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मंत्री-विधायक सिफारिश कर सकते हैं, जरूरी नहीं तबादला कर ही दिया जाए: हाई कोर्ट

शिमला।। हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने एक तबादले के संबंध में एक कर्मचारी की याचिका पर सुनवाई करते हुए सख्त टिप्पणी की है। न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान व न्यायाधीश सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने महज राजनीतिक दल के सदस्य की सिफारिश के आधार पर जारी तबादला आदेश भी रद्द कर दिए।

खंडपीठ ने कहा कि यह बड़े खेद का विषय है कि तबादला आदेश जारी या रद्द उन लोगों की सिफारिश से हो रहे हैं, जिनका प्रशासनिक विभाग में कोई स्थान नहीं है। इस तरह का कृत्य प्रशासन के सिद्धांतों के लिए पूरी तरह से घातक है।

कोर्ट ने कहा कि तबादला होना किसी कर्मचारी के लिए जरूरी घटना है, मगर यह तबादला आदेश तय सिद्धांतों या दिशा-निर्देशों के अनुरूप ही होने चाहिए न कि ऐसे व्यक्ति के कहने पर, जिसका प्रशासनिक तंत्र से कोई लेना देना नहीं होता। एक अच्छे प्रशासन के लिए बार-बार तबादला आदेश का भय स्वच्छ प्रशासनिक कार्य में बाधा उत्पन्न करता है। कोर्ट ने तबादला आदेश को कानून के विपरीत पाते हुए रद्द कर दिया।

कोर्ट ने कहा कि तबादला नीति में कर्नाटक राज्य की तर्ज पर अतिरिक्त प्रावधान जोडऩे की आवश्यकता है। जहां पर कर्मचारी अधिकार के तौर पर तबादला करने की न तो मांग कर सकता है और न ही राजनीतिक दबाव के चलते किसी के तबादला आदेश जारी किए जा सकते हैं।

कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट और अन्य हाई कोर्ट के मामलों का उल्लेख करते हुए कहा कि किसी विधायक, सांसद या मंत्री के पास किसी कर्मचारी की शिकायत पाई जाती है तो उनके पास तबादला करने की सिफारिश करने का अधिकार है। मगर अंतिम निर्णय लेने का अधिकार केवल प्रशासनिक विभाग के पास ही है। कोर्ट ने तबादला आदेशों को कानून के विपरीत पाया और रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा कि कोर्ट में तबादला मामलों की संख्या को कम करना जरूरी है।

कोर्ट ने पहले के एक अन्य मामले में दिए सुझाव का भी उल्लेख किया। कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार भी हरियाणा की तर्ज पर अपने विभागों, बोर्डों व निगमों जिनमें कर्मचारियों की संख्या 500 से अधिक है उनके लिए ऑनलाइन स्थानांतरण नीति बनाए। कोर्ट ने आदेश दिए हैं कि निर्णय की प्रतिलिपि को प्रदेश के मुख्य सचिव को भेजा जाए, ताकि तबादला नीति में जरूरी संशोधन किया जा सके।

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