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जब मोनू ने अजीब आवाज में कहा- अगर तुम लोगों ने ये शीशा तोड़ा तो…

DISCLAIMER: हम न तो भूत-प्रेत पर यकीन रखते हैं न जादू-टोने पर। ‘इन हिमाचल’ का मकसद अंधविश्वास को बढ़ावा देना नहीं है। हम लोगों की आपबीती को प्रकाशित कर रहे हैं, ताकि अन्य लोग उसे कम से कम मनोरंजन के तौर पर ही ले सकें और इन अनुभवों के पीछे की वैज्ञानिक वजहों पर विमर्श कर सकें। इस घटना की वजहों या लेखक के अनुभव पर आपके कया विचार हैं, नीचे कॉमेंट करें। 

(आपबीती लंबी होने की वजह से हमने दो हिस्सों में बांट दी थी। पाठकों से अनुरोध है कि इसे पढ़ने से पहले पिछला हिस्सा पढ़ लें, ताकि बातें ठीक से समझ आएं। पिछला भाग पढ़ने के लिए आगे दिए लिंक पर क्लिक करें- मैं खड्ड से घर उठा लाई छोटा सा आईना और उस आईने में… )

घर पहुंचकर मैंने देखा कि मोनू कोने में चुपचाप बैठकर अपनी गोद में देखकर मुस्कुरा रही है। मैंने उसे उत्साह में जाकर बोला मोनू…. मैं खुश थी कि वो आई थी बड़े दिनों बाद। मगर उसने मेरी आवाज नहीं सुनी। पास जाकर मैंने देखा कि उसकी गोद में वही शीशा रखा हुआ है, जो मैंने उस दिन खड्ड से उठाया था।

मैंने उससे कहा कि इसे फेंक, तो वह मानी नहीं उसे लेकर छिपा लिया। मैंने मम्मी को बताया कि मैं वही शीशा खड्ड से उठाकर लाई थी, जिसके बाद मेरी तबीयत खराब हुई। उन्होंने सबको बताया कि मोनू के पास जो शीशा है, उसकी वजह से ही सारी समस्या हुई थी। सबने मोनू को कह कि उस शीशे को लाकर दे, मगर मोनू उसे देने को तैयार नहीं थी। मोनू की मम्मी यानी मेरी बुआ ने उससे शीशा छीनने की कोशिश की तो मोनू ने उनकी बाजू में दांत गड़ा दिए। मोनू बहुत सी शरीफ बच्ची थी और उसने ऐसा व्यवहार कभी नहीं किया था। परिवार के जो सदस्य शीशे वाली बात पर यकीन नहीं कर रहे थे, उन्हें भी अब लगने लगा कि पक्का इस शीशे में ही खराबी है।

दो-तीन लोगों ने पकड़कर मोनू से वह शीशा छीना। उसके हाथ से मेरे पड़ोस के अंकल (जो शोर सुनकर वहां आ गए थे) ने शीशा छुड़ाया और उसे नीचे झाड़ियों में फेंक दिया। इसके बाद मोनू ने रोना शुरू किया। वह इतना रोई कि बेहोश हो गई। उसे पानी के छींटे डालकर होश में लाया गया तो वह खामोश हो गई। उसने कुछ नहीं कहा। उससे कोई भी कुछ बात करता तो वह उसे घूरती, बोलती कुछ भी नहीं। मुझे मोनू से मिलने नहीं दिया गया और अलग कमरे में बंद कर दिया गया। बुआ अकेली आई थी, मगर मोनू के साथ हुआ घटनाक्रम सुनकर फूफा जी भी अगली सुबह हमारे घर आ गए। उन्होंने मोनू को लेकर डॉक्टर को दिखाने की जिद की, मगर इस बीच तक मेरे परिवार वाले उसी तांत्रिक (ओझा) चेले को ले आए थे, जिसने मेरा इलाज किया था। मुझे और अन्य बच्चों को एक कमरे में बंद कर दिया गया था और हमारे साथ सिर्फ मेरी मम्मी वहां थी। बाहर क्या हो रहा था, हम यह न देख पाएं, इसीलिए हमें बंद किया गया था। इसलिए आगे का घटनाक्रम परिवार के अन्य सदस्यों से कई साल बाद पता चला था। मुझे पता चला कि उस दिन सुबह मोनू के साथ यह कुछ हुआ-

फूफा जी तांत्रिक से इलाज कराने के हक में नहीं थे। तांत्रिक ने फिर मंत्र पढ़े और मोनू पर पानी फेंकते हुए पूछा कि कौन है तू। तो मोनू से कंठ से वही आवाज सुनाई दी, जो मेरे कंठ से निकली थी। उसने कहा- पहचाना नहीं तूने मुझे? तांत्रिक ने बोला कि तूने तो वादा किया था कि तू नहीं आएगी, जो तूने मांगा, वह तुझे दिया भी। इस पर मोनू के गले से आवाज आई- मेरी बात पर बड़ा भरोसा है तेरेको? मेरे साथ किया कोई भी वादा जब किसी ने नहीं निभाया तो मैं क्यों किसी के साथ किया वादा निभाऊं? तांत्रिक ने बोला- जिसने तेरे साथ किया वादा तोड़ा, उन्हें परेशान कर, इन बच्चों को क्यों परेशान कर रही है। मोनू के मुंह से आवाज आई- उनसे तो मैंने हिसाब बराबर कर लिया, तू मत बता कि मुझे क्या करना है क्या नहीं।

तांत्रिक ने खूब मंत्र पढ़े और कुछ पानी वगैरह फेंका, मगर गोलू के मुंह से निकलने वाली अजीब सी आवाज हंसती जा रही थी और उसे चुनौती देते जा रही थी कि जो करना है कर ले। पिछले बार तो मैं तेरे साथ खेल खेल रही थी। इतने में पंडित जी को किसी ने बताया कि मोनू के हाथ में जो शीशा था, उससे ही तो सब लिंक नहीं है। यह सुनकर मोनू गंभीर हो गई। पंडित ने कहा कि वह शीशा लाओ। सारे लोग नीचे झाड़ियों मे उस शीशे को ढूंढने लगे। झा़ड़ियों की कटाई के बाद आखिरकार वह शीशा मिला। उसे तांत्रिक द्वारा पूजा के लिए बनाई गई जगह पर ले आया गया।

अब तांत्रिक बोला- देख, तू सीधी तरह जा, वरना मैं ये शीशा तोड़ दूंगा और आग में जला दूंगा। इसपर मोनू के मुंह से आवाज आई- ऐसा करके तो देख, मैं इसकी (मोनू की) के भी उतने टुकड़े कर दूंगी, जितनी तू इस शीशे के करेगा। यह साफ देखा जा सकता था कि शीशे को तांत्रिक के पास देख गोलू (या उसके अंदर जो भी था)  बेचैन हो चुका था। तांत्रिक परेशान दिखा। उसने कहा- देख, मैं चाहूं तो इस शीशे को तोड़ दूंगा, तू इस बच्ची का कुछ भी नहीं कर पाएगी। मगर मैं नहीं चाहता कि तेरा कुछ नुकसान हो। इसलिए तुझे भी हमारा कोई नुकसान नहीं करना चाहिए। अगर इस शीशे में तू रहती है तो इसी में रह, इस शीशे को हम जंगल में छोड़ देंगे, वहीं आराम से रहा।

गोलू के मुंह से आवाज आई- मैं क्यों जंगल मे ंरहूं। हर बार मैं जहां भी जाती हूं, कोई न कोई मुझे इन शीशों में डाल देता है। मैं नहीं जा रही इस बार। तू इस शीशे को तोड़ देगा तो और अच्छा होगा। मैं कहीं वापस नहीं जाऊंगी, मेरेको शरीर मिल जाएगा। तांत्रिक बेचैन हो चुका था। इतने में गोलू के पापा, जो इन सब बातों मे यकीन नहीं रखते, गुस्से में आए और उन्होंने वह शीशा उठाकर वहीं फर्श पर तोड़ डाला। जैसे ही वह शीशा टूटा, गोलू जोर-जोर से रोने लगी। उसकी आवाज इतनी तेज थी कि सब लोग घबरा गए। उसे 2-3 लोगों ने पकडा़ हुआ था। उसका पूरी शरीर अकड़ गया। तांत्रिक ने मंत्रोच्चारण जारी रखा और पानी छिड़कता रहा। कुछ लोगों ने गोलू के पापा को भी पकड़ रखा था, जिन्हें यह सब ड्रामा लग रहा था।

इसके बाद गोलू बेहोश हुई। तांत्रिक मंत्र पढ़ता रहा। उसने कहा कि आज तो काम हो गया। मगर वह चीज फिर न आए, इसके लिए कल सुबह सूरज निकलने से पहले एक काम करना होगा। कहते हैं कि अगली सुबह घर के आंगन में पूजा हुई। एक सूप (बांस का बना बर्तन) मे तरह-तरह की चीजें सजाई गईं, जिनमें एक शीशा भी था। उसमें दिए की रोशनी में गोलू को अपना चेहरा देखने को कहा गया और फिर उस सूप को खड्ड में छोड़ दिया गया। उस सूप को वहीं छोड़ा गया था, जहां से मैं वह शीशा उठा लाई थी। दरअसल पूरे इलाके में जब किसी को इस तरह की समस्या होती थी, उसे ओपरा कहा जाता था और तांत्रिक छाट छोड़ते थे। यानी वे आत्मा या भूत को निकालकर उस आईने में बांधकर खड्ड मे छोड़कर आजाद किया करते थे। यानी मैं भी किसी की छोड़ी हुई छाट का शीशा उठा लाई थी, जिसमें किसी के ऊपर आया भूत निकाला था, जो पहले मुझमें और फिर गोलू में आ गया था।

खैर, उस दिन के बाद न गोलू को कुछ हुआ, न मुझे। मैं स्कूल गई, उसी रास्ते से गई। रास्ते में वह पत्थर भी दिखता, मगर मैंने उसकी तरफ जाने की कभी सोची भी नहीं। पता नहीं वह क्या था। हो सकता है कि सुनी सुनाई बातों का बाल-मन पर गहरा असर आ गया हो, मगर मेरे साथ-साथ गोलू के साथ भी ऐसा हुआ, जबकि उसे तो पूरे घटनाक्रम का पता ही नहीं था। यह बात जरूर चक्कर खाने पर मजबूर करती है। खैर, मेरी यही कामना है कि किसी के साथ ऐसा कभी न हो।

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(लेखिका मूलरूप से हिमाचल के बिलासपुर की हैं और इन दिनों परिवार के साथ न्यू जीलैंड में बसी हुई हैं। वह पहली लेखिका हैं, जिन्होंने नाम या पता छिपाने की अपील नहीं की)

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