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गांवों के रास्ते हासिल होगा स्वच्छ और स्वस्थ भारत का लक्ष्य

के.एस. ठाकुर।। भारत को आजाद हुए सात दशक हो चुके हैं, पर भारत आज भी स्वच्छता के लिए संघर्षरत है। पिछली जनगणना वर्ष 2011 के आंकड़ों के मुताबिक ग्रामीण परिवारों में मात्र 30.7 प्रतिशत और शहरी परिवारों में 81.4 प्रतिशत परिवारों के पास शौचालय सुविधा उपलब्ध थी।

भारत में पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की करीब 15 लाख मौतें प्रति वर्ष शौचालय की उपलब्धता न होने के कारण होती हैं। गंदगी से आंतों की पाचन और भोजन को पचाने वाले तंत्र पर भी नकारात्मक असर पड़ता है। यह बीमारी स्वच्छता व सफाई के अभाव के कारण पनपती है।

स्वस्थ समाज के निर्माण के लिए स्वच्छता की आदत का होना बेहद जरूरी है। स्वच्छ समाज, स्वस्थ भारत के निर्माण के उद्देश्य की पूर्ति के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो अक्तूबर, 2014 को स्वच्छ भारत मिशन कार्यक्रम की शुरुआत करके वर्ष 2019 तक महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर भारत को खुले में शौच की कुप्रवृत्ति से मुक्त करके स्वच्छ भारत का लक्ष्य देश के सामने रखा। इसी कड़ी में ग्रामीण भारत में 2019 तक 12 करोड़ शौचालय बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। यह लक्ष्य तभी हासिल हो पाएगा, जब शासन-प्रशासन के साथ-साथ देश की जनता भी इसमें अपना सक्रिय सहयोग दे।

खुले में शौच जाने के दुष्प्रभावों के प्रति ग्रामीण लोगों को पूरी तरह जागरूक बनाने के लिए ग्राम स्तर पर विशेष अभियान आरंभ किए गए हैं, जो कि धीरे-धीरे अपना रंग दिखाना शुरू भी कर रहे हैं। गुजरात और आंध्र प्रदेश अपने-अपने शहरों और नगरों को खुले में शौच से मुक्त घोषित करने वाले पहले राज्य बन गए हैं। महाराष्ट्र, मिजोरम, हिमाचल प्रदेश, केरल तथा अन्य पूर्वोत्तर राज्य शहरी क्षेत्रों को शीघ्र खुले में शौच से मुक्त घोषित करने की दिशा में अग्रसर हैं।

इस स्वच्छता मिशन की सफलता के लिए धन की आवश्यकता का बहुत महत्त्व होगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, भारत स्वच्छता सुविधाओं पर सकल घरेलू उत्पाद का महज 0.2 प्रतिशत हिस्सा ही खर्च करता है, जबकि पाकिस्तान और नेपाल क्रमशः 0.4 तथा 0.8 प्रतिशत करते हैं। जब तक सरकारी संस्थाओं व गरीब ग्रामीण निवासियों को शौचालय निर्माण के लिए पर्याप्त धन मुहैया नहीं होगा, तब तक इस मिशन की रफ्तार धीमी ही रहेगी।

ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत बड़ी आबादी गरीबी, भुखमरी तथा कुपोषण से ग्रस्त है। ऐसे में स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत सरकार द्वारा वित्तीय सहायता का उचित प्रावधान करना होगा। जब इनसान पारिवारिक भरण-पोषण में ही व्यस्त रहेंगे, तो शौचालय के निर्माण में सफलता मिलना कठिन होगा। हालांकि स्वच्छ भारत मिशन की गूंज भारत के हर घर, गांव, कस्बे तथा शहर में पहुंच चुकी है। सरकारी तथा गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा भी सक्रिय भूमिका निभाई जा रही है।

स्वच्छता मानव जीवन की एक ऐसी आवश्यकता है, जो एक दिन या साल में 12 दिन अपनाने पर जीवन को स्वच्छ नहीं बना सकती। हमारे समाज में यह परंपरा बहुत पुरानी है कि हम लोग किसी भी कार्य को नियमित और अनुशासित होकर नहीं करते। यही कारण है कि आज आजादी के सात दशक बीत जाने पर भी हम स्वच्छता की आदत को अपनाने के लिए संघर्षरत हैं।

भारत में स्वच्छता संवैधानिक दृष्टि से ‘राज्य सूची’ का विषय है, जिसे 73वें संविधान संशोधन के तहत स्थानीय निकायों को सौंपा गया है। ग्रामीण भारत में इसे लागू करने की जिम्मेदारी प्रशासन के निचले स्तर यानी ग्राम पंचायतों, ब्लॉक स्तर, जिला व राज्य की है। इसके अतिरिक्त भारत सरकार द्वारा शुरू किए गए स्वच्छ भारत मिशन के संदर्भ में अनेक कार्यक्रम शुरू किए गए, जैसे केंद्रीय ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम (1986), संपूर्ण स्वच्छता मिशन (1999), निर्मल भारत अभियान (2012) तथा स्वच्छ भारत अभियान (2014) प्रमुख हैं।

ऐतिहासिक दृष्टि से समीक्षा की जाए तो नरेंद्र मोदी द्वारा प्रारंभ की गई स्वच्छ भारत अभियान अब तक की योजनाओं में सबसे लोकप्रिय योजना रही। इस अभियान में सरकारी व गैर सरकारी तंत्र के साथ-साथ मीडिया और आम जनता में जो जागरूकता व सजगता देखने को मिली, वह काबिले तारीफ है। किसी ने भेड़-बकरियों को बेच कर शौचालय बनाए, तो किसी ने अपने गहने, जेवरात गिरवी रखकर इस अभियान में अपना योगदान दिया। अभी भी बहुत से ऐसे परिवार मौजूद हैं, जो कि धन के अभाव में शौचालय का निर्माण नहीं करवा पा रहे हैं।

इस समस्या के समाधान की जिम्मेदारी स्थानीय प्रशासनिक अधिकारी के कंधों पर है और इसके लिए ये अधिकारी ग्राम पंचायतों, निकायों, समुदायों, स्कूलों तथा आंगनबाड़ी केंद्रों की मदद ले सकते हैं। प्रशासन की सामंजस्य की प्रवृत्ति से समाज में स्वच्छता की आदत को प्रोत्साहित करना होगा। विद्यार्थियों में स्वच्छता संबंधी आदतों तथा स्वास्थ्य शिक्षा को प्रोत्साहित करने के सक्रिय उपाय करने होंगे। इसके अलावा प्रदेश में ठोस और तरल कचरा प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करते हुए इस अभियान को सफलता की ओर मोड़ना होगा।

ग्रामीण क्षेत्र में जब समग्र स्वच्छता सुविधाओं की व्यवस्था होगी, तभी भारत दो अक्तूबर, 2019 तक खुले में शौच मुक्त व स्वच्छ राष्ट्र बन सकेगा।

(लेखक कर्म सिंह ठाकुर मंडी ज़िले के सुंदरनगर से हैं। उनसे ksthakur25@ gmail. com या 98053 71534 पर संपर्क किया जा सकता है।)

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