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नूरपुर के सरकारी अस्पताल में लैब टेक्निशन पर दुर्व्यवहार का आरोप

कांगड़ा।। हिमाचल प्रदेश के अस्पतालों की हालत किसी से छिपी नहीं है। पिछली कांग्रेस सरकार भले ही लाख दावे करती थी, मगर उसके कार्यकाल में प्रदेश के लगभग सभी अस्पतालों की दुर्दशा थी और वहां डॉक्टर और अन्य स्टाफ भी की कमी थी। सबकुछ बदल देने का वादा करके सत्ता में आई बीजेपी की सरकार को जल्द ही छह महीने पूरे हो जाएंगे, मगर अस्पतालों की हालत में खास सुधार नहीं हुआ है। आए दिन नकारात्मक खबरें मीडिया में आती रहती हैं।

अब नूरपुर के सरकारी अस्पताल का एक वीडियो सामने आया है, जिसे रशपाल सिंह नाम के एक व्यक्ति ने पोस्ट किया है। रशपाल ने वीडियो को शेयर करते हुए लिखा है- नूरपुर हास्पिटल की व्यथा- मेरा बेटा पेट दर्द से कराह रहा है और SRLकर्मचारी का जवाब. चूंकि उनके इस वीडियो को सैकड़ों लोग शेयर कर चुके हैं, ऐसे में ‘इन हिमाचल’ ने रशपाल से संपर्क किया और उनसे जानना चाहा कि आखिर हुआ क्या था।

रशपाल सिंह ने ‘इन हिमाचल’ को बताया कि उनका बेटा 14 तारीख को उनके बेटे के पेट में दर्द हुआ। उस समय रशपाल किसी सत्संग में गए हुए थे। घर से फोन आया कि बेटे की तबीयत खराब है।

रशपाल बताते हैं, “घर पहुंचा तो बेटे की हालत खराब थी। 108 को बुलाया गया। 108 वालों ने कहा कि मरीज के साथ सिर्फ दो ही लोग आ सकते हैं। तो मैंने घर की दो महिला दो सदस्यों को भेज दिया। मैं जब खुद बाद में अस्पताल पहुंचा तो देखा कि वहां कोई पूछने वाला नहीं है, इलाज वगैरह कुछ नहीं हो रहा था।”

“फिर मैंने एक बंदे को फोन किया फिर उसने यहां बात की तो ट्रीटमेंट शुरू हुआ। दो इंजेक्शन लगा दिए गए और दवाई दी गई। एक टेस्ट लिखा गया कि इसे तुरंत करवाइए। फिर मैं नीचे लैब टेक्निशन के पास गया तो उसका व्यवहार तो आप देख ही रहे हैं।”

वीडियो देखें-

रशपाल बताते हैं कि इसके बाद वह परेशान हो गए और अपने बेटे को वहां से किसी निजी अस्पताल में ले गए। वह कहते हैं, “इनकी ड्यूटी होती है कि मरीज के पास जाकर सैंपल लेकर आएं। जब मैं पहली बार नीचे गया था तो लैब टेक्निशन को कहा भी था कि मरीज उल्टी कर रहा है, हालत खराब है। आपको दो मिनट रुकना पड़े तो रुक जाएं।”

“जब बाद में मैंने उनसे आने को कहा तो वह इनकार करने लगे। कहने लगे कि स्ट्रेचर पर मरीज को ले आइए। यह अजीब बात थी कि वह ऊपर नहीं आ सकते और मरीज को नीचे लाने को कहा जा रहा था। इस रवैये से परेशान होकर मैंने बच्चे को बाहर निजी अस्पताल में ले जाना ही ठीक समझा।”

रशपाल बताते हैं, “रात को डॉक्टर और नर्स वगैरह भी थे, स्टाफ काफी था मगर रात को पता नहीं मेरे साथ ही ऐसा हुआ सभी से ऐसा करते हैं। किसी से सीधे मुंह यहां बात नहीं की जाती, जब तक कि किसी से फोन न करवाया जाए।”

इस घटना के संबंध में अस्पताल प्रशासन या वीडियो में दिख रहे लैब टेक्निशन की तरफ से कोई भी आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है। उनका पक्ष आते ही उसे भी यहां प्रकाशित किया जाएगा।

रशपाल सिंह

बहरहाल, यह वीडियो दिखाता है कि रात को सरकारी अस्पतालों में मरीज भगवान भरोसे होते हैं। स्टाफ का रवैया किस तरह का रहता है, यह भी पता चलता है। यह सही है कि एक अस्पताल एक स्टाफ मेंबर की घटना के आधार पर पूरे प्रदेश के अस्पतालों या डॉक्टरों को दोष नहीं दिया जा सकता। मगर आए दिन ऐसी खबरें आती रहती हैं कि अस्पताल बदहाल हैं। कहीं पर संसाधन नहीं हैं तो कहीं पर सुविधाएं नहीं हैं। प्रदेश के जोनल अस्पतालों के साथ-साथ टांडा मेडिकल कॉलेज व आईजीएमसी तक में हालात बहुत अच्छे नहीं कहे जा सकते। फिर छोटे अस्पतालों की हालत का अंदाजा ही लगाया जा सकता है।

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