शिमला।। हिमाचल प्रदेश सरकार कुछ वॉल्वो बसों को बंद करने जा रही है। यह फैसला इन बसों के घाटे में होने के कारण लिया जा रहा है। ऐसी खबर है कि हिमाचल से दिल्ली और चंडीगढ़ के रूट पर चलने वाली कई बसें घाटे में है और परिवहन मंत्री ने एचआरटीसी को कहा है कि इन्हें बंद किया जाए। सरकार द्वारा ठेके पर चलाई जा रही इन बसों को लेकर निगम को अब एक प्रस्ताव सरकार को सौंपना होगा।
बता दें कि पिछले महीने ही सरकार ने मनाली-दिल्ली, धर्मशाला-दिल्ली और शिमला-दिल्ली रूट पर एक-एक बस बंद की थी। लेकिन अगर ये रूट इतने ही घाटे के हैं तो इनपर अवैध प्राइवेट बसें क्यों ठसाठस भरी चल रही हैं? जी हां, देश की राजधानी से हिमाचल के तीन महत्वपूर्ण स्थानों- मनाली, धर्मशाला और शिमला के लिए कई सारी प्राइवेट वॉल्वो फिक्स्ड रूटों पर चल रही हैं जो अवैध हैं।
अभी तो कुछ ही सरकारी वॉल्वो बसों को बंद करने की तैयारी है मगर जिस तरह बिना रोक टोक अवैध लगजरी बसें चल रही हैं, उस तरह से तो एक दिन सभी सरकारी बसों को बंद करने की नौबत आ जाए तो हैरानी नहीं होगी। जब सरकारी वॉल्वो का किराया प्राइवेट बसों से दोगुना महंगा होगा तो ठेके वाली क्या, वे बसें भी बंद करनी पड़ेंगी जिन्हें एचआरटीसी खुद चला रही है।
इन अवैध बसों से घाटे में एचआरटीसी बसें
ये अवैध बसें सीधे-सीधे एचआरटीसी की बसों को नुकसान पहुंचा रही हैं। मगर हिमाचल सरकार इन बसों को तो बंद नहीं करवा रही, इनके कारण घाटे में आई एचआरटीसी की बसों को बंद करने की तैयारी में है। अगर इन अवैध बसों पर नकेल कसी जाए तो स्वाभाविक तौर पर एचआरटीसी घाटे में नहीं जाएगी। लेकिन सरकार की ओर से इन बसों को लेकर अब तक कोई कदम नही उठाया गया है। नतीजा यह कि सरकारी बसें कॉम्पिटिशन से बाहर हो रही हैं।
दिल्ली-मनाली रूट पर एक दिन में 42 प्राइवेट वॉल्वो
अब अगर एक आध प्राइवेट बस चल रही हो तो समझा जा सकता है कि पता नहीं चल रहा। मगर रेडबस वेबसाइट पर आप दिल्ली से मनाली जाना चाहें तो 42 प्राइवेट बसों के ऑप्शन आते हैं। और इनका किराया शुरू होता है 750 रुपये से और औसत किराया है 1100 रुपये। अब अगर आप एचआरटीसी की वेबसाइट देखें तो उसमें इसी रूट पर 8 बसें है और उनका किराया है 1688 रुपये। यानी एक जैसी बस में किराये का सीधा 550 रुपये का फर्क। नीचे देखें-
दिल्ली-मनाली रूट पर रेडबस पर प्राइवेट लग्जरी बसों का किराया
इसी रूट पर एचआरटीसी वॉल्वो बसों का किराया
धर्मशाला के लिए भी यही हालत
इस रूट पर भी कई प्राइवेट बसें चलती हैं और उनका किराया शुरू होता है 800 रुपये से। औसत किराया प्राइवेट बसों का है 1000 रुपये के आसपास। लेकिन आपको एचआरटीसी की बस से जाना है तो किराया है- 1318 और औसत किराया 1350 रुपये। यानी 350 रुपये का फर्क। हालांकि शिमला में ये तरह दिल्ली शिमला पर प्राइवेट बसों का किराया 887 से शुरू होता है और 1280 तक है। जबकि एचआरटीसी की लग्जरी बसों में ये किराया है 965 रुपये। यानी लगभग एक जैसा। शिमला रूट पर ज्यादा प्राइवेट बसें नहीं हैं मगर मनाली और धर्मशाला रूट पर बहुत सी हैं। और इन रूटों पर किराए का ये फर्क यात्रियों को प्राइवेट बसों की ओर खींचता है।
प्राइवेट वॉल्वो सस्ती क्यों है
दरअसल ये अवैध बसें टूरिस्ट परमिट वाली हैं और ये ग्रुप बुकिंग ही करवा सकती हैं। यानी अगर आपके कॉलेज, स्कूल, कंपनी या परिवार के सदस्यों को एकसाथ कहीं घूमने जाना है तो इन बसों को बुक करवाया जा सकता है। मगर ये बसें किन्हीं दो स्थानों के बीच में तय समय ऐसे पर चल रही हैं, मानों इन्हें इसका रूट परमिट मिला हो। जबकि ये ऐसा नहीं कर सकतीं और ऐसा करना अवैध है। यानी ये बसें दिल्ली से धर्मशाला या मनाली के लिए किसी ग्रुप को तभी ला सकती हैं, जब वह ग्रुप इन्हें बुक करे। ऐसा नहीं कि ये रोज शाम आठ या नौ बजे चलें और सवारियों से टिकट लें।
टैक्स चोरी कर रही हैं ये बसें
अब इस तरह से ये बसें न सिर्फ कानून तोड़ रही हैं बल्कि एचआरटीसी और अन्य राज्यों के परिवहन निगमों को भी चूना लगा रही हैं, क्योंकि ये सरकारी लग्जरी बसों की तुलना में कम किराया वसूलती हैं। और लोगों को तो वैसे भी कम किराया सुविधाजनक होता है। मगर ये कम किराया इसलिए वसूलती हैं क्योंकि ये टैक्स की चोरी करती हैं। ये जिन-जिन राज्यों से होकर परमानेंट रूट चला रही हैं, उन्हें टैक्स नहीं देतीं। इसीलिए इनका किराया सस्ता होता है।
इसे आप इस तरह समझ सकते हैं कि हिमाचल रोड ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन की कोई बस दिल्ली तक जाती है तो उसमें प्रति सवारी टिकट के हिसाब से राज्यों को टैक्स देना होता है। आपने टिकट देखा भी होगा, उसमें लिखा होता है- पंजाब टैक्स, हरियाणा टैक्स, दिल्ली टैक्स। ये आपके टिकट पर लगने वाला वह टैक्स होता है, जो एचआरटीसी को इन राज्यों को देना होता है।
अब इस कारण वैध सरकारी वॉल्वो बसों और अवैध प्राइवेट वॉल्वो बसों के किराए में भारी अंतर आ जाता है। अब अगर आप ग्राहक हैं तो आप तो चाहेंगे कि एक जैसी सुविधा वाली यात्रा कम किराए पर हो। तो आप स्वाभाविक तौर पर अवैध प्राइवेट बसों से जाएंगे और अपने आप सरकारी बस घाटे में चली जाएगी।
अब क्या कर रही सरकार
जो सरकार खुलेआम सड़कों पर दौड़ रही इतनी बड़ी बसों को देख नहीं पा रही, इन्हें रोक नहीं पा रही, वह सरकार कैसे बेहद छोटी मात्रा में स्मगलिंग करके लाए जा रहे चिट्टे को पकड़ सकती है? यानी सरकार की इच्छाशक्ति ही नहीं है। पहले तो आरटीओ की भूमिका ही इस मामले में संदिग्ध थी, मगर अब सरकार पर भी लोग प्रश्न उठाने लगे हैं। खासकर हाल ही में जब लग्जरी बसों के किराए भी सरकार ने बढ़ाए तो प्राइवेट बसों की तुलना में उनका किराया बहुत बढ़ गया। इस तरह से ये बसें कॉम्पिटिशन से बाहर हो गई हैं। पांच सौ रुपये का फर्क जनता के लिए मायने रखता है।
लेकिन अवैध बसों को बंद करवाने के बजाय एचआरटीसी की बसों को ही बंद किया जा रहा है। आज ही एक दैनिक समाचार पत्र में परिवहन मंत्री गोविंद सिंह ठाकुर का बयान छपा है, “प्रदेश सरकार उन वॉल्वो बसों को बंद करने जा रही है जो घाटे में चल रही हैं। एसी डीलक्स बसों को भी बंद किया जा रहा है। प्रस्ताव तैयार करने को कहा गया है।”
क्या किया जाना चाहिए
बंद करने के बजाय अवैध बसों पर नकेल कसने के लिए क्यों प्रस्ताव तैयार नहीं किया जा रहा? या एचआरटीसी की बसों को कॉम्पिटिशन में लाने के लिए क्यों प्रस्ताव नहीं लाया जा रहा? और अगर सरकार इस काम में अक्षम है तो बसें चला ही क्यों रही है? और अगर वह अवैध बसों पर नकेल नहीं कस सकती तो कोई ऐसा कानूनी रास्ता क्यों नही निकालती इस सेक्टर में वैध रूप से प्राइवेट बसें चलें और बदले में सरकार को कमाई हो?
जनता को मतलब नहीं कि कौन सी बस वैध, कौन सी अवैध है। वह सुविधाएं देखती है और बचत देखती है। अगर आपको कम पैसे में बड़ी पानी की बोतल, कंबल आदि मिले और दूसरी तरफ ज्यादा पैसे देकर सिर्फ पानी की छोटी बोतल मिले तो आप कौन सी बस में जाएंगे? सरकार को सोचना चाहिए कि कैसे इन बसों को कॉम्पिटिशन में लाना है।
आम जनता के बीच हमेशा से यह चर्चा है कि इस तरह की अवैध बसों को चलने देने के बीछे बहुत बड़ा खेल चलता है और कमाई ऊपर तक जाती है। ऐसे में अगर सरकार प्राइवेट अवैध बसों की ओर आंख मूंदकर बैठी रहेगी और उनके कारण घाटे में जा रही एचआरटीसी की बसों को ही बंद करती रहेगी तो उसकी छवि के लिए यह अच्छी बात तो नहीं है।