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जब वीरभद्र सरकार ने दोगुनी की थी विधायकों की सैलरी, बेहद खुश थी बीजेपी

वीरभद्र सिंह

इन हिमाचल डेस्क।। दिन 7 अप्रैल, 2016. हिमाचल प्रदेश विधानसभा में बीजेपी के विधायक शांत बैठे थे। यह नजारा हैरान करने वाला था, क्योंकि बीजेपी के नेता जनता के मुद्दे उठाने और ज़रूरी विधेयकों पर चर्चा करने के बजाय आए दिन सदन से वॉकआउट कर जाते थे। मुख्यमंत्री का इस्तीफा मांगने से उन्हें फुर्सत नहीं होती थी। मगर आज वे शरीफ बच्चों की तरह विधानसभा में बैठे थे।

न तो शोर मचा रहे थे, न सीएम का इस्तीफ़ा मांग रहे थे। आज उन्हें सत्ता पक्ष महान और मुख्यमंत्री मसीहा नज़र आ रहा था। एक बिल पेश हुआ और ध्वनिमत से पारित हो गया। सबके चेहरे खिले हुए थे। मगर यह प्रदेश या जनता के भविष्य को नई दिशा देने वाला बिल नहीं था। यह विधायकों की सैलरी डबल और सुविधाएं बढ़ाने वाला बिल था।

उस वक्त सरकार ने विधायकों के वेतन और भत्ते को 1.32 लाख रुपये से बढ़ाकर 2.10 लाख रुपये प्रतिमाह कर दिया था, जबकि दैनिक भत्ता 1500 रुपये से बढ़ाकर 1800 रुपये कर दिया गया था। रेल या हवाई मार्ग से मुफ्त यात्रा की सीमा दो लाख रुपये से बढ़ाकर प्रति वर्ष ढाई लाख रुपये कर दी गई थी। वेतन और भत्तों में वृद्धि से सरकारी खजाने पर 16.45 करोड़ रुपये का वार्षिक वित्तीय बोझ पड़ गया था।

उस समय सैलरी डबल होने पर नेता प्रतिपक्ष प्रेम कुमार धूमल के बोल क्या थे, सुनें-

तारीख 31 अगस्त, 2019– यानी आज का दिन। सत्ता पक्ष वाले विपक्ष में हैं और विपक्ष वाले सत्ता में। हालांकि कुछ हार चुके हैं तो कुछ नए चेहरे सदन में हैं। जो अप्रैल 2016 में हुआ ताज वैसा ही नजारा विधानसभा में देखने को मिला। सत्ता पक्ष ने विधायकों आदि का ट्रैवल अलाउंस बढ़ाने के बिल पेश किए, हो-हल्ला करके वॉकआउट करने वाला विपक्ष खुश होकर बैठा रहा और सबकी सहमति से बिल पारित हो गए।

अब कुछ कांग्रेस के नेता सोशल मीडिया पर कह रहे हैं कि प्रदेश की आर्थिक स्थिति को देखते हुए भत्ते बढ़ाना उचित नहीं। इनमें शिमला रूरल के एमएलए विक्रमादित्य भी शामिल हैं। मगर वे भूल गए कि जब उनकी पार्टी की सरकार थी तो सीएम वीरभद्र सिंह ने ही विधायकों की सैलरी लगभग दोगुनी कर दी थी और उस समय भी प्रदेश पर लगभग 45000 करोड़ रुपये का कर्ज था।

दिखावे में चूक गई कांग्रेस
राजनीति में समय के हिसाब से पाखंड या दिखावा करना महत्वपूर्ण चाल मानी जाती है। जब जनता को पता चला कि भत्ते बढ़ाने वाले बिल सदन में रखे हैं तो सोशल मीडिया पर खूब विरोध हुआ। कांग्रेस चाहती तो आज विरोध कर देती और जनता कुछ भी समझती, रिकॉर्ड में रहता कि आपने इस बात का विरोध किया था। मगर शायद अतिरिक्त पैसों का मोह जनता की नाराजगी पर भारी पड़ गया और इस बिल का समर्थन कर दिया।

इस मामले में बीजेपी होशियार थी। विधानसभा चुनाव से ठीक पहले वीरभद्र सरकार ने विधायकों को पट्टे पर जमीन देने का फैसला किया। इन हिमाचल ने उस समय इसपर सवाल उठाए और सोशल मीडिया पर एक मूवमेंट सा खड़ा हुआ। इसका असर यह हुआ कि बीजेपी ने जनता का मूड भांपते हुए इस फैसले का विरोध शुरू कर दिया।

ऊपर वीडियो में आपने देखा कि जो प्रेम कुमार धूमल अप्रैल 2016 में विधायकों का वेतन दोगुना होने पर खुश थे, वह चुनाव नजदीक देख सितंबर 2017 में विधायकों को जमीन दिए जाने के खिलाफ हो गए थे। उस समय विपक्ष के नेता प्रेम कुमार धूमल नेे विधायकों को जमीन पट्टे पर दिए जाने के प्रस्ताव का विरोध करते हुए कहा था कि सरकार ने विधायकों की छवि खराब कर दी है इस फैसले से। (वीडियो समाचार फर्स्ट से साभार)

यानी 2016 में सैलरी बढ़ाने का विरोध नहीं हुआ था, मगर चुनाव करीब आते ही बीजेपी को कांग्रेस सरकार का कदम गलत लगने लगा था। लेकिन अभी चुनाव को समय हैं, शायद इसीलिए सत्ता पक्ष और विपक्ष को कोई चिंता नहीं है जनता की नाराजगी की।

हमने 2017 को अपने लेख के आखिर में जो लिखा था, वो आज सही साबित हो गया। आखिरी पंक्तियां थीं-

मगर यह मत सोचिए कि हालात बदल जाएंगे। पक्ष बदल जाएंगे, मगर सिलसिला यही रहेगा। अपनी बारी आएगी तो ये लोग सारी बातें भुलाकर एक हो जाएंगे। जनता को कौन पूछेगा?

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