक जिले के महामंत्री रह चुके निक्का ने कहा है कि बीजेपी टिकट नहीं देगी तो वह निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे। दरअसल, उन्होंने 2012 में बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ा था लेकिन जीत नहीं पाए थे। 2017 में उनकी जगह पठानिया को मौका मिला और वह जीत गए फिर बाद में मंत्री भी बन गए।

खास बात यह है कि राजनीतिक विश्लेषकों का यह मानना है कि इन दोनों ही सीटों पर कांग्रेस को मजबूत नहीं कहा जा सकता। लेकिन बीजेपी अगर अपने ही लोगों को संभाव नहीं पाई तो इसका सीधा फायदा कांग्रेस को होगा। वैसे भी, हिमाचल के चुनावों को लेकर यह बात लंबे समय से कही जाती है कि सरकार उसी पार्टी की बनती है, जो अपने नाराज टिकटार्थियों को बेहतर ढंग से संभाल पाती है।

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