इन हिमाचल डेस्क।। समस्या ओवरलोडिंग नहीं है, समस्या है नेताओं का बिल्कुल लोड न लेना। अगर प्रदेश के कुछ बड़बोले नेताओं ने गप्पे हांकने के बजाय समय पर जमीनी हालात को समझकर जनता की समस्याओं को दूर करने के लिए परिवहन के इंतजाम किए होते तो आज यात्रियों को यूं suffer न करना पड़ता, बच्चों को सड़कों पर नहीं उतरना पड़ता।
बसें न मिलना, यात्रियों को बसों पर न चढ़ाना, लोगों का इसे लेकर प्रदर्शन करना- प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों से आ रही इन तस्वीरों और वीडियो के लिए आज की ही नहीं बल्कि पिछली सरकारें भी जिम्मेदार हैं। इसमें कोई शक नहीं प्रदेश में पिछले दो दशकों में सड़कें बढ़ी हैं और बसों की संख्या भी। मगर किसी सरकार ने प्लैनिंग के साथ परिवहन नीति नहीं बनाई न आज इसपर कोई अमल हो रहा है।
रुट ढंग से नहीं बनाए गए। यहीं नहीं, जहां जरूरत थी, वहां एचआरटीसी के डिपो नहीं दिए गए तो कहीं परिवहन मंत्रियों के इलाके में जबरन डिपो दे दिए गए, खड्डों में अड्डे बनाकर बसें खड़ी कर दी गईं। अब कहीं बसें खड़ी हैं तो कहीं बसें कम हैं।
एक और बात, विभाग को बसें किसी विधायक के पिछलग्गू प्रधान की सिफारिश के आधार पर नहीं बल्कि अपने डेटा के आधार पर लगानी चाहिए। विभाग को पता होना चाहिए कि कहां कितने बजे किस कपैसिटी की बसों की जरूरत है। उसे पता होना चाहिए कि कितनी बसें इस साल कंडम होंगी और उनका रिप्लेसमेंट चाहिए होगा। उसे यह भी पता होना चाहिए कि कितने ड्राइवर-कंडक्टर चाहिए, कितने रिटायर होने वाले हैं। प्यास लगने पर ही कुआं खोदा जाएगा क्या?
साथ ही चरस गांजे के लिए नाका लगाकर रोज खड़े होने वाले पुकिसकर्मी आंखें बंद न रखें। वे ओवरलोडिंग करने वाली गाड़ियों और नियम तोड़ने वाले लोगों के चालान भी करें। इतनी सी मल्टीटास्किंग तो की जा सकती है। अगर पहले से इन बातों पर ध्यान दिया गया होता आज जैसे हालात पैदा न होते।