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शिमला का पत्थर मेला: नर बलि से पत्थरों की लड़ाई तक का सफर

इन हिमाचल डेस्क।। हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला से 30 किलोमीटर दूर हलोग में होने वाला पत्थर मेला इस बार भी चर्चा में रहा। इन हिमाचल पर शेर किए गए वीडियो पर कई लोगों ने कॉमेंट किए। कुछ लोगों ने इसे परंपरा बताया तो कुछ लोगों ने कहा कि यह खूनी खेल है और बंद होना चाहिए।

दरअसल दीपावली से दूसरे दिन मनाए जाने वाले इस मेले में दो समूह आपस में पत्थरबाजी करते हैं। यह सिलसिला तब तक चलता है, जब तक कि कोई लहूलुहान न हो जाए। यह परंपरा कई सालों से चली आ रही है और आज भी लोग इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं।

क्या है कहानी
इस मेले को लेकर कहा जाता है कि पहले यहां पर नरबलि दी जाती थी। फिर एक बार यहां रानी सती हो गई तो नर बलि को बंद करके पशु बलि शुरू हुई। कई दशक पहले पशु बलि भी कथित तौर पर बंद हो गई और पत्थरों का मेला शुरू हुआ।

कौन लेता है पथराव में भाग
राजपरिवार के नरसिंह के पूजन के साथ होती है। हर कोई पथराव नहीं कर सकता। परंपरा यह है कि एक तरफ तुनड़ू, जठौती और कटेड़ू परिवार की टोली होती है और दूसरी ओर से जमोगी खानदान की टोली के सदस्य होते है। बाकी लोग पत्थर नहीं फेंक सकते, वे बस देख सकते हैं। तो चौराज गांव में बने सती माता के चबूतरे की एक ओर से जमोगी पथराव करते हैं तो दूसरी तरफ से कटेड़ू।

जैसे ही दो समूहों के बीच पथराव होने के बाद कोई व्यक्ति चोटिल होता है, उसके ख़ून का तिलक सती माता के मंदिर में लगाया जाता है और मेला बंद कर दिया जाता है। इसके बाद घायल व्यक्तियों का इलाज अस्पताल में करवाया जाता है। इस मेले में धामी रियासत के भूतपूर्व राजपरिवार के सदस्य हिस्सा लेते हैं। इस परिवार से जुड़े लोगों और स्थानीय लोगों का कहना है कि पत्थर लगने से किसी की जान नहीं गई है।

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