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नहीं रहे भारत में ‘दूरसंचार क्रांति के मसीहा’ कहलाने वाले पंडित सुखराम

पंडित सुखराम

मंडी।। पूर्व केंद्रीय मंत्री पंडित सुखराम का 94 साल की उम्र में निधन हो गया है। उन्होंने पांच बार विधानसभा और तीन बार लोकसभा चुनाव जीता था। मंडी नगर परिषद में बतौर सचिव सेवाएं देने के बाद पंडित सुखराम ने मंडी से ही अपना सियासी सफर शुरू किया था।पंडित सुखराम 1963 से 1984 तक मंडी विधानसभा सीट से विधायक रहे, 1984 में मंडी लोकसभा सीट से सांसद चुने गए और राजीव गांधी की सरकार में राज्य मंत्री बने। 1996 में फिर मंडी लोकसभा सीट से जीते और केंद्रीय दूरसंचार मंत्री बने।

पंडित सुखराम को भारत में टेलिफोन क्रांति लाने का श्रेय भी दिया जाता है मगर 1996 में लगे करप्शन के आरोपों ने उनके राजनीतिक करियर पर बड़ा दाग लगा दिया था। बावजूद इसके वह मंडी जिले, खासकर मंडी सदर विधानसभा और आसपास के कुछ इलाकों में प्रासंगिक बने रहे।

हिमाचल कांग्रेस में वीरभद्र सिंह और सुखराम के बीच प्रतिद्वंद्विता का भी एक दौर रहा

दूरसंचार घोटाला और सज़ा
साल 1996 में जब देश में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार थी, तब  दूरसंचार मंत्री सुखराम के घर पर सीबीआई के छापे पड़े। उनके दिल्ली और मंडी के घरों से नोटों से भरे सूटकेस और बैग मिले जिनमें चार करोड़ रुपये से ज्यादा की बरामदगी हुई। इन पैसों का वैध स्रोत न बता पाने पर वह फंस गए। उनका आरोप था कि उन्हें पार्टी की आंतरिक राजनीति का शिकार होना पड़ा है। गिरफ्तारी के बाद सुखराम को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा और कांग्रेस ने भी उन्हें निकाल दिया।

2002 में उन्हें तीन साल की सजा हुई। मंत्री पद का दुरुपयोग करते हुए उन्होंने एक प्राइवेट कंपनी को सामान सप्लाई करने का ठेका दिया जिससे सरकार को 1.66 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। पद का दुरुपयोग करते हुए उन्होंने एक प्राइवेट कंपनी को ठेका दिया और बदले में तीन लाख रुपये की रिश्वत ली। एक कंपनी को उन्होंने दूरसंचार विभाग को 30 करोड़ रुपये के केबल बेचने के लिए ठेका दिया था और इसके एवज में पैसा लिया।

2011 में उन्हें दोषी पाया गया और पांच साल की सजा दी गई। इससे पहले सुखराम को आय से अधिक संपत्ति के मामले में 2009 में दोषी ठहराया गया। उन पर 4.25 करोड़ रुपये अवैध तरीके से कमाने के आरोप लगे थे। सुखराम को सजा दिलाने में कांग्रेस नेताओं का ही बड़ा रोल था। पीवी नरसिम्हा राव और तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी ने CBI को बयान दिया था कि बरामद किया गया पैसा सुखराम का ही है।

कभी इधर, कभी उधर
इससे पहले, पार्टी से निकालने जाने के बाद पंडित सुखराम ने 1997 में हिमाचल विकास कांग्रेस बनाई और 1998 के विधानसभा चुनाव में पांच सीटें जीतकर भाजपा से गठबंधन कर सरकार में शामिल भी हुए। सुखराम सहित पांच विधायक मंत्री बने। बेटे अनिल शर्मा 1998 में राज्यसभा के लिए चुने गए। 2003 में सुखराम मंडी से फिर जीते और इस बार कांग्रेस से हाथ मिलाया। 2017 में सुखराम ने बेटे के साथ भाजपा जॉइन की लेकिन दो साल में ही कांग्रेस में ‘घर वापसी’ की। पोते आश्रय को कांग्रेस के टिकट से मंडी लोकसभा चुनाव लड़वाया जिसमें पाते की जमानत जब्त हो गई। अभी सुखराम के बेटे अनिल शर्मा मंडी से भाजपा विधायक हैं लेकिन पार्टी से दूरियां बनी हुई हैं।

 मोबाइल लाने की प्रेरणा
पंडित सुखराम 1993 से 1996 तक दूरसंचार मंत्री थे। एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि कैसे भारत में मोबाइल टेक्नोलॉजी लाई गई। 31 जुलाई 1995 को पहली बार भारत में मोबाइल कॉल की गई थी। मोबाइल से यह बातचीत केंद्रीय दूरसंचार मंत्री सुखराम और पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ज्योति बसु के बीच हुई थी। फोन नोकिया का था। उन्होंने बताया था कि एक बार वह दूरसंचार मंत्री की हैसियत से जापान गए थे। उन्होंने देखा कि ड्राइवर ने अपनी जेब में मोबाइल फोन रखा है। यह देखकर उन्हें लगा कि अगर जापान के पास यह तकनीक हो सकती है तो भारत में क्यों नहीं। वह पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को भी इस बात का क्रेडिट देते थे, जो भारत में कंप्यूटर और टेलिफोन को घर-घर पहुंचाना चाहते थे।

हिमाचल जैसे कठिन भौगोलिक परिस्थितियों वाले प्रदेशों के लोग आज भी पंडित सुखराम को याद करते हैं। अगर दूर कहीं एक घर पर भी फोन लगाना होता था तो उसके लिए मीलों तक खंबे लगाकर फोन के तार लगाए जाते थे। जब कांग्रेस से निकाले जाने के बाद पंडित सुखराम ने हिमाचल में हिमाचल विकास कांग्रेस नाम से पार्टी बनाकर चुनाव लड़ा था, तब उन्होंने टेलिफोन चुनाव चिह्न मांगा था और उन्हें यह मिला भी था। चुनाव प्रचार के लिए हिविकां ने गानों की एक कैसेट भी लॉन्च की थी जिसमें कुछ गाने थे। एक गाने के बोल थे- बहुत हो गई नारेबाज़ी काम होना चाहिए, अबकी बार मुख्यमंत्री सुखराम होना चाहिए।

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