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जलवायु परिवर्तन भी पहाड़ दरकने का मुख्य कारण

शिमला।। हिमाचल में आए दिन भूस्खलन की घटनाएं बढ़ रहीं हैं। लगातार पहाड़ दरकने की घटनाएं सामने आ रही है। हिमाचल प्रदेश के अलावा अन्य पहाड़ी राज्यों में भी पहाड़ दरक रहे हैं। इससे जानमाल का नुकसान हो रहा है। विद्युत प्रोजेक्ट इसके पीछे एक बड़ा कारण है। लेकिन जलवायु परिवर्तन को भी इसका कारण माना जा रहा है।

बरसात का मौसम आते है पहाड़ी राज्यों में भूस्खलन की घटनाएं बढ़ी हैं। बरसात और सर्दी के मौसम में बड़ा बदलाव आया है। असमय बर्फबारी और बरसात हो रही है। तेज बारिश पहाड़ों के दरकने की एक वजह है।

यह बात गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान अल्मोड़ा के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. जगदीश चंद्र कुनियाल ने कही है। डॉ कुनियाल ढाई दशक से भी अधिक वर्षों तक जिला कुल्लू के मौहल स्थित गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान में सेवाएं दे चुके हैं।

डॉ कुनियाल का कहना है कि अब बारिश का स्तर बढ़ने लगा है। जो बारिश 24 घंटे तक होनी चाहिए, वह मात्र तीन से चार घंटे में हो जा रही है। जलवायु परिवर्तन हो रहा है। बारिश का पानी जमीन में रसने के बजाय पहाड़ों व कंदराओं में घुस रहा है। यही वजह है कि मौसम साफ होने पर पहाड़ों में दरारें होने से ये गिर पड़ते हैं।

डॉ कुनियाल ने कहा कि विकास जरूरी है। सड़कें निकालना भी जरूरी है। विकास को रोका नहीं जा सकता है। लेकिन यह सब वैज्ञानिक आधार पर होना चाहिए। सड़कें और टनल बनाने के बाद पहाड़ों का सरंक्षण भी जरूरी है, ताकि भूस्खलन को रोका जा सके। इसके लिए घास लगाने के साथ झाड़ियां और पौधारोपण किया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि इन पहाड़ दरकने और भूस्खलन की घटनाओं को रोकने के लिए वैज्ञानिक ढंग से कदम उठाने की जरूरत है। समय-समय पर संवेदनशील जगहों पर वैज्ञानिक आधार पर निरीक्षण होता रहना चाहिए। चार से पांच साल बाद निरीक्षण होना चाहिए। इससे पहाड़ की स्थिति को भांपा जा सकता है। जिससे लोगों की ज़िंदगी और अन्य नुकसान को बचाने में मदद मिलेगी।

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