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शिमला: कोरोना संक्रमित का शव डीजल से जलाने पर सरकाघाट में रोष

शिमला।। आईजीएमसी शिमला में जान गंवाने वाले कोरोना संक्रमित युवक का रात को आनन फानन में अंतिम संस्कार कर दिए जाने को लेकर सरकाघाट में रोष फैल गया है। यह युवक मूलतः यहीं का था और उसकी मां को भी अब कोरोना पॉजिटिव पाया गया है। लोगों में गुस्सा है कि युवक के शव को ‘लावारिस’ क्यों बताया गया और आधी रात को डीजल से जलाने की क्या नौबत आई। यह WHO की गाइडलाइंस का भी उल्लंघन है जिसके तहत मृतकों का अंतिम संस्कार सम्मान के साथ होना चाहिए। वे फेसबुक और व्हाट्सऐप पर इस संबंध में नाराज़गी जाहिर कर रहे हैं।

इस मामले को लेकर सरकाघाट के कांग्रेस नेता यदोपति ठाकुर ने भी गंभीर सवाल उठाए हैं। फेसबुक पोस्ट में उन्होंने लिखा है, “ऐसी क्या इमरजेंसी थी कि आधी रात को संस्कार करना पड़ा? क्या उसके लिए सुबह तक का इंतज़ार नहीं किया जा सकता था यह कोई लावारिस बच्चा नहीं सरकाघाट व प्रदेश का बेटा था।”

आगे वह लिखते हैं, “माँ-बाप को अगर आइसोलेट कर दिया था तो उसके ओर भी रिश्तेदार थे जिनकी देखरेख में संस्कार किया जा सकता था। बेटे के माँ-बाप को अंतिम संस्कार के बाद भी तो आइसोलेट किया जा सकता था। ऐसी क्या मजबूरी थी कि उसकी बॉडी को अन-क्लेमेड घोषित कर के लावारिस की तरह आधी रात के अंधेरे में अंतिम संस्कार करना पड़ा? WHO की गाइडलाइंस हैं कि अंतिम क्रिया कर्म को मृतक के धर्म के अनुसार उसके परिवार की सहमति से किया जाना चाहिए।यहां सारे नियम कायदे दरकिनार कर दिए गए”

यदोपति ने लिखा है, “हिंदू या किसी ओर धर्म के अनुसार भी अंतिम क्रिया कर्म भारत मे सूरज ढलने के बाद नहीं किया जाता। आधी रात को तो बिल्कुल भी नहीं किया जाता भले ही लाश गल सड़ गई हो। और तो और सरकार के पास क्या लकड़ी नहीं थी जो केरोसिन का इस्तेमाल करना पड़ा? हद तो यह कि केरोसिन एक बार खत्म होने पर फिर से लाया गया। क्या सरकार की संवेदनाएं मर चुकी है या फिर मुख्यमंत्री की पत्नी का जन्मदिन सरकार के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण था?”

कांग्रेस नेता ने लिखा है, “माननीय मुख्यमंत्री एक संवेदनशील इंसान हैं कम से कम वो ऐसा गुनाह नहीं कर सकते।फिर वो कोन लोग हैं जिन्होंने आधी रात को यह कृत्य किया? सारे प्रदेश ने लाइव वीडियो पर यह सब आधी रात को देखा और महसूस किया होगा कि एक मोत ने सरकार के दिमागी संतुलन को बिगाड़ दिया है तो अगर ज्यादा मौतें हो गई तो? तब तो सरकार कहीं डेड बॉडीज को खड्डों में न वहा दे य फिर इसे ही मिट्टी के तेल से सामूहिक संस्कार कर दे।”

“सरकार के पास अगर अंतिम संस्कार करने का सामर्थ्य नहीं है तो आम जनता पैसा इकट्ठा कर के यह काम विधि पूर्वक करवा सकती है।भगवान उस बच्चे की आत्मा को शांति दे पर जब उसके परिजनों को पता चला होगा तो उनपर क्या बीती होगी? ऐक तो आधी रात को क्रिया कर्म दूसरा मिट्टी के तेल के साथ। हमारे आपके किसी बच्चे के साथ ऐसा किया जाए तो हमारे ऊपर क्या बीतेगी? जलाने ओर मंत्र पढ़ने वाले पंडित तक बिना PPE किट के जबरदस्ती लाये गए थे तभी सब कुछ आनन फानन में बिना पूरा संस्कार हुए भाग गए।”

वह लिखते हैं, “जब सरकार अपनी उच्च अधिकारी SDM को किट नहीं दे रही तो पंडित ओर जलाने आये कर्मचारियों के बारे में आप सोच भी नहीं सकते। अगर मीडिया वहां न पहुंचता तो सब कुछ खामोशी से निपटा दिया गया होता। क्या यह है ” हिमाचल मॉडल ” ? अगर यही हिमाचल मॉडल है तो लानत है इस पर। देश विदेश में ऐसी बहुत सी संस्थाएं हैं जो अन-क्लेमड बॉडी का संस्कार करती हैं ।सरकार अगर असमर्थ है तो उन संस्थाओं को अंतिम क्रिया कर्म की जिम्मेदारी सौंपे पर इस तरह आधी रात को मिट्टी के तेल से अंतिम संस्कार न करे।हमारे रीति रिवाजों ओर संस्कारों में अंतिम क्रिया कर्म को भी उच्च स्थान हासिल है। अगर सही से संस्कार न हो तो माना जाता है कि मृतक की आत्मा को शांति नहीं मिलती है।भगवान ! सरकार चलाने वाले लोगों को सद्बुद्धि दे।”

उनके अलावा भी बहुत से लोगों और प्रदेश के कई पत्रकारों ने इस घटनाक्रम पर नाखुशी जताई है।

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