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वीरभद्र सिंह: राजनीति के ‘वीर’ और जनता के ‘भद्र’ ऐसे बने हिमाचल के ‘सिंह’

इन हिमाचल डेस्क।। वीरभद्र सिंह- एक विवादित मगर निर्विवादित रूप से बेहद लोकप्रिय शख्सियत। हिमाचल प्रदेश में कई बड़े नेता हुए, उन्हें जनसमर्थन भी भरपूर मिला लेकिन उसकी तुलना वीरभद्र को मिले अथाह समर्थन और स्नेह से नहीं की जा सकती। अपने राजनीतिक करियर में वीरभद्र सिंह पर कई आरोप लगे, उनकी नीतियों और बातों के लिए उनकी आलोचना भी हुई मगर उन्हें किसी बात की परवाह किए बगैर वही किया, जो उनका दिल चाहा। वीरभद्र साढ़े तीन दशकों तक हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस का पर्याय रहे।

राजनीतिक सफलता और लोकप्रियता दोनों के शीर्ष पर वीरभद्र को जिस बात ने पहुंचाया, वो था चतुराई और भावुकता का मिश्रण। कूटनीतिक ढंग से राजनीतिक फैसले लेने की चतुराई के साथ-साथ वह आम जनता से भावनात्मक जुड़ाव भी रखते थे। जब वह सीएम नहीं भी होते, तब कोई बुजुर्ग अगर या जरूरतमंद दूरदराज के इलाके से शिमला में उनके आवास या कार्यालय पहुंचता और उनकी नजर उस पर पड़ती तो उसकी समस्या सुलझाने की कोशिश तो वह करते ही, उसके खाने-पीने और उसके आने-जाने के किराये का भी इंतजाम करवा देते।

वीरभद्र सिंह

वीरभद्र ने जिसे राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी माना या जो उनके हिसाब से नहीं चला, अपनी राजनीतिक कौशल से उन्होंने उस राजनेता को उभरने नहीं दिया। वहीं अपने वफादार नेताओं और समर्थकों के प्रति उन्होंने भी वफादारी निभाई और जिस तरीके से संभव हो सका, उन्हें आगे बढ़ाया। इन दोनों की बातों के प्रदेश में कई उदाहरण मिल जाएंगे।

दूसरी पार्टियों के लोग भी इस बात के उदाहरण देते हैं कि राजनेताओं को वीरभद्र सिंह से सीखना चाहिए कि कैसे अपने कार्यकर्ताओं को ख्याल रखना है। हालांकि क्षेत्रवाद के अलावा वीरभद्र पर अपनों को अडजस्ट करने के लिए चिट पर भर्तियां करने और बैकडोर भर्तियों की परंपरा शुरू करने जैसे आरोप भी लगते हैं, मगर कानूनी रूप से ये आरोप कभी साबित नहीं हो पाए।

इसी तरह जीवन के आखिरी दौर में उनपर आय से अधिक संपत्ति के जो मामले चले, वे भी उनके रहते साबित नहीं हो पाए। वीरभद्र पूरे आत्मविश्वास से कहते थे कि ये राजनीतिक दुर्भावना से बनाए मामले हैं और मैं अदालत से बेदाग होकर निकलूंगा। मगर ये मामले अदालत में लंबित रह गए।

बुजुर्ग हो जाने के बावजूद वह जितना सक्रिय रह सकते थे, राजनीति में उतने ही सक्रिय रहे। पिछले दिनों देखने में आया कि वह बार-बार भावुक हो जाते थे। कुछ कहते हुए अक्सर गला रुंध जाया करता। किसी पुराने परिचित से मिलते को पुरानी बातों को याद करके उनकी आंखों में आंसू आ जाते। कभी पत्रकारों के तीखे सवालों पर नाराज हो जाते, कभी समर्थकों की हंगामे पर गुस्सा हो जाते और उन्हें डांटते भी लेकिन लोग उनका बुरा नहीं मानते।

कई बार वे सार्वजनिक ऐसी बातें भी कह जाते जो उनके कद और पद के हिसाब से कहना उचित नहीं होतीं। ऐसे ही कई बयान उनके अंतिम मुख्यमंत्री कार्यकाल में विवादों का कारण बने। लेकिन उन्होंने कभी भी अचानक निकल गए ऐसे शब्दों यानी स्लिप ऑफ टंग को सही ठहराने की कोशिश नहीं की। कई बार उन्होंने ऐसी बातों पर खेद प्रकट किया। यह बात बाकी राजनेताओं को भी सीखनी चाहिए गलत बात को स्वीकार करने और उसमें सुधार करने में किसी तरह की शर्म या झिझक नहीं होनी चाहिए।

देश में ऐसा कोई दूसरा उदाहरण नहीं मिलता जब कोई नेता इतने लंबे समय तक राजनीतिक बुलंदियों पर रहा हो। उनके समर्थकों को भले इस बात का मलाल रहा हो कि वीरभद्र लगातार अपनी सरकार रिपीट नहीं करवा पाए। मगर वीरभद्र को इस बात का कभी अफसोस नहीं रहा। वह कहते कि राजनीति रिकॉर्ड बनाने का विषय नहीं है। मगर वीरभद्र ने अपनी राजनीतिक कार्यकाल में जो रिकॉर्ड बनाए हैं, वे तो शायद अब टूटने से रहे।

राजनीति में आने और सीएम बन जाने में उन्हें भूतपूर्व राज परिवार का सदस्य होने के कारण लाभ तो मिला था मगर इतने लंबे समय तक हिमाचल का मुख्यमंत्री रहना, लगातार बिना हारे कई चुनाव जीतना, अपने दम पर सरकार बना लेना… ये सब बिना योग्यता और कौशल के संभव नहीं। शायद इसीलिए उनके समर्थक उन्हें युगपुरुष कहते हैं। वीरभद्र को जब कभी याद किया जाएगा तो स्वाभाविक है कि उनकी और उनके कार्यकाल की अच्छाइयों-बुराइयों का भी जिक्र होगा। मगर हिमाचल के इतिहास में सबसे लंबा और रोचक अध्याय उन्हीं के नाम का रहने वाला है।

पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का 87 साल की उम्र में निधन

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