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‘सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को नजरअंदाज कर हुई HPPSC चेयरपर्सन और मेंबर की नियुक्ति’

शिमला।। हिमाचल प्रदेश सरकार ने प्रदेश के पब्लिक सर्विस कमिशन के चेयरपर्सन और एक सदस्य की नियुक्ति की है। मगर आरटीआई में खुलासा हुआ है कि इस मामले में नियमों का पालन नहीं किया गया। हिमाचल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का सीधा उल्लंघन किया है, जिसमें कहा गया था कि पब्लिक सर्विस कमिशन में अपनी मर्जी से चेयरपर्सन या सदस्यों की नियुक्ति बंद कर देनी चाहिए। दरअसल आरटीआई मेंपता चला है कि जिन लोगों को सरकार ने नियुक्ति किया था, उन्होंने इन पदों के लिए आवेदन ही नहीं किया था। यही नहीं, इनके अलावा किन्हीं अन्य व्यक्तियों की चर्चा ही नहीं हुई इन पदों के लिए।

‘द वायर’ में छपी रिपोर्ट के मुताबिक हिमाचल प्रदेश के आरटीआई ऐक्टिविस्ट देव आशीष भट्टाचार्य को आरटीआई से पता चला है कि चेयरपर्सन नियुक्त किए गए मेजर जनरल धर्म वीर सिंह राणा (रिटायर्ड) और सदस्य नियुक्त मीरा वालिया ने इन पदों के लिए आवेदन ही नहीं किया था। साथ ही इन पदों के लिए अन्य लोगों के नामों पर विचार नहीं किया गया। गौरतलब है कि वालिया रिटायर्ड IAS ऑफिसर सुभाष आहलुवालिया की पत्नी हैं, जो कि मुख्यमंत्री के प्रिंसिपल प्राइवेट सेक्रेटरी भी हैं।

द वायर के मुताबिक इस मामले में भट्टाचार्य का कहना है कि पता चलता है कि हिमाचल प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का सम्मान नहीं किया। उन्होंने कहा कि हिमाचल के मुख्यमंत्री और ब्यूरोक्रैट्स को अदालत की अवमानना करने में कोई डर नहीं है। गौरतलब है कि 15 फरवरी 2013 को दिए गए फैसले (State of Punjab vs Salil Sabhlok) में जस्टिस ए.के. पटनायक कऔर जस्टिस मदन बी. लोकुर ने कुछ गाइडलाइन्स तय की थीं। जस्टिस लोकुर ने ऑर्डर में लिखा था कि पंजाब सरकार चेयरपर्सन और सदस्यों के चयन के लिए प्रक्रिया और दिशानिर्देशों को तय करे ताकि पंजाब  पब्लिस सर्विस कमिशन में मनमर्जी से नियुक्तियां न की जा सकें।

भट्टाचार्य द्वारा 17 मई 2017 को डाली गई आरटीआई से पता चला है कि राणा और वालिया की नियुक्ति में हिमाचल सरकार ने ऐसा कुछ नहीं किया। उन्होंने कहा, ‘दोनों की केसों में अडिशनल चीफ सेक्रेटरी (पर्सनल) तरुण श्रीधर के ऑफिस से नोट चला जिसमें मुख्यमंत्री और चीफ सेक्रेटरी से नियुक्तियों पर फैसला लेने के लिए कहा गया था। चीफ सेक्रेटरी ने अप्रूवल दिया और मुख्यमंत्री ने मीरा वालिया और मेजर जनरल धरम वीर सिंह का नाम सुझा दिया। उसी दिन राज्यपाल ने भी साइन कर दिए।’ आरटीआई ऐक्टिविस्ट का कहना है कि यह सिलेक्शन पूरी तरह गैरकानूनी है और सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन है।

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