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‘उस कोठी में कुछ तो अजीब था जो हमारे साथ इतना कुछ हुआ’

DISCLAIMER: हम न तो भूत-प्रेत पर यकीन रखते हैं न जादू-टोने पर। ‘इन हिमाचल’ का मकसद अंधविश्वास को बढ़ावा देना नहीं है। हम लोगों की आपबीती को प्रकाशित कर रहे हैं, ताकि अन्य लोग उसे कम से कम मनोरंजन के तौर पर ही ले सकें और इन अनुभवों के पीछे की वैज्ञानिक वजहों को बता सकें।

रजनीश गुप्ता।।

भूत-प्रेत पर मैं यकीन नहीं रखता। मेरे साथ जो घटना हुई, उसे भी मैं कोई आत्मा का खेल या कोई सुपरनैचरल नहीं मानता। मगर इतना जरूर है कि मैं उसकी पीछे की कोई वैज्ञानिक वजह अभी तक नहीं ढूंढ पाया। और जह तक यह वजह नहीं मिलती, तब तक दुनियादारी के स्थापित नियमों के हिसाब से वह घटना सुपरनैचरल ही कहलाएगी।

मैं एक संगठन का कार्यकर्ता हूं। आज से करीब 30 साल पुरानी बात है। तब मेरी उम्र 20-21 साल रही होगी। हिमाचल प्रदेश के ***पुर में हमारा शिविर था। हम हिमाचल और अन्य प्रदेशों से आए करीब 50 कार्यकर्ताओं को एक बड़ी सी पुरानी कोठी में ठहराया गया था, जिसके बीच में कुआं था, जो बंद पड़ा था। 2-3 दिन तक सब ठीक रहा। चौथे दिन मुझे मेरे साथी ने उठाया। उसने कहा कि कोई बाहर लकड़ी काट रहा है। मैंने घड़ी देखी तो डेढ़ बज रहा था। मैंने सोचा कि कोई कार्यकर्ता साथी होगा जो सुबह के लिए खाना बनाने के लिए लकड़ी काट रहा होगा। तो मैंने उसे बताया कि सो जाए, टेंशन न ले। वह भी सो गया।

अगले दिन सुबह उठे तो हल्ला मचा था कि कोई सारे बर्तन और औजार चुराकर ले गया। अब समझ आया कि रात को कोई लकड़ी नहीं काट रहा था, सामान चुरा रहा था। मन ही मन मैंने कोसा खुद को। मेरे उस साथी ने सबको बताया कि मैंने तो रजनीश को बताया था रात को कि आवाज हो रही है। मैं थोड़ा झेंपा भी। बहरहाल, गांव वालों ने मदद की और उनके सहयोग से लंच नसीब हुआ। फिर रात को सोए तो रात को फिर वैसी ही आवाज। इस बार 2-3 लड़के खिड़की से बाहर झांक रहे थे। जिज्ञासा में मैंने भी बाहर देखा। नजर आया कि अंधेरे के बीच कोई सफेद कपड़े पहनी आकृति कुएं के पास कुछ कर रही है, जिससे ठक-ठक की आवाज आ रही है।

हमने अंदर के सब लड़कों को बुलाया और बाहर की लाइट ऑन की। हैरानी इस बात की है कि अंधेरे के बीच को सफेद आकृति दिख रही थी, लाइट जलते ही वह नजर नहीं आई। वहां कोई भी नहीं था। यह भ्रम मुझे अकेले को नहीं, उस कमरे में सो रहे 7 और साथियों को हुआ। हमने शोर मचाया और अन्य कमरों मे सो रहे साथी भी बाहर आ गए। आयोजक आदि भी जागे और उन्होंने कहा कि भ्रम है, कुछ नहीं सो जाओ।

हम जैसे-तैसे सोए। अगली सुबह उठे और दिन भर विभिन्न क्रिया कलापों के बाद सोने की कोशिश करने लगे रात को। इस बार मैंने अपने 5 और दुस्साहसी दोस्तों के साथ बाहर बरामदे में सोने की योजना बनाई। हम कुछ देर तो जगे, बातें करते रहे और न जाने कब सबको नींद आ गई। जब मेरी नींद खुली। मैंने पाया कि खेतों में पड़ा हूं। मैं हैरान था कि मैं यहां ऐसे-कैसे पड़ा हूं। सुबह होने को थी, मगर अंधेरा अभी ठीकठाक था।

मैंने उठकर घबराट में आसपास देखा तो दूर-दूर तक खेत थे और एक तरफ नाला था। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था। मैंने दूर जलदी एक रोशनी की तरफ बदहवास भागना शुरू कर दिया। मुझे इस दौरान लग रहा था कि कोई मेरे पीछे न हो। मैं करीब डेढ़ कीलोमीटर दौड़कर उस घर तक पहुंचा, जहां लाइट जल रही थी और उनका दरवाजा पीटने लगा। महिला ने दरवाजा खोला, मुझे देखकर उसके मुंह से चीख निकली। उसका परिवार पूरा बाहर आ गया। सामने वाले लोग भी घबरा गए, मगर मैंने घबराहट में अपने साथ हुआ घटनाक्रम कह सुनाया।

उन लोगों ने मुझे आंगन में बिठाया और पनी पिलाया। उन्होंने बताया कि मैं नाले के दूसरी तरफ आ गया हूं। उस तरफ वह कोठी है, जहां कोई कार्यक्रम चल रहा है। उसने बताया कि उस कोठी में कोई नहीं रहता। कई सार पुरानी कोठी है एक लाला की, जिसमें पूरे खानदार ने कुएं में कूदकर खुदकुशी कर ली थी और बंद पड़ी है। खैर, मुझे उन्होंने वहां छोड़ा, जहां हम लोग ठहरे हुए थे। वहां जाकर पता चला कि मैं ही नहीं, मेरे साथ बाहर सो रहे 4 साथी भी गायब हैं। उनकी तलाश चल रही थी। मैंने अपने साथ हुआ वाकया सुनाया तो सब लोगों ने उन्हें ढूंढने की कोशिश शुरू कर दी। कुछ देर बाद पता चला कि वे चारों बगल के मकान के साथ लगाए गए धान की फसल के ढेर पर सोए हुए हैं। उन्हें जगाया गया तो वे आधी नींद में थे और उन्हें भी पता नहीं चला कि वे यहां कब आए थे।

सब लोग यह आरोप लगाने लगे कि हम पांचों बाहर सोए ही इसलिए थे ताकि कोई नशा कर लें और हमारी यह हालत नशे की वजह से हुई है। क्योंकि हम सब अलग-अलग जगहों से थे, इसलिए किसी को पता नही ंथा कि किसी के बारे में। मैंने आज तक कोई नशा नहीं किया और न उस वक्त किया। मगर कोई यकीन करने को तैयार नहीं। उन्हें लगा कि हमने भांग खा ली थी। मगर हमें लग रहा था किसी और ने हमें भांग खिला दी होगी। खैर, वह दिन जैसे-तैसे गुजरा और यह तय हुआ कि यह जगह मैं छोड़ दूंगा अगले दिन। लेकिन उस रात को उन लोगों की भी हालत खराब हो गई, जो हमारे ऊपर शक कर रहे थे।

आधी रात को बगल वाले कमरे से शोर आने लगा। हम दौड़े-दौड़े गए तो देखा कि वहां रहने वाले सभी लड़के चीख रहे हैं, उछल रहे हैं, कोई हंस रहा है कोई रो रहा है। कोई अपने कपड़े फाड़ रहा था तो कोई अश्लील हरकतें कर रहा था। दो आपस में लड़ रहे थे और खून तक निकाल दिया था। कोने में एक लड़का जमीन की तरफ देखते हुए खड़ा था और बार-बार बोल रहा था- कुएं विच खून पा, कुएं विच खून पा।

यह मंजर देखकर किसी की भी आत्मा कांप सकती थी। दूसरे कमरों के लड़के भी वहां आए और किसी की हिम्मत न हो उन्हें पकड़ने की। आखिरकार आयोजकों में से एक बुजुर्ग आए और उन्होंने लड़कों को आदेश दिया कि इन्हें पकड़ो। हम लोगों ने उन्हें पकड़ने की कोशिश की मगर 4-4 लोगों से एक नहीं संभल रहा था। शोर सुनकर पूरे गांव के लोग इस तरफ आ गए थे। उनमें एक पंडित भी थे, जिन्होंने कहा कि इनके ऊपर गंगाजल छिड़को। कोई अपने घर से गंगाजल की बोतल ले आया। हैरानी ये कि गंगाजल छिड़कते ही सब नॉर्मल होते गए।

तय हुआ कि यह जगह खाली कर दी जाएगी और शिविर में हिस्सा लेने आए युवकों को पंचायत घर में शिफ्ट किया जाएगा। अगली सुबह सभी को पंचायत घर ले जाया गया। वहीं सब रहे और रात को सब एक ही हॉल में सोए। कुछ को नींद आई, कुछ को नहीं। शिविर को वक्त से पहले खत्म कर दिया गया। सब लोग अपने-अपने घरों को लौट आए। बाद में हमें जानकारी मिली कि चुराए गए बर्तन और सभी औजार गांव के बाहर के नाले में गिरे पड़े मिले। पता नहीं वह कोठी आज है या नहीं, मगर वहां के साथ जरूर कोई बुरा माहौल जुड़ा हुआ था।

आज मैं सोचूं तो शायद मास हीस्टीरिया हो गया होगा और हमारे खाने में कोई नशीली चीज़ मिला दी होगी किसी ने शरारत वश। मगर बहुत से लोग इन साइंटिफिक थिअरीज़ पर यकीन नहीं करते। गांव वालों का भी कहना था कि इस जगह पर रकना ही नहीं चाहिए था, क्योंकि कई सालों से बंद पड़ी है और इसके वारिस तक इसे इस्तेमाल नहीं करते। खैर, जो बीत गई सो बात गई। दोबारा ऐसा किसी के साथ न हो।

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(लेखक शिमला के ठियोग से हैं और बड़े स्वयंसेवी संगठन के साथ जुड़े हुए हैं। उनके आग्रह पर हमने उनके संगठन का नाम छिपा दिया है और उपनाम बदल दिया है)

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