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लेख: हिमाचल में दिल्ली चुनाव की तरह लड़खड़ाती नजर आ रही है बीजेपी

आई.एस. ठाकुर।। हिमाचल प्रदेश में आज प्रधानमंत्री के दो भाषण सुने। दोनों भाषणों में आधा वक्त तो प्रधानमंत्री जी ने आत्मस्तुति यानी अपनी तारीफ में बिता दिया। उन्होंने कहा, “आप सोचते होंगे कि मोदी कैसा आदमी है, इतना काम करता है, कभी छुट्टी भी नहीं लेता। सोचते हैं कि नहीं मित्रो?”

प्रधानमंत्री के लिए यह पहला मौका नहीं है कि वह आत्मस्तुति कर रहे हों। वह ऐसा करते रहे हैं और इसमें कुछ बुरा भी नहीं हैं। मगर उनके भाषणों में मैं हिमाचल के लिए कुछ योजनाएं, कुछ विज़न, कुछ प्लानिंग सुनना चाह रहा था मगर अफसोस, कुछ नहीं मिला। बस फौजी जवानों के नाम पर इमोशनल कार्ड खेलने की कोशिश, यह जताने की कोशिश कि मैं यहां का प्रभारी होते हुए कई जगह घूमा, वीरभद्र पर आरोप, कांग्रेस पर हमले और दो-चार ‘जुमले’ (अमित शाह जी की भाषा में) और भाषण खत्म।

किरन बेदी की तरह किया गया धूमल को आगे
बीजेपी की पूरी रणनीति जाने क्यों दिल्ली विधानसभा चुनावों की याद दिला रही है। बीजेपी का पूरा अमला उतर गया था आम आदमी पार्टी के खिलाफ प्रचार के लिए। आम आदमी पार्टी पर आरोपों पर आरोप लगाए जा रहे थे। बीजेपी अपना विज़न रखने के बजाय आम आदमी पार्टी और केजरीवाल को कोसने में व्यस्त रही। दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी वाले योजनाएं और सपने दिखाते गए। नतीजा यह हुआ कि प्रधानमंत्री मोदी ने ज्यादा सक्रियता नहीं दिखाई और बीजेपी ने कुछ ही दिन पहले किरन बेदी को सीएम कैंडिडेट घोषित कर दिया। नतीजा क्या रहा, सबके सामने है। पूरी दुनिया कहती रही कि यह मोदी की हार है, मगर कहीं न कहीं बीजेपी इस हार का दोष किरन बेदी को सीएम कैंडिडेट बनाने पर ट्रांसफर करती रही।

यही हाल हिमाचल में दिख रहे हैं। मोदी के बिलासपुर वाले भाषण और कल के दो भाषणों में फर्क था। वह भाषण आत्मविश्वास से भरा था। उसमें भी कांग्रेस औऱ वीरभद्र पर हमले किए गए थे मगर प्रधानमंत्री का अंदाज़ चुटीला था। कल के भाषणों में भी पीएम साहब ने कांग्रेस और वीरभद्र पर हमले किए मगर अंदाज़ चुटीला नहीं, नाराज़गी भरा था। वह जनता में मन में आक्रोश भरना चाहते थे कि कांग्रेस और वीरभद्र ने लूट लिया। एक जगह तो उन्होंने सड़ी हुई सोच वाली पार्टी बता दिया।

प्रधानमंत्री जी ने हिमाचल को लेकर कांगड़ा में तो पांच दानवों को खत्म करने की बात की, मगर उन्होंने यह नहीं बताया कि इससे पहले जब उनकी ही पार्टी की सरकारें थीं और जिन्हें उनकी पार्टी सत्ता प्रमुख बनाने वाली है, वही तब भी सत्ताधीश थे, तब ये पांच दानव थे या नहीं और फले फूले या नहीं। मगर इलेक्शन में तो ठीकरा आंख मूंदर विरोधियों पर फोड़ दीजिए, क्या जाता है?

फलों का जूस कोल्डड्रिंक में मिलाया ही नहीं जा सकता
इसके अलावा प्रधानमंत्री जो विज़न रख रहे थे हिमाचल को लेकर और ये पेप्सी में फलों का जूस मिलाने वाली बात कर रहे थे। ये सारी बातें 2014 के लोकसभा चुनाव प्रचार में वह कह गए थे। और निहायत ही अव्यवहारिक आइडिया है। पेप्सी या कोक का अपना फॉर्म्यूला है अपना टेस्ट है। उसमें जबरन कोई कंपनी संतरे या सेब का रस मिलाएगी तो वह टेस्ट बरकरार रहेगा क्या?

अगर सरकार कहे कि आप अलग से फ्रूट प्रॉडक्ट लॉन्च करें, तो ऐशा भी नहीं किया जा सकता क्योंकि संविधान के आधार पर आप किसी को जबरन कोई प्रॉडक्ट लॉन्च करने को बाध्य नहीं कर सकते। वैसे प्रधानमंत्री 2014 में पहली बार यह बात कही थी और अब तीन साल बाद फिर कह रहे हैं। राज्य सरकार का यह मामला है नहीं, केंद्र का है। और अब तक केंद्र सरकार ने यह आइडिया इंप्लिमेंट नहीं करवाया तो आप विधानसभा में बीजेपी की सरकार बनने पर कैसे हो जाएगा?

कोल्ड ड्रिंक में फलों का जूस कैसे मिलाया जा सकता है?

दरअसल प्रधानमंत्री का यह आइडिया  तीन साल में इसलिए जमीन पर नहीं उतर पाया क्योंकि यह जुमले के अलावा कुछ नहीं है और व्यावहारिक भी नहीं। वैसा ही प्रधानमंत्री हवाई चप्पल और हवाई यात्रा वाले डायलॉग वाला भाषण भी याद है, जिसकी हकीकत यह है कि आम आदमी क्या, मध्यमवर्गीय आदमी भी शिमला से दिल्ली उड़ने से पहले बजट के बारे में सौ बार सोचे।

अमित शाह तो तड़ीपार कर दिए गए थे
और हां, प्रधानमंत्री ने करप्शन के आरोपों को लेकर वीरभद्र को शर्मिंदा किया। आरोपों को लेकर, फिर कहता हूं आरोपों को लेकर। उनपर लगे आरोप जब तक अदालत में साबित नहीं हो जाते, तब तक वह सिर्फ आरोपी हैं और दोषी नहीं हैं। आरोपी होने से कोई दोषी नहीं हो जाता। वैसे आरोप तो प्रधानमंत्री के ऊपर भी लगे थे और अमित शाह के ऊपर भी लगे थे और बड़े ही नृशंस लगे थे। तो क्या उन आरोपों के लगते ही वे भी दोषी हो गए थे? नैतिकता के आधार पर राजनीति छोड़कर वे गायब हो गए थे? और अमित शाह को तो गुजरात हाई कोर्ट ने तड़ीपार कर दिया था। बाद में अदालतों ने ही आरोपमुक्त किया था। तो फिर दूसरों की बारी में मामला अलग कैसे हो जाता है? वीरभद्र ने अपराध किया है तो एजेंसियां जांच कर रही हैं और कोर्ट तय करेगा। आप खुद ही जज तो नहीं हैं न?

हाई कोर्ट ने अमित शाह के गुजरात में प्रवेश करने पर रोक लगा दी थी

कहीं हाल दिल्ली जैसा न हो
खैर, ये सब बातें और आरोप वैसे ही हैं जैसे बीजेपी ने केजरीवाल ऐंड पार्टी पर लगाए थे। और ये सारा नकारात्मक प्रचार था। दिल्ली में बीजेपी अपना विजन रखने के बजाय इसी नेगेटिव प्रचार में जुटी थी और उसका सीधा फायदा पहुंच रहा था केजरीवाल को। नतीजा यह रहा कि आम आदमी पार्टी ने सफाया कर दिया। और ठीकरा फोड़ने के लिए किरन बेदी तो थी हीं। तो वीरभद्र जैसे मंजे हुए राजनेता की बात सही लगती नजर आ रही है कि पहले तो लगता था बीजेपी को कि आराम से जीत जाएंगे, मगर देखा कि जनता साइलेंट है तो कवर लेने के लिए धूमल को आगे कर दिया। जीते तो सेहरा मोदी के सिर बंधेगा और हारे तो ठीकरा धूमल के सिर फोड़ा जाएगा।

बहरहाल, चुनाव रोमांचक होते जा रहे हैं। अभी देखना होगा कि बीजेपी वक्त रहते संभलती है या नहीं और दिल्ली से सबक लेकर नेगेटिव प्रचार से बचकर अपनी उपलब्धियां और भविष्य की योजनाएं जनता के सामने रखती है या नहीं। वरना हिमाचल कहीं 1985 के बाद वह न हो जाए, जो अब तक हुआ नहीं है। सरकार रिपीट।

(लेखक मूलत: हिमाचल प्रदेश के हैं और पिछले कुछ वर्षों से आयरलैंड में रह रहे हैं। उनसे kalamkasipahi @ gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)

ये लेखक के निजी विचार हैं

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