देवेश वर्मा।। हिमाचल प्रदेश में मंत्रिमंडल बनने के तुरंत बाद लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहे जाने वाला मीडिया के कुछेक पत्रकारों ने ये प्रश्न उठाने शुरू कर दिए कि ब्राह्मणों को मंत्रिमंडल में स्थान क्यों नहीं मिला? कहा जा रहा है कि मंत्रिमंडल में ठाकुरों से ही ज्यादातर विधायक मंत्री बना डाले। इसी तरह एक वर्ग यह कहता नजर आया कि कांग्रेस का हाईकमान अनुसूचित जाति से ज्यादा मंत्री बनाने के पक्ष में है।
ये सब बातें जब प्रदेश का एक आम प्रदेशवासी देख रहा होगा तो वह यह सोचने पर तो मजबूर हुआ होगा कि क्या उसने जाति को देखकर वोट दिया था? और ये जो मंत्री बने हैं क्या ये अपनी जाति वर्ग के लिए ही बने हैं? क्या ये अन्य समुदायों या जाति के लोगों के हित की बात नहीं करेंगे? हकीकत में ऐसा कुछ भी नहीं, कोई भी निर्वाचित विधायक मंत्री बना है वह पूरे प्रदेश के लिए योग्यता व वरिष्ठता के आधार पर बना है न कि जाति की संख्या आधार पर और इनका कार्य सभी के लिए निष्पक्ष होगा न कि पक्षपाती।
कुछ मीडिया के लोग कह रहे कि फलां जिले से कोई नहीं बना, फलां से इतने बना दिए। योग्यता न तो जाति की मोहताज है न किसी क्षेत्र विशेष की। एक आम निरक्षर इंसान इन बातों को करता हो तब भी बात गले उतरती है लेकिन बड़े-बड़े राष्ट्रीय व प्रादेशिक मीडिया घरानों से जुड़े पत्रकारों की फेसबुक टाईमलाईन पर ऐसी बातें देख सुनकर लगता है कि कहीं न कहीं ऐसे लोग जातिवाद को ख़त्म करने की बजाए बढ़ाने के लिए ज्यादातर जिम्मेदार हैं या फिर इनके निजी हित जाति के टैग से जुड़े होते हैं जो मनमाफिक पूरे न होने के चलते ये मीडिया की आड़ में अपने निजी विचारों को इस तरह भड़ास के माध्यम से निकालते हैं।
आजतक हमने ऐसे मीडिया बंधुओं को यह कहते नहीं सुना कि फलां जाति का मंत्री बना था और उसने अपनी ही जाति के लोगों की मदद नहीं की। निवेदन है ऐसे मीडिया बंधुओं से कि शांत प्रदेश में अशांति न फैलाएं मंत्री जो भी बने उसे काम से आंकिए न कि जाति के ठप्पे से। वैसे भी प्रदेश के कई क्षेत्रों में जातिवाद का जहर अभी भी फैला हुआ है उसे निकालने की बजाए कम करने का काम करें।
(लेखक हमीरपुर से संबंध रखते हैं। उनसे writerdeveshverma@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है)