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कब तक रहेगी हाई रिस्क वाले स्वास्थ्यकर्मियों की रिटायरमेंट पर रोक?

उम्रदराज लोगों को ज्यादा है खतरा (प्रतीकात्मक तस्वीर)

इन हिमाचल डेस्क।। हिमाचल प्रदेश में कोविड-19 से अब तक 113 लोगों की मौत हो चुकी है। इस बीच नेरचौक मेडिकल कॉलेज में तैनात डॉक्टर प्रदीप बंसल का भी चंडीगढ़ में देहांत हो गया। कम्यूनिटी मेडिसन विभाग के एचओडी डॉक्टर बंसल कोरोना संक्रमित पाए गए थे। इसके बाद आईजीएमसी में पांच दिन उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया फिर दो दिन पहले चंडीगढ़ के निजी अस्पताल शिफ्ट किया गया था।

प्रदेश में दिनोदिन कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं और चूंकि प्रदेश की सीमाएं पूरी तरह खुल चुकी हैं और अन्य पाबंदियां भी नरम पड़ी हैं, यह आशंका जताई जाने लगी है कि अभी केस और तेजी से बढ़ेंगे। अब कोरोना से मरने वालों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है। वे लोग ज्यादा खतरे में हैं जो पहले से हाई रिस्क में हैं।

चूंकि कोरोना हर व्यक्ति पर अलग असर डाल रहा है, ऐसे में किसी भी तरह का रिस्क नहीं लिया जा सकता। कुछ लोग मामूली जुकाम से पीड़ित होकर ठीक हो जा रहे हैं तो कुछ में लक्षण भी नहीं दिख रहे। जबकि कुछ लोग जो पहले स्वस्थ थे, वे गंभीर रूप से बीमार हो जा रहे हैं। कइयों की जान भी जा रही है। ऐसे में चिंता जताई जा रही है कि स्वास्थ्य विभाग में डॉक्टरों, स्वास्थ्यकर्मियों और पैरामेडिकल स्टाफ की रिटायरमेंट पर लगी रोक कितनी सही है?

मेडिकल स्टाफ की कमी न हो, इसके लिए रिटायरमेंट पर रोक लगाना तात्कालिक उपचार तो है मगर स्थायी समाधान नहीं। मार्च के बाद से लगातार कई बार रिटायरमेंट को टाला गया है। चूंकि हिमाचल में रिटायरमेंट की उम्र 58 साल है, ऐसे में सभी लोग वे हैं जो हाई रिस्क एज (60 साल या इससे अधिक) के करीब हैं। यानी वे भी ज्यादा खतरे में हैं। इनमें भी कई लोग वे हैं जो डायबिटीज़, ब्लड प्रेशर, थायरॉइड और अन्य कई बीमारियों से जूझ रहे हैं।

लगातार अस्पतालों और कोविड सेंटरों में लगने वाली इनकी ड्यूटी इन्हें कभी भी कोरोना संक्रमित कर सकती है और ऐसी स्थिति में इनकी जान को भी खतरा हो सकता है। ऐसे में स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों में चिंता का माहौल है कि क्यों नहीं सरकार हाई रिस्क वाले कर्मचारियों को रिटायर कर उनकी जगहों पर क्रमबद्ध तरीके से कोई भर्ती करती है। अधिकारियों के पदों को प्रमोशन से भरा जा सकता है और नए कर्मचारी भरने के लिए एक पारदर्शी प्रक्रिया बनाकर भर्ती की जा सकती है।

ऐसा करना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि वैक्सीन मिलने और उसे सभी लोगों तक पहुंचाने जाने तक कोरोना संकट खत्म नहीं होगा। तो क्या तब तक हाई रिस्क वाले कर्मचारियों के भरोसे ही अस्पताल चलाए जाएंगे? ऊपर से कोरोना से जान गंवाने वाले स्वास्थ्यकर्मियों का सरकार कोई हिसाब नहीं रख रही है। यह दिखाता है कि सरकारें इस संबंध में जरा भी विचार नहीं कर रही हैं।

यह मुद्दा न तो संसद में उठा न हिमाचल में हाल ही में संपन्न विधानसभा सत्र में कि सरकार के पास कोरोना के कारण रोककर रखे गए कर्मचारियों को रिटायर करने और उनकी जगह भरने को लेकर क्या योजना है।

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