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एक दिन फ़ेसबुक पर ‘इंकलाब जिंदाबाद’ लिख देने से कुछ नहीं होगा

राजेश वर्मा।। शहीदी दिवस..आज सभी ने सोशल मीडिया पर जी भर के उन महान शहीदों को श्रद्धांजलि दी जिनकी वजह से हम आप इस आज़ादी का आनंद भोग रहे हैं। दिल पर हाथ रख कर बताना क्या हम सचमें इन वीर सपूतों को याद कर रहे हैं? जरा सोचिए क्या जरूरत थी उन नौजवानों को शहीद होने की? वह अपने लिए नहीं करोड़ों लोगों के लिए कुर्बान हो गए, बस इतना है वह शहीद नहीं होते तो न तो मैं जिंदगी का सुख भोग रहा होता न आप।

वे जुनूनी थे लेकिन हम बातूनी हैं । आज सैंकड़ों में से कोई एकाध थोड़ी बहुत हिम्मत करता भी है अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाने की तो सबसे पहले उसे जीवत मौत किस तरह दी जाए ज्यादातर इस ओर ध्यान देने लग जाते हैं। जरूरी नहीं की फांसी के फंदे पर उन शूरवीरों की तरह झूल कर ही देश प्रदेश के लिए कुछ किया जा सकता है।

किसी जरूरतमंद की मदद करना, अपने देश के लोगों व यहां की संपत्ति को अपना समझ कर रख रखाव करना भी देशभक्ति से कम नहीं परंतु केकड़ा प्रवृत्ति ने हमें इतना घेर रखा है की हर कोई एक-दूजे को नीचे खींचने में लगा है न तो वह खुद उपर उठ पा रहा है न ही वह दूसरे को उपर उठता देखना चाहता है। इसी चक्कर में हम देश को भी नीचे की तरफ खींच रहे हैं। इतना जरूर है यदि आज़ादी के महान सपूतों को पता होता की ऐसा भी होगा तो शायद वह कभी भी फांसी पर नहीं झूलते।

जीना कौन नहीं चाहता कोई खुद के लिए तो कोई परिवार के लिए लेकिन क्या इनका परिवार नहीं था? इन्होनें देश को अपना घर परिवार माना जबकि हम तो अपने गांव शहर तक को अपना नहीं मानते। थोड़ी देर के लिए ही सही पर याद करो की यदि आज वही गुलामी होती तो क्या हम आप में से कोई भी इस जगह होता? शायद इसे ब्यां करने की जरूरत नहीं।

उन्होंने तो जीवन का बलिदान दिया लेकिन क्या हम आप महज सोशल मीडिया पर “इंकलाब जिंदाबाद” के नारे लगाकर और कहीं पर खाना पूर्ति के लिए महज कार्यक्रम आयोजित करने भर से उनको श्रद्धांजलि दे देंगे। यह तो हमें याद है की इन शहीदों ने देश के लिए जान दे दी लेकिन हमनें देश के लिए क्या किया।

(स्वतंत्र लेखक राजेश वर्मा बलद्वाड़ा, मंडी के रहने वाले हैं और उनसे 7018329898 पर संपर्क किया जा सकता है।)

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