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लेख: पहचान न छिपाई जाए तो विक्टिम का बार-बार ‘रेप’ करते हैं लोग

प्रेक्षा शर्मा।। शिमला में एक स्कूल जाने वाली बच्ची के साथ बलात्कार हुआ और उसकी हत्या कर दी गई। ऐसा नहीं कि हमारे देश में यह अपनी तरह का मामला है, ऐसी दर्ज़नों घटनाएं आए दिन देशभर में होती रहती हैं। महिलाओं के साथ जुड़े अपराधों के मामले में हिमाचल बाकी कई राज्यों से बहुत बेहतर है। प्रदेश की राजधानी शिमला में हुए इस वीभत्स कांड के कारण स्थानीय स्तर पर काफी जनाक्रोश है। लोग सरकार और पुलिस के ख़िलाफ़ विरोध कर रहे हैं। जनता के दबाव की एक जीत तो यह है कि इस घटना की जांच CBI को सौंप दी गई है। इसमें कोई शक नहीं कि पुलिस कार्रवाई में चूक हुई है और उसपर खड़े हो रहे सवाल वाजिब हैं। लेकिन इस मामले में जनता की ओर से भी एक गंभीर लापरवाही बरती जा रही है। लोग सोशल मीडिया पर गुड़िया की तस्वीरें साझा कर रहे हैं। उन लोगों की असंवेदनशीलता का स्तर देखिए जो उस बच्ची की नंगी लाश की तस्वीरें बेहिचक लोगों के सामने परोस रहे हैं।

हमारे देश के कानून में बलात्कार पीड़िताओं की पहचान गोपनीय रखने का प्रावधान है। भारतीय दंड संहिता (IPC) के सेक्शन 228 ए में कुछ विशेष अपराधों के शिकार हुए पीड़ितों की पहचान सार्वजनिक न करने का नियम है। बलात्कार भी ऐसा ही एक अपराध है। यह कानून अपने आप हवा में नहीं बनाया गया। ऐसा नहीं कि कानून बनाने वालों ने बिना किसी संदर्भ-प्रसंग के बस शून्य में यह प्रावधान बना दिया। यह कानून उस समाज को ध्यान में रखकर बनाया गया जिसमें आप और हम रहते हैं। एक ऐसा पुरुष प्रधान समाज जहां महिलाओं के सम्मान की परिभाषा भी पुरुषों की सोच और उनके बनाए मापदंडों के मुताबिक तय होती है। और यही कारण है कि बलात्कार की शिकार हुई पीड़िता पर समाज का दबाव बलात्कारी के मुकाबले कहीं ज़्यादा होता है।

पढ़ें: रेप विक्टिम की पहचान जाहिर करने को लेकर क्या कहता है कानून

बलात्कार शायद ऐसा इकलौता अपराध है जहां अपराधी से कहीं ज़्यादा थू-थू पीड़ित की होती है। तभी तो बलात्कार का शिकार होना ‘इज़्ज़त लुटना’ माना जाता है। और कौन सा अपराध है जहां अपराधी की नहीं, बल्कि पीड़ित की इज़्ज़त जाती है? हम जिस समाज में रहते हैं, वहां बलात्कार एक दाग माना जाता है। केवल बलात्कार की शिकार पीड़िता को ही नहीं, उसके पूरे परिवार को अपमान की नज़र से देखा जाता है। विरले ही होंगे जो ऐसी पीड़िताओं के साथ हुए हादसे का सच जानकर भी उनके साथ शादी करने का फैसला लें। अमूमन तो अगर किसी परिवार की लड़की के साथ बलात्कार हुआ है, तो उसके परिवार की बाकी लड़कियों की शादियों में भी दिक्कत होती है। शादी होती भी है, तो अच्छे घर-परिवार में नहीं होती। कई बार अपनी उम्र से काफी बड़े, बालबच्चेदार विधुर से होती है।

बलात्कार करने वाले का सामाजिक बहिष्कार हो या न हो, लेकिन पीड़िता का हो जाता है। एक और भी पहलू जुड़ा है इस मानसिकता के साथ। बलात्कार पीड़िता की पहचान उजागर हो जाने पर लोग उसके बारे में धारणाएं बना लेते हैं। उसके चरित्र और व्यवहार में कमियां खोजी जाने लगती हैं, मानों इन कथित कमियों के कारण ही बलात्कार हुआ हो। और मानो बलात्कार होना स्वाभाविक और न्यायसंगत हो। कुछ समय पहले दिल्ली में एक 5 साल की बच्ची के साथ रेप हुआ। पुलिस की जांच में सामने आया कि अपराधी ने उस बच्ची को चॉकलेट का लालच देकर अपने पास बुलाया था। इस देश में लोग इतने अधिक मानसिक दिवालियेपन का शिकार हो चुके हैं कि उस बच्ची के साथ हुए जघन्य अपराध के पक्ष में तर्क गढ़ने लगे। कुछ लोगों ने कहा कि वो लालची थी, इसीलिए ऐसा हुआ। मतलब 5 साल की बच्ची का चॉकलेट और खिलौनों के प्रति स्वाभाविक झुकाव लालच करार दे दिया गया।

समाज का बड़ा हिस्सा ऐसा भी है जो पीड़ित को ही जज करने लग जाता है।

दिल्ली में हुआ निर्भया गैंगरेप बहुत सुर्खियों में रहा था। बहुत बड़े स्तर पर इस घटना का विरोध हुआ, लेकिन उस मामले में भी अपराध का दोष और उसकी जिम्मेदारी पीड़िता के कंधों पर डालने वाले लोग कम नहीं थे। ‘इतनी रात को बाहर क्या कर रही थी, बॉय फ्रेंड के साथ क्यों घूम रही थी’ जैसे घटिया तर्क दिए जा रहे थे। अपराधियों के वकील ने अपनी दलील में ऐसी ही बात कही। उसने कहा कि निर्भया और उसका बॉयफ्रेंड ‘अश्लील, आपत्तिजनक’ हरकतें कर रहे थे। इन तर्कों की मानें तो देर रात घर से बाहर रहना, पुरुष मित्रों के साथ घूमना-फिरना और कुछ विशेष तरह के कपड़ों से अलग कपड़े पहनना बलात्कार को आमंत्रण देता है। कि ऐसा करने वाली लड़कियों और महिलाओं को अपने साथ हुए ऐसे अपराध के लिए तैयार रहना चाहिए, बलात्कार हो जाने पर इसे अपनी ग़लती मानते हुए चुप रहना चाहिए।

कलकत्ता में रहने वाली उस महिला का केस भी शायद आपको याद हो, जिसके साथ बार से निकलने के बाद चलती कार में सामूहिक बलात्कार हुआ था। उस महिला ने ख़ुद सामने आने की हिम्मत दिखाई। उसकी हिम्मत के बदले हमारे समाज ने उसे कैसा जवाब दिया? वह अपने पति से अलग होकर अपनी 2 बेटियों की ख़ुद परवरिश करती है, यह उसकी चरित्रहीनता ठहराई गई। शराब पीती है, यह भी उसे चरित्रहीन साबित करने का जरिया हो गया। और तो और, किसी पर भरोसा करके देर रात लिफ़्ट ले लेना तो उसे कैरेक्टरलेस साबित करने का सबसे बड़ा हथियार माना गया। सब कुछ अहम हो गया, बस उसके साथ हुआ बलात्कार गौण पड़ गया। उसका चरित्र टटोलने में जुटे लोग उसके साथ हुए अपराध की गंभीरता को भूल गए।

एक बड़ा हिस्सा पीड़ित का चरित्र टटोलने लग जाता है।

ये सारे मामले अनोखे नहीं। इन मामलों में समाज के एक बड़े हिस्से ने जैसी सोच दिखाई, वह एक देश के तौर पर हमारी बहुसंख्यक आबादी की सोच है। हम मानसिक तौर पर न तो इतने गंभीर हुए हैं और न ही इतने जिम्मेदार कि रेप विक्टिम की पहचान उजागर करने की पहल की जा सके। इस मामले में हम बिल्कुल भी संवेदनशील नहीं हैं। हम में से ज़्यादातर लोग दिमागी तौर पर पीड़िता के दर्द को समझ ही नहीं सकते। न तो हमारी ऐसी परंपरा रही है और न ही ऐसी चेतना ही आई है। और इन्हीं कारणों से बलात्कार की शिकार हुई बच्ची, लड़की, युवती और महिलाओं की पहचान गुप्त रखी जाती है। किसी भी तरीके से उसकी पहचान उजागर करने वाले लोग कानून का उल्लंघन करते हैं और इसके लिए उन्हें सज़ा भी दी जा सकती है।

एक स्कूल जाने वाली बच्ची के साथ हुआ इतना नृशंस अपराध समाज के तौर पर हमारे लिए शर्मनाक है। इससे भी शर्मनाक है उस बच्ची की तस्वीरें साझा करना, उसकी नंगी लाश की फोटो सोशल मीडिया पर डालना। ये न केवल गैरकानूनी है, बल्कि अमानवीय भी है। गुड़िया का परिवार अपनी बच्ची के साथ हुए हादसे से गहरे सदमे में है। इन तस्वीरों को देखकर उनकी पीड़ा और बढ़ेगी। ऐसा करने वाले गुड़िया के परिवार का दुख और बढ़ा रहे हैं। न्याय देने की जिम्मेदारी तंत्र की है, व्यवस्था की है। आप उनके लिए कुछ बेहतर नहीं कर सकते, अच्छा होगा कुछ बदतर भी मत करिए। रेप पर चुटकुले बनाने वाले और उन्हें पढ़कर हंसी से लोटपोट होने वाले लोग भी हमारे बीच ही रहते हैं। बलात्कार के विडियो देखकर उत्तेजित होने वाले लोग भी हमारे ही बीच हैं। रेप पॉर्न को चाव से देखने और इसमें मज़ा खोजने वाले भी तो हम में से ही हैं। ऐसे लोगों की पहचान कीजिए। मौजूदा परिस्थितियों में यही हमारा योगदान होगा।

(लेखिका उत्तर प्रदेश से हैं और सामाजिक विषयों पर लिखती रहती हैं। उनके मुताबिक ‘इन हिमाचल’ पर ‘विक्टिम की पहचान क्यों जाहिर नहीं करनी चाहिए’ वाले लेख पर लोगों की टिप्पणियां पढ़ने के बाद उन्होंने यह लेख भेजा है।)

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