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जब पढ़ाई ऑनलाइन हो सकती है तो विधानसभा का सत्र क्यों नहीं?

आई.एस. ठाकुर।। हिमाचल प्रदेश सरकार ने फैसला लिया है कि इस बार विधानसभा का शीतकालीन सत्र नहीं होगा। कारण- कोरोना संकट। जो सरकार कोरोना संकट के बीच जगह-जगह गैरजरूरी शिलान्यास और रैलियां कर सकती है, उसे जनहित के लिए होने वाले विधानसभा सत्र को करवाने में दिक्कत हो रही है।

विधानसभा सत्रों को भले ही कुछ नेताओं ने वॉकआउट करके अपनी फोटो अगले दिन के अखबार में छपवाने का तरीका बना लिया है मगर इसके इतर इस दौरान कई महत्वपूर्ण काम होते हैं। यह सरकार के लिए नए नियम-कानून बनाने और संशोधन करने का ही मौका नहीं होता बल्कि इससे विपक्ष को भी उन बातों और मुद्दों को उठाने का मौका मिलता है, जिन्हें सरकार नजरअंदाज़ कर रही होती है। इसके अलावा विधायक भी अपने इलाके की समस्याएं उठाते हैं।

हिमाचल विधानसभा (File Photo)

मगर इस बार विधानसभा सत्र न होने का मतलब है- कई महीनों का काम प्रभावित होना और महत्वपूर्ण विषयों का छूट जाना। ऐसा तब हो रहा है जब पूरी दुनिया में सारा काम ऑनलाइन हो रहा है। स्कूलों की पढ़ाई ऑनलाइन हो रही है, सरकारी और कॉर्पोरेट मीटिंग्स ऑनलाइन हो रही हैं और यहां तक कि अदालतों तक में ऑनलाइन सुनवाई हो रही है। फिर भी, हिमाचल प्रदेश सरकार यह इंतजाम नहीं कर पाई कि मात्र 68 विधायकों वाली विधानसभा की कार्यवाही डिजिटली चलाई जा सके।

साल 2014 में जब वीरभद्र सिंह मुख्यमंत्री थे, तब हिमाचल प्रदेश विधानसभा को ‘देश की पहली डिजिटल विधानसभा’ घोषित कर दिया गया था। इसके तहत पूरा काम पेपरलेस होना था। यहां तक कि विधायकों को लैपटॉप दिए गए थे और विधेयकों आदि पर वोटिंग जैसे कामों के लिए टचस्क्रीन के इस्तेमाल का ऑप्शन दिया गया था। तबसे छह साल बीत चुके हैं मगर आज उससे आगे कुछ प्रगति नहीं हुई? अगर पिछली सरकार ने दिखावा किया था तो मौजूदा सरकार ने 2017 के बाद क्या किया?

हर साल किसी न किसी राज्य से नेताओं या अधिकारियों के प्रतिनिधिमंडल हिमाचल प्रदेश की विधानसभा का कामकाज देखने आते हैं कि यहां कैसे सब काम डिजिटली और ऑनलाइन हो रहा है। अब उन्हें बुलाना बंद कर देना चाहिए क्योंकि हिमाचल प्रदेश विधानसभा नाम के लिए ही डिजिटल है। ठीक हाथी के दांतों की तरह। जो व्यवस्था या तकनीक जरूरत के समय काम न आए, उसका फायदा ही क्या है?

ऐसा नहीं है कि इंतज़ाम नहीं किए जा सकते थे। कोरोना संकट को शुरू हुए कई महीने हो चुके हैं। एक साल होने को है। सबको पता था कि जह तक वैक्सीन नहीं मिल जाती या फिर महामारी खत्म नहीं हो जाती, तब तक सभी कामकाज सावधानी से करने होंगे। सबको पता था कि इस बीच विधानसभा का सत्र भी होंगे। तो क्या इसके लिए पहले से तैयारी नहीं की जा सकती थी? विधायकों को लैपटॉप, महंगे स्मार्टफोन और कम्यूनिकेशन पर होने वाला खर्च किस बात के लिए दिया जाता है? उनकी ट्रेनिंग पर इतना खर्च क्यों किया जाता है?

कितना अच्छा होता अगर हिमाचल प्रदेश विधानसभा कोरोनाकाल में ऑनलाइन सत्र आयोजित करने वाली विधानसभा बन जाती। लेकिन हर बार की तरह सरकार इसे लेकर भी उदासीन बनी रही। ऐसा लगता है कि सरकार को आग लगने पर कुआं खोदने की आदत हो गई है। सारे काम आखिरी लम्हे पर करने हैं। यह दिखाता है कि नेताओं और लाखों की सैलरी लेने वाले नौकरशाहों की सोच कैसी है।

(लेखक लंबे समय से हिमाचल प्रदेश के विषयों पर लिख रहे हैं। उनसे kalamkasipahi@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)

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