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बाकी टाइम पुलिस ढंग से काम करे तो ऐसे एनकाउंटरों की जरूरत न पड़े

आई. एस. ठाकुर।। हैदराबाद में डॉक्टर का बलात्कार दुखद था। उससे भी त्रासद है आरोपियों की पुलिस हिरासत में संदिग्ध मुठभेड़ में मौत। 4 निहत्थे आरोपी जिन्हें हवालात से कड़ी सुरक्षा के बीच ले जाया गया था, उन्हें काबू करने के लिए गोली ही मारनी पड़े, यह बात हजम नहीं होती। ऐसा लगता है पुलिस ने इन युवकों को अपनी खाल बचाने के लिए मार डाला।

गुड़िया केस याद कीजिये जब पुलिस ने नेपाली मजदूरों को रेपिस्ट बता केस सॉल्व करने का दावा किया था और सीएम ने पीठ थपथपाई थी। बाद में सीबीआई के पास केस जाने से पहले एक आरोपी की हिरासत में मौत हो गई और उस मामले में कई वरिष्ठ अधिकारी जेल जाकर लौटे हैं और अभी भी अभियुक्त हैं।

लोग कह रहे हैं कि हैदराबाद के आरोपियों ने जुर्म कुबूल किया था। रायन पब्लिक स्कूल गुरुग्राम में बच्चे की हत्या हुई थी तो पुलिस ने बस ड्राइवर की पिटाई करके उससे जुर्म कुबूलवा लिया था। ये तो सीबीआई जांच में पता चला कि पुलिस ने कहानी गढ़ी थी और असली हत्यारा एक स्टूडेंट ही है। यानी पुलिस की जांच पर पूरी तरह भरोसा नहीं किया जा सकता।

हैदराबाद में भी ऐसा न हुआ हो, इस बात की क्या प्रमाणिकता है? सब जान और मान रहे हैं कि यह सामान्य एनकाउंटर नहीं बल्कि प्लान बनाकर किया गया काम है। फिर आप कैसे पुलिस के इस काम को समर्थन दे सकते हैं? कोर्ट को न्याय करना था। जब तक कोर्ट किसी को दोषी नहीं ठहराता, उसे निर्दोष माना जाता हूं और अपना पक्ष रखने का मौका दिया जाता है। उन्हें यह मौका नहीं मिला। मान लो कल को कोई आपको फंसा दे और फिर कोर्ट में केस जाने से पहले आपकी भी ऐसे जान चली जाए?

अगर यही लोग दोषी थे, इनके खिलाफ सबूत थे तो एनकाउंटर की क्या जरूरत आन पड़ी? एक तो पुलिस की आलोचना हो रही थी, फिर इसकी भी पक्की गैरन्टी नहीं कि पुलिस ने असली दोषी ही पकड़े थे और फिर इस केस के ऑफिसर ने 2008 में भी ऐसा ही एनकाउन्टर करके दो आरोपी मार डाले थे।

बाकी मौकों पर अगर पुलिस ढंग से काम करे तो किसी एक घटना में अपनी इज्जत बचाने के लिए फर्जी एनकाउंटर करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। अगर पुलिस चुस्त रहे, शिकायतों को गंभीरता से ले, ढील न बरते और आधुनिक ढंग से सुबूत जुटाकर मजबूत केस बनाए तो कोर्ट में मामला भी जल्दी निपटेगा और सजा भी सख्त मिलेगी।

ऐसी व्यवस्था हो जाए तो कोई भी शख्स किसी तरह का अपराध करने से पहले सौ बार सोचेगा। वरना अभी अपराधियों को लगता है कि एक तो हम पकड़े नहीं जाएंगे और अगर पकड़ लिए गए तो जांच ऐसी वाहियात होगी कि आराम से बच जाएंगे।

इसीलिए हम शुरू से कहते हैं कि देश में पुलिस सुधारों की जरूरत है। स्मार्ट और अच्छे से ट्रेन्ड पुलिसकर्मियों को जरूरत है जो अपराधों को हाथ में पेन-पेपर लेकर खानापूर्ति करके नहीं बल्कि दिमाग इस्तेमाल करके सॉल्व करें।

(लेखक लंबे समय से हिमाचल से जुड़े विषयों पर लिख रहे हैं। ये उनके निजी विचार हैं। उनसे kalamkasipahi @ gmail.com पर सम्पर्क किया जा सकता है)

ये लेखक के निजी विचार हैं

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