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मुख्यमंत्री वीरभद्र को हाई कोर्ट का झटका, मनी लॉन्ड्रिंग का केस जारी रहेगा

शिमला।। अपने खिलाफ चल रहे आय से अधिक संपत्ति मामले को हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह और उनके परिजन राजनीतिक दुर्भावना से बनाया गया मुकदमा बताते थे मगर अब तो कोर्ट के ताजा फैसले के बाद उनके ये दावे भी निरर्थक साबित होते दिख रहे हैं। सत्यमेव जयते का नारा लगाते हुए देश की न्याय व्यवस्था पर भरोसा जताने वाले मुख्यमंत्री को अब कोर्ट से एक और झटका लगा है। दिल्ली हाई कोर्ट ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उन्होंने अपने समेत तमाम आरोपियों के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग केस रद्द करने की मांग की थी।

दिल्ली हाईकोर्ट ने हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को झटका देते हुए उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उन्होंने ईडी की एफआईआर रद्द करने की मांग की थी। वीरभद्र ने मनी लांड्रिंग के मामले में हाईकोर्ट में याचिका दायर कर मांग की थी कि उनके खिलाफ ईडी द्वारा दायर किए गए इस मामले को तुरंत रद्द कर दिया जाए। वीरभद्र और अन्य की ओर से दायर याचिका पर हाईकोर्ट के जस्टिस आरके गौबा के समक्ष मामले की सुनवाई हुई थी जिस पर सोमवार को ये नतीजा सामने आया है।

गौरतलब है कि यह मामला 2009-2011 के बीच का है जब वीरभद्र सिंह इस्पात मंत्री हुआ करते थे। इस दौरान उन पर 6.1 करोड़ की संपत्ति अर्जित करने का आरोप है। सीबीआई सीएम और उनके परिजनों पर 2009 से 2011 के बीच आय के ज्ञात स्रोत से अधिक धन इकट्ठा करने के आरोपों की जांच कर रही है। इस दौरान वीरभद्र केंद्रीय इस्पात मंत्री थे। जांच एजेंसी ने आरोप लगाया है कि केंद्रीय मंत्री के पद पर रहते हुए उन्होंने अपने और अपने परिजनों के नाम पर एलआईसी की पॉलिसी के माध्यम से भारी मात्रा में निवेश किया था।

इससे पहले प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने भी मनी लॉन्ड्रिंग मामले में 84 वर्षीय वीरभद्र सिंह, उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह और पुत्र विक्रमादित्य को पूछताछ के लिए तलब किया था। ईडी ने सीबीआई की ओर से आपराधिक मामला दर्ज कराए जाने के बाद संज्ञान लेते हुए सितंबर 2015 को मुख्यमंत्री और अन्य के खिलाफ दर्ज मनी लॉन्ड्रिंग की रोकथाम कानून (पीएमएलए) के तहत मामला दर्ज किया था। आय से अधिक संपत्ति मामले में वीरभद्र और उनकी पत्नी के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने के उच्च न्यायालय के इनकार के चंद घंटों के बाद ही सीबीआई ने 31 मार्च को उनके खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया था। उच्च न्यायालय ने वीरभद्र का यह तर्क खारिज कर दिया था कि राजनीतिक प्रतिशोध के चलते यह मामला दर्ज किया गया था।

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