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छत पर मिलने वाली उस लड़की ने मुझे पागल बना दिया

DISCLAIMER: हम न तो भूत-प्रेत पर यकीन रखते हैं न जादू-टोने पर। ‘इन हिमाचल’ का मकसद अंधविश्वास को बढ़ावा देना नहीं है। हम लोगों की आपबीती को प्रकाशित कर रहे हैं, ताकि अन्य लोग उसे कम से कम मनोरंजन के तौर पर ही ले सकें और कॉमेंट करके इन अनुभवों के पीछे की वैज्ञानिक वजहों पर चर्चा कर सकें। पढ़ें सीजन-2 की पहली कहानी:

मैं हिमाचल प्रदेश का नहीं हूं मगर मेरे कुछ दोस्त हैं हिमाचल के। उनमें से किसी ने फेसबुक पर कुछ दिन पहले इन हिमाचल पर कोई आर्टिकल लिंक किया था, जिसका टाइटल डरावना था। जिज्ञासावश मैंने क्लिक किया क्योंकि यह भूत पर आधारित कहानी थी। मेरी जिज्ञासा इसलिए भी ज्यादा थी क्योंकि मैं खुद भूतों को लेकर बहुत जिज्ञासु हो गया हूं। मैं जानना चाहता हूं कि वाकई भूत होते हैं या नहीं। क्योंकि मेरे साथ ऐसी घटना हो चुकी है, जिसने मेरा जीवन बदल दिया है। पहले मैं सामान्य हुआ करता था मगर अब मुझे मनोचिकित्सक की मदद लेनी पड़ रही है। मैं जानता हूं कि साइकाइट्रिस्ट मुझे जो कुछ समझाता है, वह इसलिए समझा रहा है कि मेरे मन से वहम निकले। मगर मैं किसी की बात पर यकीन नहीं करता।

घटना दरअसल डेढ़ साल पहले की है। उन दिनों मेरी नोएडा में जॉब लगी तो छतरपुर से आकर मयूर विहार फेज 2 में शिफ्ट हो गया। अकेले रहना पसंद है इसलिए मैंने ऐसा फ्लैट ढूंढा जो किनारे पर था। उसका भी टॉप फ्लोर लिया ताकि एकांत में बालकनी में बैठ सकूं। मकान मालिक ग्राउंड फ्लोर पर रहते थे और बाकी के तीन फ्लोर्स पर फैमिलीज़ थीं। चौथे फ्लोर पर मैं कुंवारा लड़का। मकान मालिक जैन थे तो कई सारी बंदिशें लगा रही थीं। जैसे कि घर में नॉन वेज नहीं बनेगा, शराब नहीं चलेगी, दोस्तों का शोर-शराबा नहीं होगा, लड़की नहीं आ सकती आदि। मैंने भी ये शर्तें मान लीं क्योंकि ब्राह्मण परिवार में होने की वजह से मांस-मदिरा से दूर रहा और कभी कोई लड़की गर्लफ्रेंड तो दूर, दोस्त तक नहीं बनी। दोस्तों का आना भी नामुमकिन सा था क्योंकि अकेले रहना पसंद था मुझे।

अकेले इसलिए रहना पसंद क्योंकि मै अपनी दुनिया में रहता हूं। मुझे किताबें पढ़ना पसंद है, डायरी लिखना पसंद है और खाली वक्त में म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट्स प्ले किया करता हूं। ऐड एजेंसी से जुड़ा हूं जो कॉन्सेप्ट विजुअलाइज़ करने के लिए भी एकांत मुझे चाहिए होता है। तो इस घर में रहना मैंने शुरू किया। गर्मियां खत्म होने वाली थीं और सर्दियों का मौसम दस्तक दे रहा था। मेरी आदत थी कि रात के अंधेरे में एकदम छत पर चला जाता जहां पानी की टंकियां रखी थीं। बीच में थोड़ी सी खाली जगह थी। वहां पर चटाई बिठाता और आसमान की तरफ देखता रहता। कभी संयोग अच्छा होता तो आसमान पर तारे भी दिख जाते। ऐसे लेटे-लेटे ख्याली पुलाव बनाने में बड़ा मजा आता।

एक दिन मैं ऐसे ही लेटा था। रात के करीब साढ़े 12 बज रहे होंगे। मौसम में हल्की ठंडक होने लगी थी। तभी अचानक एक गर्म हवा का झोंका चेहरे से टकरा गया। मैं चौंका कि साला ये लू का थपेड़ा कहां से आ गया। चलो, आया होगा कहीं से। यह सोचकर मैं फिर ख्वाबों में खो गया। कुछ देर बाद फिर वैसा ही थपेड़ा मेरे पैरों से होते हुए धीरे-धीरे चेहरे तक आया और सर्र की आाज करता हुआ निकल गया। अब मैं सचेत हुआ औऱ थोड़ा उठकर बैठ गया। इधर-उधर देखा तो आसपास के ज्यादातर घरों की लाइटें बुझ चुकी थीं। इक्का-दुक्का घरों की खिड़कियों से रोशनी आ रही थी। चूंकि मेरी छत काफी ऊंची थी, इसलिए अंधेरा ही रहा करता था छत पर। मैंने फोन की लाइट जलाकर इधर-उधर देखा तो कुछ नहीं था। खैर, कुछ देर बाद मैं अपने कमरे में आकर सोने की कोशिश करने लगा।

करीब सवा 1 हुए होंगे कि अचानक कमरा महकने लगा। ऐसी खुशबू आने लगी जैसे किसी ने पॉन्ड्स का पाउडर छिड़कर दिया हो। मैं उठा कि यार कहां से खुशबू आ रही है। मेरे पास तो ऐसी खुशबू वाला कोई पाउडर या परफ्यूम नहीं था। सोचा कि शायद किसी ने अपने घर में लगाया होगा। हवा से खुशबू बह आई होगी। मगर खुशबू बहुत तेज होने लगी तो बड़ी इरिटेशन हुई। मैंने सोचा कि बाहर जाकर खिड़की खोल लूं ताकि साफ हवा आए। मैं अंदर वाले कमरे से जैसे ही बाहर वाले कमरे मे गया, वहां वैसे खुशबू नहीं थी। मैं फिर अंदर वाले कमरे में गया तो वहां पर वह खुशबू थी। यकीन मानिए, अभी तक मेरे मन में भूतप्रेत वाली या कोई डरावनी बात नहीं आई थी। और मै भूत-प्रेत पर यकीन भी नहीं करता था। तो लाइट ऑन करके इधर-उधर देखने लगा कि कोई शीशी वगैरह तो नहीं गिर गई। काफी तलाशने के बाद कुछ नहीं मिला तो मैं सो गया।

अगले कुछ दिनों मैं इन घटनाओं को भूल गया। मगर फिर से एक दिन वही खुशबू रात को 11 बजे से लेकर 1 बजे तक महकने लगे। मैंने यूं ही मकान मालिक को बताया कि जी रात को पता नहीं कौन पॉन्ड्स क्रीम या पाउडर की स्प्रे कर देता है कि सिर में दर्द होना लगता है। मालिक बोला कि बेटा अब किसको बोलेंगे। इतने किराएदार हैं यहां, क्या पता कौन करता है। खैर, अब उस खुशबू से दिक्कत होना बंद हो गई क्योंकि आदत हो चली थी। वह खुशबू जब तक आती रात को और अंदर वाले कमरे में ही आती। मुझे ही नहीं, कभी-कभार में यहां रात को रुक जाने वाले दोस्तों को भी वह खुशबू आती।

एक दिन मै छत पर लेटा हुआ था आराम से। आसमान की तरफ देखते हुए ख्यालों में खोया हुआ। योजना बना रहा कि करियर में क्या किया जाए कि पैसे भी बढ़ें। जॉब चेंज की जाए या फिर लाइन ही चेंज कर ली जाए। इतने में मुझे लगा कि जैसे फिर से एक गर्म हवा का झोंका आया। मैं उठकर बैठ गया। जैसे ही उठा मेरी नजर बगल वाली छत पर गई। वहां एक लड़की खड़ी थी जिसने दूसरी तरफ को मुंह किया हुआ था। लग रहा था कि फोन पर बात कर रही है। हो सकता है बॉयफ्रेंड से बात करने आ गई हो ऊपर। सो मैं फिर से लेट गया और विचारों में डूब गया। कुछ देर बाद मुझे लगा कोई छत के बाउंड्री वॉल के छज्जे पर बैठा हुआ है।

अगर आप दिल्ली की कॉलोनियों में गए हों तो देखेंगे कि घर एक लेन में चिपके हुए होते हैं। दीवार से दीवार सटी होती है और छत से छत। कुछ लोग अपनी छतों के किनारों पर कांच लगा देते हैं तो कुछ सरिए ताकि कोई इधर से उधर न आ सके। अब मेरा वाला फ्लैट किनारे पर था मगर उसके बगल वाले फ्लैट की छत और हमारी छत चिपकी हुई थी। उसकी छत से और छतें चिपकी हुई थीं। कुछ एक लोगों ने ही सरिए लगाकर रेलिंग लगाई थी कि कोई चोर न घुस आए। हमारे मकान-मालिक ने भी नहीं लगाए थे।

प्रतीकात्मक तस्वीर

तो मैंने देखा कि लड़की छत की रेलिंग पर बैठी हुई है। मैं चौंका कि कमबख्त क्या कर रही है ये यहां। मैं फिर उठ गया। छत पर रोशनी ज्यादा नहीं थी मगर इतनी तो थी ही कि मैं पता चल सके कि कहां क्या है। मैंने देखा कि वह मेरी तरफ ही देख रही है। मैं हैरान कि कर क्या रही है ये। मैंने सोचा कि बात करते करते इधर आ गई है सो मैंने इग्नोर करते हुए दूसरी तरफ देखना शुरू कर दिया। इतने में आवाज सुनाई देती है- Hi. मैं शर्मीला सा। लड़कियों से बात करते वक्त जुबान तालू से चिपक जाती है। मैंने आवाज को अनसुना कर दिया और फिर से दूर मेट्रो स्टेशन की छत की तरफ देखना शुरू कर दिया जो दूर चमक रही थी। दोबारा लड़की ने आवाज नहीं दी। कुछ देर बाद मैंने देखा कि वह दोबारा दूसरी तरफ चली गई है और शायद फोन पर बात कर रही है। तो मैं 5-10 मिनट और रुका और फिर नीचे आ गया। बिस्तर पर सोते हुए सोचने लगा कि यार लड़की कौन थी। क्यों हाइ बोल रही थी। बगल वाले मकान में रहती है लगता है। लाइन दे रही है। अंधेरे में पता नहीं चला पर ठीकठाक ही लग रही थी। खैर, ये सोचते हुए मैं सो गया।

अगले दिन मैं वैसे ही लेटा हुआ था कि फिर आवाज आई- हेलो। उठकर देखा तो लड़की सामने खड़ी थी। वह इस बार दीवार फांदकर मेरी छत पर आ गई थी और सामने खड़ी थी। अब इग्नोर तो किया नहीं जा सकता था। मगर लगा कि अजीब लड़की है, इधर ही आ गई। मैंने भी कहा- हेलो। लड़की बोली- कल तो आपने जवाब ही नहीं दिया। मैंने कहा कि अरे कब, मुझे पता नहीं चला। यह कहते वक्त मैं सोच रहा था कि इस लड़की के इरादे क्या हैं। फिर मैंने पूछा कि मैंने आपको देखा नहीं पहले। इतनी रात को आप यहां। बोली- हां मैं नई शिफ्ट हुई हूं। यहीं आपकी बिल्डिंग से एक बिल्डिंग छोड़कर आगे वाली बिल्डिंग में। मैंने कहा तो आप यहां क्या कर रही हो। बोली कि मेरी छत पर मकान मालिक से कबाड़ डाला हुआ है। वहां चलने में भी मुश्किल होती। छत चिपकी हुई है सो मैं बगल वाली छत पर आ जाती हूं। यहां आराम से घूम सकती हूं।

मैंने सोचा वाह, बड़ी तेज लड़की है। इतने में बोली- मैं आपको पिछले 10-15 दिनों से देख रही हूं। रोज आते हैं आप यहां। मैं नई आई हूं यहां और कोई जान-पहचान वाला भी नहीं। तो मैंने सोचा कि कल कि आप रोज आते हो, अलग से हो। आपसे ही बात कर लूं। यह सुनकर दिल में हलचल पैदा हो गई कि यार सही है, लड़की लाइन दे रही है अब तो खुलकर। मैं मुस्कुरा पड़ा। मैंने कहा कि ऐसे रात को अनजान लोगों से बात करना और उनकी छत पर चले आना ठीक नहीं है। ये दिल्ली है। लड़की हंस पड़ी। हंसी बड़ी मीठी लगी। और हंसते हुए उसने अपने बाल एक तरफ को किए तो पहली बार उसके चेहरे की झलक दिखाई दी। लड़की सुंदर थी। मैं यह सोच ही रहा था कि उसने अपना हाथ आगे बढ़ाया और बोली- My name is Pratima. मैंने भी हाथ मिलाते हुए कहा- विक्रम। हाथ मिलाते वक्त मैंने जो बात महसूस की थी वह यह कि उसका हाथ बहुत गर्म था, मानो बुखार हुआ पड़ा हो। अब इस बारे में तो कुछ बोल नहीं सकता था मैं उसे।

उस दिन वहीं छत पर बैठे हम और खूब बातें कीं। उसने मेरे बारे मे पूछा कि कहां से हूं, क्या करता हूं। मैंने उसके बारे में पूछा तो बोली कि मैं क्या करोगे जानकर, पहले तुम बताओ अपने बारे में। कैसे उससे बातचीत में रात के 3 साढ़े 3 हो गए पता ही नहीं चला। उससे खूब बातें हुईं दिल्ली को लेकर। मैने अपने गांव के बारे मे बताया, अपने शौक के बारे में बताया। बातचीत क्या हुई, ज्यादातर वक्त मैं ही बोला। वह सिर्फ हंसी, मुस्कुराई या फिर बीच में कभी-कभार एक आध वाक्य बोली होगी। लगाकार मुस्कुराते हुए मुझे देख रही थी। मगर मैं थोड़ा शर्माता हुआ सा उससे नजरें नहीं मिला रहा था और सामने देखते हुए बातें कर रहा था। बीच-बीच में उसकी तरफ देख लेता।

कुछ बता ही रहा था कि अचानक बोली- ठीक है विक्रम, रात बहुत हो गई। अब मैं चलती हूं। आपको भी जाना चाहिए। कल बात करेंगे वहीं से, जहां से छूटी है। मैंने कहा ओके। अच्छा लगा मिलकर। बोली सेम हियर्। यह बोलते ही मैं उठा और अपनी छत की तरफ कूद गया और वह दूसरी तरफ चली गई। दोनों ने एक-दूसरे को बाइ कहा। वो दूसरी तरफ चल दी और मै पलटकर सीढ़ियां उतरने लगा। नीचे आकर मैं प्रतिमा के बारे में ही सोच रहा था। अंदर एक अलग तरह की खुशी थी, अलग तरह की उमंग। ऐसा लग रहा था कि सब कुछ अच्छा-अच्छा हो गया। मुझे पहली ही मुलाकात में प्रतिमा से प्यार हो गया था शायद। नींद आई नहीं और सुबह ऐसे ही नहाकर चला गया ऑफिस। ऑफिस से आया तो शाम को ही छत पर बैठ गया कि कब प्रतिमा आएगी छत पर। नजरें उसी तरफ, जिस तरफ उसने अपना घर बताया था।

शाम से रात हो गई और इस बीच मैं डिनर बनाने चला गया। लगा कि आज नहीं आएगी। मैं डिनर करने के बाद फिर से छत पर आ गया और चटाई पर लेट गया। इस बीच न जाने कब मेरी आंख लग गई। बीती रात को सोया भी तो नहीं था। ऑफिस में भी नींद आ रही थी। खैर, अचानक नींद में लगा जैसे कोई नाम पुकार रहा है। आंख खुली तो सामने प्रतिमा थी और मेरा नाम पुकार रही थी। मैंने आंखें मलते हुए कहा सॉरी, नींद आ गई थी। बोली, इट्स ओके। तो मैं उठकर बैठ गया और उससे कहा कि आओ यहीं नीचे आकर बैठो। बोली- नहीं, यहीं ठीक हूं। वह दीवार पर बैठी हुई थी। तो हाउ वॉज़ योर डे- उसने पूछा। मैंने बताया कि कुछ खास नहीं, बोरिंग। मैंने उसके बारे में पूछा कि तुम क्या करती हो, बताया नहीं अपने बारे में।

प्रतिमा मुस्कुराई और बोली कि मैं कॉल सेंटर में काम करती हूं। भोपाल से हूं वैसे। इससे पहले पुणे में थी और उससे पहले बैंगलोर। ग्रैजुएशन भी बैंगलोर से की। स्कूलिंग भोपाल से हुई। फैमिली में पापा नहीं हैं, छोटी थी तभी वो गुजर गए थे। मां है और बड़ा भाई-भाभी। मां और भैया-भाभी साथ रहते हैं। मेरी भाभी से बनती नहीं तो घर पर कम जाती हूं। बस। इतना कहकर प्रतिमा चुप हो गई। ऐसा बोलते वक्त उसके चेहरे के हाव-भाव गंभीर हो गए थे। मैं समझ गया कि वह फैमिली के बारे में बात नहीं करना चाहती। मैने भई बात घुमा दी और ऑफिस के बारे में पूछा। तो बोलने लगी कि ऑफिस में क्या लाइफ है। जाओ, कॉल्स सुनो और घर आ जाओ। खुलकर बातें होने लगी प्रतिमा से। उस दिन मैं और खुश था। मैंने खूब अपने ऑफिस सी गॉसिप्स सुनाईं उसे। बीच में मैंने उससे पूछा कि आर यू सिंगल। उसने कहा यस। और मुझसे पूछा- ऐंड यू? मैंने भी कहा कि चिर सिंगल हूं। कभी कोई गर्लफ्रेंड नहीं रही। यह सुनकर वह हंसते हुए बोली कि मजाक मत करो, तुम्हारी अभी गर्लफ्रेंड न हो ये तो हो सकता है मगर मैं ये नहीं मान सकती कि तुम्हारी कभी गर्लफ्रेंड नहीं रही। मैं पूछा ऐसा क्या है। तो बोली तुम हैंडसम हो, बातें अच्छी करते हो, अच्छी जॉब भी करते हो।

सच कहूं तो यह सुनकर मैं और खुश हो गया। खुशी थी कि प्रतिमा अब अपने मन के भाव मेरे सामने जता रही थी। मैं उत्साहित था। खैर, ऐसे ही रोज शाम को मैं प्रतिमा से मिलने लगा। वो ऑफिस से 12.30 या 12 बजे तक पहुंचती और कुछ देर में ऊपर आ जाती। हम दोनों छत पर बैठे रहते और 2 बजे तक बातें करते। इस बीच उसने मुझे अपना नंबर दिया, मगर वह कहती कि वो फेसबुक और वॉट्सऐप पर नहीं है ताकि रिशअतेदार तंग न करें। और मुझे भी उसे कभी कॉल करने की जरूरत महसूस नहीं हुई। मैं भी दिन में बिजी ही रहता था। एक दिन मैंने उसे कहा कि चलो मेरे घर चलो नीचे। उसने कहा कि नहीं, कोई देख लेगा। मैंने कहा कि देख तो कोई छत पर भी सकता है। तो उसने कहा कि छत की बात अलग है औऱ कमरे की बात अलग।

मैं उसे पसंद करने लगा था और चाहता था कि उसे प्रपोज कर दूं। मगर मैं रात को छत पर यह सब नहीं करना चाहता था। वीकेंड पर भी वह कोई न कोई बहाना बनाकर शहर से बाहर होती थी। मुझे लगता था कि शायद उसका कोई बॉयफ्रेंड है जिससे मिलने जाती है वीकेंड पर। खैर, मैंने उसे एक बार कॉल भी किया संडे को नंबर नॉट रीचेबल आया। फिर मैंने सोचा कि क्यों न रात को ही छत पर प्रपोज किया जाए। तो मैंने प्लैनिंग के तहत गुलाब के फूल लिए और उसे प्रपोज करने के लिए टंकी के पीछे रख दिए। उस रात वह आई और मैंने उसे आंखें बंद करने को कहा। मैं गुलाब के फूल लाया र उसके सामने रख दिए और उससे आंखें खोलने को कहा। उसने आंखें खोलीं और बोली- ये क्या है। मैंने कहा कि आई लव यू प्रतिमा। मैं तुम्हें बहुत पसंद करने लगा हूं। मैं…. … इससे पहले कि आगे कुछ बोलता प्रतिमा ने कहा। स्टॉप इट विक्रम। मैं चौंक गया। उसका चेहरा एकदम गंभीर था, अजीब सा। उदासी से भरा। बोली प्लीज़ रुक जाओ। मैंने कहा मैं मजाक नहीं कर रहा, मैं दिल से तुम्हें चाहता था। उसने कहा कि नहीं, तुम प्लीज़ फ्रेंडशिप मत खराब करो।

मैं चुप हो गया। मुझे बहुत बुरा लगा और मैं पलटकर सीढ़ियां उतरकर कमरे में आ गया औऱ दरवाजा बंद कर लिया। वो बोलती रह गई विक्रम रुको, बात सुनो। वह नीचे तक आ गई और दरवाजा खटखटाने लगी। मगर अंदर मै जोर से रो रहा था। करीब 5 मिनट तक उसने दरावाजा खटखटाया और फिर वह चली गई। मुझे गलती का अहसास हुआ कि यार मैंने क्या किया। वो आई भी थी पहली बार मगर दरवाजा नहीं खोला। मैंने तुरंत दरावाजा खोला और उसने देखे छत पर गया मगर कोई नहीं था वहां। गुलाब के फूल भी नहीं जिन्हें मैं प्रतिमा के लिए लाया था। मैं कूदकर दूसरी छत में गया और उससे आगे वाले घर की तरफ झांकने लगा जहां पर प्रतिमा ने अपना घर बताया था। वहां अंधेरा था और वाकई कबाड़ भरा हुआ था जैसे प्रतिमा ने बताया था। मन किया कि नीचे उतकर जाऊं मगर हिम्मत नहीं पड़ी। पकड़ा जाता तो धुनाई अलग होती और प्रतिमा की बदनामी अलग। पुलिस केस भी हो सकता।

फिर मैं अपने कमरे में आ गया। सोचने लगा कि प्रतिमा ने इनकार क्यों किया। लाइन तो खुद मारती थी। रोज रात को आकर बातें करती थी, हंसती थी, हंसते हुए कभी हाथ पकड़ लेती तो कभी कंधे पर सिर सरखर बातें सुनने लगती। मुझे लगा कि उसका पक्का कोई बॉयफ्रेंड है और इसीलिए मुझे हां नहीं कहा उसने। इसीलिए वह दिन मे मिलने से बचती है औऱ वीकेंड पर उसी के साथ घूमने जाती है। अब मेरे मन का प्यार नफरत में बदल चुका था।

खैर, अगली रात को मैं प्रतिमा का इंतजार कर रहा था मगर वह नहीं आई। एक हफ्ते तक वह नहीं आई। फिर मै ंसमझ गया कि वह अब नहीं आएगी। हफ्ते के बाद मैं अपनी धुन में अपने कमरे में बैठा हुआ था। दरवाला खुला हुआ था और रात काफी हो चुकी थी। किसी ने दरवाजे पर नॉक किया। मैंने उचककर देखा तो वहां प्रतिमा खड़ी थी मुस्कुराते हुए। उसके हाथों में गुलाब के फूल थे। मुझे समझ नहीं आया कि क्या कहूं क्या नहीं। बोली- अंदर आ सकती हूं? मैंने गुस्सा थूकते हुए कहा क्यों नहीं। यह सुनकर वह मुस्कुराई औऱ अंदर आ गई। बोली घर तो बड़ा अच्छा सजा रखा है तुमने। मैंने कहा बस है ऐसे ही। उसने गुलाब के फूल टेबल पर रखे और बोली, सॉरी विक्रम अगर तुम्हें बुरा लगा। देखो, तुम अच्छे लड़के हो और कोई भी लड़की चाहेगी कि तुम्हारे जैसा बॉयफ्रेंड हो उसका। मगर मैं तुम्हारे लायक नहीं हूं। मैंने कहा कि इस बारे में बात मत करो प्लीज़। वो बोली- देखो, मैं नहीं चाहती तुम मेरे बारे में गलत सोचो, मगर मैं अपनी मजबूरी बता नहीं सकती। यह सुनकर मैं फिर से भावुक हो गया और रोने लगा। यह देखकर वह आगे बढ़ी और उसने मुझे गले से लगाया औऱ बोली प्लीज रोओ मत, मेरी गलती है और मुझे नहीं बात करनी चाहिए थी तुमसे। मैं तुमसे मिलूंगी तो तुम्हें और दुख होगा। इसलिए आज के बाद मैं तुमसे नहीं मिलूंगी।

यह सुना मैंने औऱ न जाने क्या हुआ कि मैंने प्रतिमा को कसकर पकड़ लिया। ठीक उस बच्चे की तरह जैसे उससे कोई चीज़ छुड़ाई जा रही हो औऱ वह छोड़ न रहा हो। मगर इस बीच न जाने मुझे क्या हुआ और मैंने प्रतिमा को जकड़ लिया। प्रतिमा की आवाज गंभीर हुई और वह कहने लगी विक्रम, छोड़ो मुझे। मुझे ठीक से याद नहीं है मगर शायद मैं उसे किस करना चाह रहा था। मगर प्रतिमा ने कहा कि विक्रम स्टॉप। डोंट डू दिस। इतने में अचानक मुझे झटका सा लगा और मैं उछलता हुआ कमरे के दूसरे किनारे पर जा गिरा। अब प्रतिमा के चेहरे के भाव बदल चुके थे। गुस्से से लाल हो चुकी थी और अजीब सी आवाज में सांसें ले रही थी। मैं हैरान था कि इतनी ताकत कहां से आई इसमें कि इसने मुझे हवा में उछाल दिया। अब तक दिमाग से वासना का भूत भी उतर चुका था और अहसास हो गया था कि कितनी बड़ी गलती कर रहा था मैं। लंबी-लंबी सांसें लेती हुई गुस्से से तमतमाई प्रतिमा बोली- यू शुडन्ट हैव डन दिस, यू स्पॉइल्ड एवरीथइंग। यह कहकर वह मुड़ी और बाहर जाने लगी। उसकी आवाज भी बदली हुई थी। जैसे दो-तीन लोग एकसाथ बोल रहे हों।

अपनी गलती के अहसास के बोझ तले दबा मैं पीछे-पीछे भागा- सॉरी प्रतिमा, आई एम रियली वेरी सॉरी। दरवाजे से बाहर निकला तो प्रतिमा वहां नहीं थी। उसके तेज कदमों की आहट सीढ़ियों की तरफ से आ रही थी। मैं सीढ़ियों की तरफ लपका। छत पर गया तो मैंने जो देखा उसे बताते वक्त मैं अभी भी कांप रहा हूं। मैंने देखा कि प्रतिमा लंबी-लंबी छलांगे लगा रही है एक छत से दूसरी छत पर जो एक इंसान के लिए संभव नहीं। ऐसा लग रहा था फिल्मी सीन देख रहा हूं। वह एक लेन के मकानों की छत से दूसरे लेन के मकानों की छत पर लगभग उड़ती हुई सी कूद रही थी। मैंने करीब 30-35 सेकंड्स तक उसे दूर तक ऐसे ही कूदते-फांदते देखा जब तकि वो मेरी आंखों से ओझल नहीं हो गई। मैं सन्न था और वहीं पर बेहोश हो गया। मुझे होश आया होगा सुबह करीह 6 बजे जब सूरज की रोशनी होने लगी। मैं उठा और रात की घटना को याद करते हुए कांपने लगा। जैसे-तैसे कमरे मे गया तो देखा कि वहां गुलाब के फूल का गुच्छा रखा हुआ है टेबल पर। मेरी हिम्मत नहीं उन फूलों को छूने की। तुरंत सीढ़ियां उतरकर नीचे मार्केट में चला गया और वहां से दोस्तों को फोन किया। दोस्त आए तो उन्हें पूरी बात बताई। कुछ दोस्तों ने कहा कि तुझे वहम हुआ है तो कुछ ने कहा कि कोई और चक्कर है।

मैंने दोस्तों के साथ कमरे में गया, जरूरत के कपड़े उठाए और दोस्त के यहां चला गया। बाद में मैं इसी दोस्त के यहां शिफ्ट हो गया और सारा सामान ले आया। गुलाब के फूल के वे गुच्छे वहीं कमरे में किचन के टेबल पर रख आया थो जो सूख चुके थे। इस बीच मेरे जोर डालने पर कुछ दोस्त पूछताछ करने उस घर में गए जहां पर प्रतिमा ने अपना घर बताया था तो मकान मालिक ने कहा कि ऊपर कोई नहीं रहता। कई सालों से उन्होंने इसे स्टोर रूम बनाया हुआ है। यानी जिसे प्रतिमा अपना किराए का फ्लैट बताती थी, वहां कोई नहीं रहता था। फिर वहां कहां रहती थी? भागी भी तो वह न जाने कहीं और को ही थी।

अब मैं उस घटना को याद करता हूं तो पता चलता है कि शायद प्रतिमा असली लड़की नहीं थी। क्योंकि उसके सामने मैं उसके चेहरे मे खो जाता था, मगर अब ध्यान आता है कि पॉन्ड्स की जो खुशबू मेरे कमरे से आया करती थी, वही खुशबू प्रतिमा से भी आती थी। मगर मैं कभी इस बात को नोटिस नहीं कर पाता था। उस दिन के बाद से जब कभी मुझे गुलाब के फूल दिखते हैं या पॉन्ड्स की खुशबू आती है, मैं कांप जाता हूं। प्रतिमा का चेहरा मेरे सामने घूम जाता है। अब अकेले जाने से डरता हूं। लड़कियों की तरफ देखे से बचता हूं कि कहीं इनमें से किसी में प्रतिमा का चेहरा न नजर आ जाए।

मेरे डॉक्टर का मानना है कि या तो मैं पूरी की पूरी कहानी मनगढंत सुनाता हूं या फिर मैंने अंत में उसके कूदकर हवा में उड़ने वाली बात झूठ बताई है। मेरे मन में भी कभी-कभी ख्याला आथा है कि शायद वह असली लड़की थी। मैं खुद को कोसता भी हूं कि मैंने उसके साथ जो किया वह ठीक नहीं था। मैं शायद गलत समझ बैठा और उसकी बेबाकी और उसका लाइन मारना समझ बैठा और गलत हरकत भी कर बैठा। मगर उसका लंबी-लंबी छलांगे लगाना मैंने पूरे होश में देखा था। एक मनोचिकित्सक ने मुझे यह भी बताया था कि मेरे मन से प्रतिमा के साथ की गई हरकत का अपराध बोध नहीं हट पाया है, इसीलिए मेरा सबकॉन्शस माइंड ऐसी कहानियां गढ़ता ताकि खुद को दिलासा दिया जा सके। मगर मैं जानता हूं कि सच क्या है।

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(कहानी भेजने वाले ने अपना नाम न छिपाने की गुजारिश की थी मगर हमारा मानना है कि उनका नाम नहीं आना चाहिए। इसलिए उनका नाम बदलकर काल्पनिक नाम दिया गया है। लड़की का नाम भी बदला गया है)

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