Site icon In Himachal | इन हिमाचल

नेताओं और सरकार से सवाल करने को इतना ही उत्साह क्यों नहीं दिखाते पत्रकार?

कुमार अनुग्रह।। कुल्लू हादसे के सर्वाइवर को माइक आईडी के साथ घेरे पत्रकारों की वायरल तस्वीर पर लोगों ने कई सवाल खड़े कर दिए। सवाल यह कि क्या पत्रकार और उनके संस्थान संयम और संवेदनाएं खो चुके हैं? स्ट्रेचर पर लेटा वह घायल व्यक्ति कितने बड़े सदमे में होगा उसके बारे में हम अंदाजा भी नहीं लगा सकते। लेकिन हादसे के बारे में जानकारी के लिए घायल को इस तरह से घेर कर लिया गया जो असंवेदनशीलता से भरा था।

पत्रकार का काम होता है सूचना एकत्र करना, उसे आगे प्रेषित करना और फेक्ट के बारे में सही से लिखना। हालांकि ऐसे संवेदनशील मौकों पर थोड़ा संयम और विवेक से तो कार्य किया ही जा सकता है। फोटो के वायरल होने के बाद कई लोग यह सवाल भी उठाते दिखे कि नेताओं, मंत्रियों और सरकार से जवाबदेही के लिए पत्रकार इतने आतुर क्यों नहीं दिखते?

वैसे एक नहीं कई उदाहरण हैं, जब पत्रकारों का ये उतावलन पर कहीं गायब हो जाता है। लेकिन एक हालिया घटनाक्रम भी है जो पत्रकारिता के स्तर पर सवाल उठाता है।

सांसद और हिमाचल कांग्रेस अध्यक्ष प्रतिभा सिंह ने एक जनसभा में गुड़िया प्रकरण को छोटी सी घटना बता दिया। मीडिया ने प्रतिभा सिंह के भाषण का हिस्सा सोशल मीडिया पर वायरल होते ही चला दिया। सोशल मीडिया पर खूब हो हल्ला हुआ।

प्रतिभा सिंह ने अपने शब्दों पर खेद जताने की बजाय सफाई देते हुए यह कह दिया कि मीडिया ने उनके बयान को तोड़ मरोड़ कर पेश किया। यह बात प्रतिभा सिंह ने एक जगह नहीं कम से कम तीन स्थानों पर प्रेस के सवालों का जवाब देते हुए कही। उन्होंने यहां तक कह दिया कि मेरा वीडियो एडिट कर दिया गया है।

गुड़िया प्रकरण ही नहीं, प्रतिभा सिंह ने मंडी लोकसभा उपचुनाव के दौरान कारगिल युद्ध को छोटा सा युद्ध बताने के मामले को भी मौजूदा घटनाक्रम से जोड़ते हुए कह दिया कि उनके साथ ऐसा पहले भी हुआ। प्रतिभा सिंह ने अपने शब्दों का ठीकरा मीडिया पर फोड़ते हुए उन्हें सीधे-सीधे कसूरवार बता दिया, लेकिन किसी भी प्रेस कॉन्फ्रेंस में पत्रकार यह कहते हुए नहीं सुने गए कि आप मीडिया पर आरोप कैसे लगा सकती हैं। आपने जो कुछ कहा उसके सबूत मौजूद हैं। आपके खुद के फेसबुक पेज से लाइव हुआ था।

ऐसे में जब एक नेता और सांसद ठोस सबूत होने पर भी सरेआम मीडिया पर वीडियो से छेड़छाड़ करने के आरोप लगा दे और एक भी पत्रकार या पत्रकारों के संगठन इस पर आपत्ति दर्ज न करवा पाएं तो आप समझ सकते हैं कि हालात क्या हैं।

मीडिया के स्तर में गिरावट के कई कारण हैं और चर्चा के लिए यह एक विस्तृत विषय है, लेकिन पत्रकारों और विशेषकर पत्रकारों के लिए संगठन बनाने वाले पदाधिकारियों को भूमिका और सेल्फ रेगुलेशन पर सोचना होगा। क्योंकि ऐसे कई संगठन हैं जो निवार्चित या मनोनित होने पर सोशल मीडिया पर फोटो और पर पोस्ट अपडेट कर बधाई और आभार का अदान प्रदान करते तो हैं, लेकिन पत्रकारिता के मूल्यों और पत्रकारों के सुरक्षित भविष्य के लिए कुछ नहीं करते।

पत्रकारिता के स्तर पर सवाल उठाने वाले लोग भी उतने ही जिम्मेदार हैं जितने कि मीडिया संस्थान। इस विषय पर अगली बार बात करेंगे।

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

प्रदेश संबंधित विषयों पर आप भी अपने लेख हमें inhimachal.in@gmail.com पर भेज सकते हैं।

इन हिमाचल को चाहिए ऊर्जावान और संवेदनशील Digital Journalists

Exit mobile version