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अखबार बताएं कि उन्होंने ये समाचार छापा है या विज्ञापन

इन हिमाचल डेस्क।। कुछ दिन पहले ‘इन हिमाचल’ ने बताया था कि किस तरह से तथाकथित संत के विज्ञापनों को बहुत से अखबार पहले पन्ने पर प्रकाशित कर रहे हैं और वह भी ऐसे, जैसे वे समाचार हों। ऐसे तथाकथित संत हिमाचल की जनता को टारगेट करने में न सिर्फ झूठ का सहारा लेते हैं, बल्कि उनके झूठ पर आधारित कारोबार को बढ़ाने में अखबार भी मदद करते हैं। बाबा जो मर्जी करें, मगर पत्रकारिता का काम क्या है? झूठ को बढ़ाना क्या पत्रकारिता से सम्मान और विश्वास को बेचने का काम नहीं है? मगर अफसोस, यह सिलसिला बेशर्मी के साथ बदस्तूर जारी है।

हिमाचल प्रदेश में जन समस्याओं को उठाने के लिए पहचाना जाने वाला और सबसे विश्वसनीय और जन हितैषी अखबार कहलाने का दावा करने वाला ‘अमर उजाला’ भी भ्रम फैलाने की इस दौड़ में शामिल हो गया है। पंजाब केसरी के विभिन्न सस्करणों में ऐसा ही विज्ञापन छपा है।

अखबारों ने अपने पहले पन्ने पर ‘ब्रह्मर्षि कुमार स्वामी’ का विज्ञापन दिया है और वह भी बाकयादा उसी शैली में, जिस तरह से खबरें हों। जरा ध्यान से पढ़ें, अमर उजाला और पंजाब केसरी ने आज धर्मशाला से छपे संस्करण के पहले पन्ने पर क्या दावा किया है-

95 प्रतिशत रोग केवल 15 मिनट में समाप्त, भारत की अद्भुत खोज, पूरे विश्व में आश्चर्यजनक प्रसन्नता, समाजगम में मिलेगा रोगों से मुक्ति का अद्भुत रहस्य

अगर यह समाचार है तो अमर उजाला और पंजाब केसरी बताएं कि इसका स्रोत क्या है और अगर विज्ञापन है तो बताएं कि इस विज्ञापन को उन्होंने खबरों की तरह क्यों प्रकाशित किया है?

इसके लिए अखबारों ने फ्रंट पेज पर बड़ी सी हेडिंग दी है और बीच में लोगों के अनुभवों को डेटलाइन के साथ प्रकाशित किया है। ध्यान रहे, यह पूरा फॉरमैट विज्ञापन है मगर कहीं पर भी यह नहीं लिखा है कि यह समाचार नहीं बल्कि ऐड है। और अघर यह विज्ञापन नहीं, समाचार है तो भी अमर उजाला और पंजाब केसरी को बताना होगा कि झूठ से भरे समाचार वह लाया कहां से? क्योंकि हिमाचल प्रदेश की भोली भाली जनता जब पढ़ेगी कि एक अखबार ने लिखा है कि व्यक्ति की एलर्जी मंत्रों से ठीक हो गई, तो वह अचानक अपनी समस्याओं को दूर करने के लिए अखबार पर यकीन करते हुए संत के समागम में चला जाएगा।

क्या ‘अमर उजाला’ या पंजाब केसरी ने इस विज्ञापन को खबरों की शक्ल में देने से पहले या इन तथाकथित समाचारों को छापने से पहले जांच की थी कि इसके कॉन्टेंट की सत्यता क्या है? क्या अखबारों ने प्रधानमंत्री के बयान को समाचार के रूप में छापने से पहले पता किया कि प्रधानमंत्री ने कब और कहां ऐसा बयान दिया? कौन से शोध में दावा हुआ है कि 95 फीसदी रोगों का इलाज 15 मिनट में हो जाएगा?

संत का झूठ
यह हो सकता है कि कुमार स्वामी से बहुत से लोगों की आस्था जुड़ी हो। मगर इस बाबा के भ्रामक विज्ञापन की आज पोल खोलना जरूरी है। इस विज्ञापन में दावा किया गया है- गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड की वरिष्ठ अधिकारी पोलीन स्पेन्सिका ब्रह्मर्षि को गिनीज अवॉर्ड प्रदान करती हुईं। समागम में हजारों लोगों का एकसाथ जानलेवा फंगल डैंड्रफ खत्म हो गया।

आपको हंसी आएगा कि गिनीज बुक अवॉर्ड नहीं देती, रिकॉर्ड बनाने का सर्टिफिकेट देती है। और बाबा को ये सर्टिफिकेट इसलिए मिला है क्योंकि इनके समागम में 987 लोगों ने कुमार स्वामी के समागम में एकसाथ सिर के बाल धोए थे। उसमें भी संत से संबंधित कंपनी अरिहंता की भी भूमिका थी। यह डैंड्रफ की ट्रीटमेंट का एक हिस्सा मात्र था।

हजारों लोगों ने नहीं, सिर्फ 987 में। और वैसे भी डैंड्रफ जानलेवा नहीं होता। यहां क्लिक करके गिनीज बुक की वेबसाइट पर पढ़ें। यानी संत का झूठ। क्या इस झूठ की गारंटी लेंगे अखबार?

ये पूरा विज्ञापन झूठ का पुलिंदा है। और तो और, भारतीयों की मानसिकता पर छाप छोड़ने के लिए लिखा गया है- अमरीका नासा में आयोजित…. क्या अखबार बताएंगे कि नासा ने कहां और कब तथाकथित संत को सम्मानित किया?

इसी तरह के भ्रामक विज्ञापनों के दम पर करोड़ों का कारोबार खड़ा कर लिया गया है और इसमें अखबार वालों की भी मौज है क्योंकि फ्रंट पेज के विज्ञापन की कीमत लाखों की होती है। यह पत्रकारिता के नियमों का ही उल्लंघन नहीं बल्कि कानून का भी उल्लंघन है और ऐसा करने पर अखबारों पर बड़ी कार्रवाई संभव है। मगर जहां पैसे कमाना प्राथमिकता हो, वहां सारे उसूल ताक पर रख दिए जाते हैं। और यह खेल एक बाबा या एक अखबार नहीं कर रहा, सबका यही हाल है।

आप नीचे दिए लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं कि अखबारों ने पहले क्या क्या ऐड छापे थे और किस तरह से कुमार स्वामी खुद कह चुके हैं कि मंत्रों से इलाज नहीं होता।

‘भ्रम ऋषि’ संग मिलकर हिमाचल को गुमराह करते अखबार

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