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HorrorEncounter: धर्मशाला जाते समय आधी रात को सड़क पर हुआ ‘छल’

प्रस्तावना: ‘इन हिमाचल’ पिछले दो सालों से ‘हॉरर एनकाउंटर’ सीरीज़ के माध्यम से भूत-प्रेत के रोमांचक किस्सों को जीवंत रखने की कोशिश कर रहा है। ऐसे ही किस्से हमारे बड़े-बुजुर्ग सुनाया करते थे। हम आमंत्रित करते हैं अपने पाठकों को कि वे अपने अनुभव भेजें। हम आपकी भेजी कहानियों को जज नहीं करेंगे कि वे सच्ची हैं या झूठी। हमारा मकसद अंधविश्वास को बढ़ावा देना नहीं है। हम बस मनोरंजन की दृष्टि से उन्हें पढ़ना-पढ़ाना चाहेंगे और जहां तक संभव होगा, चर्चा भी करेंगे कि अगर ऐसी घटना हुई होगी तो उसके पीछे की वैज्ञानिक वजह क्या हो सकती है। मगर कहानी में मज़ा होना चाहिए। हॉरर एनकाउंटर के सीज़न-3 की तीसरी कहानी भुवेंद्र कंवर की तरफ से, जिन्होॆने अपना अनुभव हमें भेजा है-

ये बात पिछले साल की है। मैं सोलन से हूं और गुड़गांव में जॉब करता हूं। एक वीकेंड पर मेरी गर्लफ्रेंड, जो आज मेरी मंगेतर है, ने कहा कि क्यों न धर्मशाला चलें घूमने। वह कुल्लू से है और उसका बड़ा मन था धर्मशाला घूमने का। दिसंबर का ही महीना था।

शुक्रवार की हमने छुट्टी ली हुई थी। गुरुवार शाम को गर्लफ्रेंड ने बताया कि उसके पीजी में रहने वाली एक लड़की उसके साथ पंचकूला तक जाने की बात कर रही थी। वह चाह रही थी कि जब हम धर्मशाला जा ही रहे हैं तो रास्ते में उसे ड्रॉप करते चलें, क्योंकि उसका बॉयफ्रेंड वहीं था। पहले तो मैं बहुत खीझा मगर क्या करें, कुछ किया भी नहीं जा सकता था।
हमने सुबह 8 बजे निकलने का प्रोग्राम बनाया था ताकि हम आराम से चलते हुए शाम तक पहुंच जाएं। मैं तय वक्त पर गर्लफ्रेंड के पीजी के नीचे पहुंच गया मगर इतना गुस्सा आया कि पूछो मत। ढाई घंटे इंतज़ार करने पड़े। मेरी गर्लफ्रेंड और उसकी सहेली ने तैयार होने और सामान पैक करके नीचे आने में साढ़े 10 बजा दिए।

मैं इरिटेट हो चुका था मगर क्या करें, बनावटी मुस्कान के साथ बैठा हुआ था। चलना शुरू हुए तो दिल्ली से निकलने में ही 12 बज गए। फिर करनाल पहुंचते ही गर्लफ्रेंड की सहेली को भूख लग गई और वहां न जाने कहां फालतू से ढाबे में गाड़ी रुकवा दी कि यहां कमाल का खाना मिलता है। पौना घंटा यहां वेस्ट हुआ और फिर आगे बढ़े। पंचकूला सेक्टर 20 जाने के लिए गूगल मैप्स का सहारा लिया तो एक घंटा घूमते ही रह गए। फिर सेक्टर 20 में एक जगह पर हमने मोहतरमा को छोड़ा तो वह हमें अपने बॉयफ्रेंड से मिलवाने पर तुल गई, जो अपने ऑफिस में था और उसे नीचे आने में समय लग रहा था।

वह आया तो चाय पिलाने ले गया। और फिर वहां से निकलते-निकलते 8 बज गए। मेरा सिर भन्ना गया था। तय कार्यक्रम के तहत अब तक तो हमें धर्मशाला में होना चाहिए था आराम करते हुए ताकि अगले दिन कहीं घूम फिर सकें। मगर मैं चंडीगढ़ की सड़कों पर गाड़ी चलाते हुए नंगल की तरफ नैविगेट कर रहा था। गर्लफ्रेंड भी खामोश थी क्योंकि समझ गई थी कि मैं गुस्सा हो गया हूं। मैंने भी कुछ नहीं कहा। आगे चलकर नंगल से ठीक पहले एक ढाबा दिखा तो मैंने पूछा कि खाना खा लें। तो गर्लफ्रेंड से हां में सिर हिलाया। मैंने ढाबे में गाड़ी लगाई। भूख मिटी तो दिमाग शांत हुआ और ख्याल आया कि लेट हो ही गए हैं तो अब गुस्सा करने से क्या फायदा। तो मैंने गर्लफ्रेंड से नॉर्मल बातचीत शुरू की।

खाना खाकर हम नंगल की तरफ चल पड़े। नंगल के आगे ऊना और फिर आगे से एक दोहारा था। दोनों चौड़ी सड़कें। सामने चाय की दुकान थी। रात हो गई थी तो वही दुकान खुली हुई थी। मैंने पूछा कि धर्मशाला के लिए सड़क। चाय बना रहे लड़के ने कहा- दोनों सड़कें धर्मशाला जाती हैं। आप दाएं वाली से जाओ और 18 किलोमीटर बाद लेफ्ट ले लेना। जीपीएस पर ये रास्ता है।

मैंने उसकी बात नहीं सुनी क्योंकि मुझे लगा कि नादौन तो कोई और ही जगह है। तो लेफ्ट ले लिया। पता नहीं गूगल क्यों वापस मुड़कर नादौन वाली सड़क से जाने को कह रहा था। शायद यह सड़क मैप्स में थी नहीं। कुछ किलोमीटर चल रहा था कि सामने दो सड़कें दिखाई दीं। अब कहां से जाऊं। सोचने लगा कि कोई गाड़ी जाएगी तो उसके पीछे चल लूंगा। पांच मिनट तक इंतज़ार किया। मगर पांच गाड़ियां आईं उनमें से कुछ एक सड़क से गई तो कुछ दूसरी से। ऐसे में मैंने सोचा कि किसी गाड़ी को रोककर पूछता हूं। उतरकर मैं गाड़ियों को हाथ देता रहा, लोग गाड़ी स्लो करते देखते और आगे बढ़ जाते। 10 मिनट तक रुकी नहीं कोई गाड़ी। फिर मैं चलने लगा। दाएं वाली सड़क पर।

कुछ किलोमीटर चलकर लगा कि शायद गलत सड़क है क्योंकि यहां और गाड़ियां कम थीं और सड़क भी थोड़ी संकरी थी। धर्मशाला के लिए ऐसी सड़क तो जाती नहीं होगी। गर्लफ्रेंड करने लगी कि आप गलत रास्ते पर ले आए हो, वापस चलो। मैंने गाड़ी घुमाई और वापस चलने लगा। वापस लौटकर कुछ ही किलोमीटर चला होगा कि दोबारा दो रास्ते दिखाई दिए। याद ही नहीं आया कि मैं कौन सी वाली सड़क से आया था। ऊपर की तरफ जा रही सड़क से या सीधी वाली से। अब और कन्फ्यूजन। यहां आते वक्त भी हुआ था और लौटते वक्त भी।

गर्लफ्रेंड ने कहा कि शायद ऊपर वाली सड़क से आए थे। तो स्लो स्पीड मे चलने लगे। इसी फेर में आधी रात हो गई। सड़क सूनसान। आसपास न कोई घर न कोई गाड़ी। शायद किसी गांव के लिंक रोड़ पर चले जा रहे थे। जब ये अहसास हुआ तो फिर लगा कि पीछे जाते हैं और नीचे वाली सड़क से लौटते हैं। जैसे ही यूटर्न लेकर पीछे चलने लगे, फिर दो सड़कें नज़र आईं। एक सीधे और और नीचे। यहां फिर ध्यान नहीं रहा कि हम किस वाली सड़क से आए। और अजीब बात ये कि ये दोराहे लौटते वक्त ही क्यों दिख रहे थे। गर्लफ्रेंड ने कहा कि हम ढलान से उतर रहे थे, इसलिए चढ़ाई वाली सड़क पर ही चलो।

मुझे भी लगा कि चढ़ाई वाली सड़क से ही हम आए हैं। हम चलने लगे उसपर। चढ़ाई बढ़ती जाए। आगे जाकर सड़क कच्ची हो गई। तब पता चला कि हम फिर से गलत सड़क पर आ गए हैं क्योंकि आते वक्त सड़क कच्ची नहीं थी। अब भयंकर कन्फ्यूज़न। ऊपर से गर्लफ्रेंड घबरा गई। उसे न जाने क्यों लगने लगा कि हमारे साथ कोई भ्रम हो रहा है और रात को हम किसी भूतप्रेत की मायावी दुनिया में फंस गए हैं।

मैंने उसे कहा कि बकवास बंद करे और टीवी सीरियलों की कहानी सुनाना बंद करे। मैंने फिर यूटर्न लिया। हम तीन तिराहों पर भटक चुके थे। न जाने कहां थे। हैरानी की बात ये थी कि ग्रामीण इलाका होने के बावजूद किसी का घर क्यों नहीं दिखाई दे रहा था। एक जगह मुझे ईंटों का ढेर लगा हुआ। शायद किसी ने घर बनाने के लिए उतरवाई हो। सोचा कि आसपास कोई घर होगा तो उनसे पूछ लेता हूं। रात को डिस्टर्ब करना होगा मगर क्या करें। मगर गर्लफ्रेंड ने जिद करके कार से उतरने को मना कर दिया। बोली की गाड़ी से मत उतरो।

एक तरफ मैं परेशान और ऊपर से गर्लफ्रेंड और परेशान कर रही। मैंने उसे कहा कि प्लीज़ चुप हो जाओ। जैसे ही कम थोड़ा सा आगे चले। सामने सड़क घनघोर धुंध में डूबी नजर आई। धुंध हमारी तरफ बढ़ रही थी। मैं सोलन से हूं तो जानता हूं कि सर्दियों के मौसम में धुंध रात को आती ही है पहाड़ों पर। तो मैं धीरे-धीरे धुंध वाली सड़क पर चलने लगा। मगर गर्लफ्रेंड डरने लगी। शायद हॉरर फिल्मों का असर था जिसमें धुंध आ जाती है तो मतलब कि भूत का जाल है।


मैंने उसे कहा कि चुप रहो प्लीज़ और उसका मूड हल्का करने के लिए हंसने लगा और बोलने लगा कि तुम भगवान को याद करो। ये बोल ही रहा था कि गाड़ी के पिछले शीशे पर धाड़ की आवाज़ आई मानो किसी ने हाथ मारा हो। अब मैं चौंका और डरा भी। ब्रेक लगाया और पीछे देखने लगा। कुछ भी पता नहीं चला। मगर मैंने आगे बढ़ना जारी रखा। धुंध में दिख कम रहा था और गाड़ी आगे बढ़ रही थी।

इतने में मैं क्या देखता हूं कि दाहिनी तरफ एक बूढ़ा सड़क पर चला जा रहा है छड़ी लिए हुए। कमर झुकी हुई, चेहरे पर झुर्रियां और तेज चाल। ऐसा लग रहा था मानो वह कार की लाइट के सहारे चल रहा हो। मगर ड्राइवर सीट के एकदम पैरलल चल रहा था सड़क पर। मैंने सोचा कि इन जनाब से ही पूछ लूं कि कहां जा रहे हैं और सही रास्ता कहां है। तबतक मेरी गर्लफ्रेंड ने उसे देखा नहीं था। तो मैंने ब्रेक जैसे ही लगाया और शीशा नीचे करने लगा, बूढ़ा तूरंत दाएं मुड़ा और झाड़ियों के बीच से होता हुआ कहीं नीचे की तरफ उतर गया।

यह अजीब सी हरकत थी और इसे देखकर मेरे होश उड़ गए। अब मेरा दिल धकधक कर रहा था। मैं डर गया। मेरी गर्लफ्रेंड ने पूछा कि क्या हुआ, मैंने कहा कुछ नहीं। वो बोली कि बोलो तो, मैंने अजीब ढंग से जोर से चिल्लाकर कहा- शट अप। और गाड़ी चलाने लगा। धुंध छंटी और सामने पता ही नहीं चला कि जिस कट से वापस होना था, वह कहां रह गया। पता चला कि अभी कुछ देर पहे जहां से वापस मुड़े थे, वहीं वापस पहुंच गए हैं।

 

मगर मुझे इससे राहत मिली। कि चलो, अब पता तो होगा कि कहां से जाना है। मैंने वहां से गाड़ी घुमाई और तेजी से चलने लगा। लौटते हुए मैं देखने लगा कि वो अभी जो धुंध वाले कट से बाहर आया था, वह दोहारा आएगा तो उसके बजाय दूसरे वाले से जाना है। मगर आप पूरे रास्ते में धुंध नहीं मिली और न ही कहीं कट। चलता रहा तो आगे दूर एक घर दिखाई दिया और छोटी पहाड़ियां खत्म हुईं तो दूर बहुत सारी लाइट्स नजर आने लगी जिससे पता चल रहा था कि अब हम एकांत से बाहर आ रहे हैं।

कुछ किलोमीटर आगे चले तो चौड़ी सड़क पर पहुंच गए, जहां पर ट्रक चल रहे थे और गाड़ियां भी। अब मेरे दिमाग में जाने क्या आया कि उस मुख्य चौड़ी सड़क पर आया और सीधी सी जगह पर गया और बीचोबीच गाड़ी लगाकर पार्किंग लाइट ऑन कर दी। सामने से आ रहे ट्रक ने हॉर्न बजाया और उसने रोका नहीं, उसी स्पीड में आधी गाड़ी सड़क के बाहर कच्चे हिस्से से निकाल ले गया। अब मैंने गर्लफ्रेंड को कहा कि तुम भी बाहर निकलो और हाथ हिलाओ। पीछे एक इनोवा आ रही थी, जिसने रोकी। और शीशा उतारकर पूछा क्या हुआ, हमने पूछा कि धर्मशाला का रास्ता किस तरफ है। वह बोला हम धर्मशाला ही जा रहे हैं, यही रास्ता है। मैंने थैंक्स कहा और उसी सड़क पर चल दिया। आगे चला तो देहरा मिला और वहां से होते हुए सुबह होने से ठीक पहले धर्मशाला पहुंच गए। वहां तय बुकिंग पर होटल में पहुंचे।

वहां जाकर मैंने गर्लफ्रेंड को बताया कि मैंने क्या देखा। फिर वो डरी और बोली कि हमारे साछ छलावा हुआ है। उसने इधर-उधर फोन घुमा दिए। रोते-रोते सबको बताने लगी। रोया तो नहीं मैं, मगर डरा हुआ था और अजीब मनोस्थिति में था। एक दिन जैसे-तैसे काटा, घूमने भी नहीं क्योंकि अगला दिन सोने में निकल गया और नींद ढंग से नहीं आई। और रविवार को सुबह ही चल दिए ताकि रात को ऐसे हालात का सामना न करना पड़ा। गुड़गांव आ गए। गर्लफ्रेंड की सहेली बोलती रह गई थी कि वापसी में मुझे पंचकुला से लेते चलना। मगर हम सीधे निकल गए।

उसके बाद मैंने घर पर बात की तो उन्होंने डांटा कि रात को ऐसे मत जाया करो। कहते हैं कि रात को भ्रम होता है, छल, छलेडा। यानी हम किसी अजीब शक्ति के वश में काल्पनिक जगह में घूमते रहे। हालांकि मैं सोचता हूं कि शायद हम गलत सड़क पर किसी गांव के लिंक रोड पर चले गए और धुंध में गुम हो गए। हो सकता है वह बूढ़ा कहीं जा रहा हो। मगर दूसरे ही पल लगता है कि इतने सारे संयोग एकसाथ कैसे हो सकते हैं। ख़ैर, मैं भूतप्रेत पर यकीन नहीं रखता। मेरा मानना है कि हम किसी सड़क पर भटके और थकान और खीझ की वजह से रास्तों का पता नहीं चला और पहाड़ों पर धुंध नई बात नहीं है। मगर मेरी गर्लफ्रेंड मानती है कि उस दिन कुछ अजीब हुआ है। मगर हम दोनों एक-दूसरे पर विचार नहीं थोपते। इसीलिए बहुत सी बातों पर अलग विचार होने के बावजूद साथ हैं और जल्द शादी के बंधन में बंधने वाले हैं। आपकी शुभकामनाएं चाहिए।

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