कपिल शर्मा।। वैसे तो शीत ऋतु आरंभ हो चुकी है लेकिन हिमाचल प्रदेश में चुनावी मौसम की गर्मी के चलते इस बार शीत लहर भी कुछ नहीं बिगाड़ पा रही। लोकतंत्र की यही खूबसूरती है कि हर 5 साल बाद सत्ताधीश बने रहने के लिए नेताओं परीक्षा देनी पड़ती है। इस परीक्षा में आरोप, षड्यंत्र और सही गलत को दांव पर लगाया जाना आम बात है।
हालांकि इस बात को हुए 5 साल होने को आ गए पर लगता है कि यह चंद दिनों पहले की ही बात है जब भारतीय जनता पार्टी ने जय राम ठाकुर को अचानक से मुख्यमंत्री घोषित कर दिया था और हिमाचल प्रदेश की राजनीति का एक अलग अध्याय का आरंभ हो गया। आज उन्हीं जय राम ठाकुर को फिर मैदान में उतर कर अपनी दूसरी पारी को जारी रखने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।
इस चुनावी उठापटक के बीच पक्ष-विपक्ष की एक दूसरे की आलोचना या बयानबाजी होना स्वाभाविक है और आवश्यक भी है। चूंकि यही चुनावी मौसम होता है जो नेताओं के असली रंग जनता के सामने लेकर आता है, वरना 5 साल तक तो कुछ नेताओं के दर्शन तक दुर्लभ हो जाते हैं। पहले जहां रैलियों, भाषणों और समाचार पत्रों के माध्यम से नेता लोग एक दूसरे पर निशाना बनाते थे वहीं इसकी जगह आज सोशल मीडिया ने ले ली है।
राजनीतिक रैलियों के मंच और भाषणों की तरह सोशल मीडिया की कोई सीमा य़ा मर्यादा नहीं होती। वहां तो बस आपकी उंगलियां चलती हैं और कुछ भी, किसी के भी बारे में लिख दिया जाता है। हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव नजदीक आते-आते सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म फेसबुक पर ढेरों ऐसी प्रोफाइल बन गई हैं जिनका नाम तो हिमाचली सा लगता है पर चेहरा नहीं, इनकी फेसबुक फ्रैंडलिस्ट तो काफी लंबी दिखता है पर इन्हें फेसबुक के बाहर कोई नहीं जानता है।
ऐसे अज्ञात हैंडल्स हिमाचल की राजनीति में विशेष रुचि रख रहे हैं और किसी खास नेता या पार्टी के समर्थन में कुछ भी कर गुजरने को तैयार हैं। बात केवल आरोप- प्रत्यारोप तक की ही नहीं बल्कि ये तो किसी संवैधानिक पद या उम्र तक का लिहाज भी नहीं करते। सोशल मीडिया पर कोई नियामक बॉडी नहीं है और ना ही कोई निगरानी व नियंत्रण, तो जो चाहे यहां लिखे और मान मर्यादा को तार तार कर दे इस से कोई फर्क नहीं पड़ता।
करीब से अध्ययन करने पर पता चलता है कि सैंकड़ो फेक प्रोफाइल बनाई गई हैं जिसमें बड़े बड़े नेताओं को निशाने पर लेकर उनपर अभद्र टिप्पणी की जाती हैं। देखादेखी में भोले भाले मासूम लोग भी यही करने लग जाते हैं और यही इन फेक प्रोफाइल को बनाने वाले का मुख्य मकसद है। प्रदेश के मुख्यमंत्री को तू-तड़ाक से संबोधित करना, पूर्व मुख्यमंत्री पर ओछी टिप्पणी करना या किसी के निजी समस्याओं का मजाक बनाना, ये सब मर्यादाएं यहां लांघ दी गई हैं।
ऐसा नहीं है कि ये काम बिना किसी की शय से हो रहा है। ऐसा करने के लिए राजनीतिक पार्टी के नेताओं द्वारा निजी कंपनियों को काम पर लगाया गया है जिसमें काम करने वाले कर्मचारी इन हैंडल्स को चलाते हैं और इन पर पोस्ट होने वाले कंटेंट को मैनेज करते हैं। ऐसी कंपनियां खुद को पॉलिटिकल कैंपेन मैनेजमेंट फर्म के रूप में दिखाती है और इसकी आड़ में नफरत और कुंठा के इस व्यापार को अंजाम देती है।
यदि समय रहते ऐसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर कोई काबू न किया गया तो जल्द ही ऐसा होगा कि सोशल मीडिया से निकलकर ऐसी निर्लज्जता हमारी दैनिक चर्या में देखने को मिलेगी। अभी चेहरा छुपाकर सोशल मीडिया पर लिखा जा रहा है लेकिन बड़े नेताओं की शय मिलती रहे तो ये लोग किसी को भी बेइज्जत कर सकते हैं। चुनाव जीतने के लिए ऐसे हथकंडे तो जरा भी स्वीकार्य नहीं है, न ही लोकतंत्र के लिए लाभदायक। हमारे हिमाचल प्रदेश की ऐसी परंपरा तो कतई नहीं रही है।
(लेखक पत्रकारिता एवं जन संचार में एम.ए. हैं और वर्तमान में पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ से राजनीतिक शास्त्र में एम.ए. कर रहे हैं। उनसे kapilbom@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)
(ये लेखक के निजी विचार हैं)