ऊना।। हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले के गगरेट में अवैध ढंग से चल रहे नशा मुक्ति केंद्र में एक युवक की संदिग्ध हालात में मौत की खबर कवर करने वाले एक पत्रकार को धमकी मिली है। पत्रकार अविनाश विद्रोही ने बताया कि जिस इमारत में यह अवैध नशा मुक्ति केंद्र चल रहा था, उसके मालिक ने उन्हें फोन करके धमकाया है। यह पूरा का पूरा मामला किसी बड़े खेल की ओर इशारा कर रहा है।
अवैध दवाइयां मिलने से शुरू हुआ सिलसिला
दरअसल पिछले दिनों गगरेट पुलिस ने गांव बढोह से एक कार सवार से 320 गोली प्रतिबंधित दवाई की पकड़ी थी। पूछताछ में उसने एक दवाई के कारोबारी का नाम लिया। पुलिस जब उसके घर पहुंची तो ये कारोबारी गायब मिला। इस बीच, गगरेट में चल रहे एक नशा मुक्ति केंद्र में एक युवक की मौत की खबर इलाके में फैली। ध्यान देने की बात यह है कि इस नशा मुक्ति केंद्र का संबंध उसी कारोबारी से बताया जा रहा है जो प्रतिबंधित दवाएं पकड़े जाने के बाद फरार हो गया था।
नशा मुक्ति केंद्र में युवक की मौत की चर्चा
जब शहर में नशा मुक्ति केंद्र में एक युवक की मौत की चर्चा फैली तो पुलिस ने पड़ताल शुरू की। शुरू में पुलिस को जांच मे कुछ नहीं मिला। लेकिन बुधवार शाम को डीएसपी अंब सृष्टि पांडे ने नशा मुक्ति में दबिश दी तो वहां 19 लोग मिले। ये सभी नशे की लत से मुक्ति पाने के लिए यहां भर्ती थे। पता चला कि इस नशा मुक्ति केंद्र को चलाने वाला और भी कई जगह ऐसे केंद्र चला रहा है। यहां पर यह भी पता चला कि यहीं पर रह रहे एक युवक की वाकई मौत हुई है, जिसकी एक रात को तबीयत खराब हो गई थी।
गगरेट अस्पताल से सामने आई जानकारी
पुलिस ने जांच आगे बढ़ाई तो सिविल हॉस्पिटल गगरेट में नौ मार्च को दर्ज एक रिपोर्ट ने बड़े खेल की ओर इशारा किया। यहां बताया गया कि एक युवक को अस्पताल में लाया गया था और उसे डॉक्टर ने मृत घोषित किया था। मृतक के साथ आए दो लोगों ने डॉक्टर को बताया था कि यह किडनी का रोगी था। मगर मृत घोषित किए जाने के बावजूद ये लोग डॉक्टर से बहस करके शव को होशियारपुर (पंजाब) ले गए।
इस संबंध में पूछताछ करने पर नशा मुक्ति केंद्र के संचालकों का कहना था कि युवक को होशियारपुर रेफर किया गया था। मगर तकनीकी रूप से गगरेट से किसी को होशियारपुर रेफर करना संभव नहीं था। ऐसे में इस केंद्र के संचालकों को लेकर कई सारे सवाल खड़े होने लगे। जब पुलिस ने तफ्तीश का दायरा बढ़ाया तो एक नई जानकारी सामने आई। यह नशा मुक्ति केंद्र अवैध था।
अवैध नशामुक्ति केंद्र में क्या होता था?
पुलिस ने जांच की तो पता चला कि संचालकों के पास इस केंद्र को चलाने के लिए कोई इजाजत नहीं थी। डीएसपी अंब और बीएमओ गगरेट ने तुरंत इस केंद्र को बंद करवा दिया। यह बात साफ़ हो गई कि पिछले कई दिनों से गगरेट में चोरी-छिपे इसे चलाया जा रहा था। बिल्डिंग के बाहर न कोई बोर्ड लगा था न लोग यहां आ सकते थे। ऐसी खबरें सामने आईं कि पंजाब से नशे के आदी युवाओं को नशा छुड़ाने का झांसा देकर इस पुनर्वास केंद्र में लाया जाता था।
नगर पंचायत अध्यक्ष की थी इमारत
पुलिस ने जांच के दौरान पाया कि यह इमारत वास्तव में गगरेट नगर पंचायत के अध्यक्ष की है। ऐसी खबरें भी सामने आईं कि शुरू में प्रतिबंधित दवाएं मिलने के बाद फरार कारोबारी, जो इस फर्जी नशा मुक्ति केंद्र को चलाता था, वह नगर पंचायत अध्यक्ष का करीबी है। बता दें कि नगर पंचायत अध्यक्ष पहल पहले भी अवैध दवाएं रखने का मामला है और उनका लाइसेंस इसी वजह से कैंसल भी हो चुका है। मगर पंचायत अध्यक्ष का कहना है कि उन्हें इसकी कोई जानकारी नहीं कि यह तथाकथित नशा मुक्ति केंद्र कौन चला रहा था।
पत्रकार को धमकी
प्रतिबंधित दवाएं मिलने, कारोबारी के फरार होने, नशा मुक्ति केंद्र में युवक की मौत होने और इस केंद्र के भी अवैध पाए जाने के मामले को सामने लाने में अहम भूमिका रही गगरेट के पत्रकार अविनाश विद्रोही की। हिंदी अखबार जागरण पर उनकी खबरें इस दौरान लगातार प्रकाशित हुईं और पुलिस पर भी ढंग से कार्रवाई करने का दबाव बना। इस बीच अविनाश को एक फ़ोन आया।
अविनाश को धमकी देकर कहा गया, “बड़ी खबर लगाते हो वीर जी, किसी दिन मैंने कस के गले लगा लिया तो तेरे प्राण निकल जाएंगे। याद रख, अखबार मैंने रख ली है और ब्याज के साथ जल्दी ही तेरा हिसाब होगा।” स्पष्ट है, यह जान से मारने की धमकी है। अविनाश ने ‘इन हिमाचल’ को बताया कि इस धमकी के संबंध में उन्होंने डीएसपी अंब और एसपी उना को शिकायत दी है।
इस पूरे मामले में नशा माफिया की भूमिका होने की आशंका जताई जा रही है। ऐसी चर्चा है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि जो लोग नशे के कारोबार से जुड़े हैं, वही नशा मुक्ति केंद्र चलाने के नाम पर प्रतिबंधित दवाओं का कारोबार कर रहे हों। यह मामला जितना सीधा लग रहा है, उतना है नहीं।
पिछले कुछ समय से हिमाचल प्रदेश, खासकर पंजाब से लगते इलाकों में अचानक नशे की समस्या बढ़ी है। ऐसे में सरकार को देखना होगा कि इसके पीछे कौन लोग हैं। कहीं यह एक संगठित अपराध की शक्ल लेने की ओर तो नहीं बढ़ रहा। साथ ही, पुलिस को पत्रकारों को भी सुरक्षा देनी चाहिए ताकि वे निर्भीक होकर अपना काम कर सकें।