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गुड़िया केस: अगली गिरफ्तारी किस ‘बड़ी मछली’ की?

शिमला।। कोटखाई रेप ऐंड मर्डर केस एक मिस्ट्री बनता जा रहा है। शायद यह हिमाचल का अब तक का सबसे बड़ी क्राइम मिस्ट्री है। अब जनता के मन में शक यह भी पैदा हो गया है कि न जाने ऐसी कार्यप्रणाली वाली पुलिस ने अब तक कितने ही मामलों को ऐसे ही सुलझाने का दावा किया होगा, कितने लोगों को सच या झूठ में अंदर ठोक दिया होगा। दरअसल हिमाचल में आईजी स्तर के अधिकारी की गिरफ्तारी होना चौंकाने वाला है। वह अधिकारी, जिसके पास साउथ रेंज के कई जिलों की जिम्मेदारी थी। मगर सीबीआई को आखिर 1994 बैच के आईपीएस ऑफिसर को गिरफ्तार करने की जरूरत क्यों पड़ गई?

 

अभी तक जो जानकारियां छन-छनकर आ रही हैं, उनमें सीबीआई को संदेह है कि इस मामले में पकड़े गए आरोपी सूरज की जो कोटखाई थाने में मौत हुई थी, वह पुलिस की थ्योरी के हिसाब से नहीं हुई थी। सीबीआई ने प्रेस रिलीज़ में भी कहा है कि इन पुलिसकर्मियों को कस्टोडियल डेथ केस में पकड़ा है। एसआईटी में शामिल पुलिसकर्मियों ने कहा था कि अन्य आरोपी राजू ने सूरज को मार डाला। मगर सीबीआई को शक है कि यह कस्टोडियल डेथ है और इसकी मौत की वजह वह नहीं है जो पुलिस बता रही है। मगर चूंकि पुलिस की तरफ से सीबीआई को सहयोग नहीं मिला, इसलिए उसने एसआईटी के सारे सदस्यों को आईजी और डीएसपी समेत उठा लिया।

 

चलिए मान लेते हैं कि सीबीआई का शक सही है और सूरज की हत्या राजू ने नहीं की बल्कि उसकी मौत में किसी पुलिसवाले का हाथ है। कोई पुलिसवाला ऐसा क्यों करेगा, इसिलए संभावित कारणों पर बात करें तो मुख्य तीन कारण नज़र आते हैं:

1) हो सकता है कि पुलिस कुछ उगलवाने के लिए थर्ड डिग्री इस्तेमाल कर रही हो इसी दौरान सूरज की मौत हो गई हो। मगर इस थ्योरी को कुछ बातें काउंटर करती हैं। ध्यान रहे कि पोस्टमॉर्टम में पता चला था कि मृतक के गुप्तांग पर चोट से लेकर कई जगह जख्म के निशान थे। ऐसे मामलों से निपटने वाली पुलिस किसी कैदी को ऐसे कैसे पीट सकती है कि उसे ध्यान ही नहीं रहे कि बंदे को कोर्ट में भी पेश करना है, जख्म नहीं आने चाहिए वरना मुश्किल हो जाएगी। इन हालात में कोई अनाड़ी पुलिसवाला भी ऐसा काम नहीं कर सकता।

2) दूसरी संभावना यह है कि कहीं किसी पुलिसवाले ने जानबूझकर हत्या तो नहीं कर दी? और अगर ऐसा है तो बाकी पुलिसकर्मियों की चुप्पी उनपर भी शक पैदा करेगी। मगर पुलिसवाले किसी आरोपी की हत्या क्यों करेंगे? उन्हें ऐसा क्या डर रहा होगा। इन सवालों का जवाब ढूंढने की कोशिश करें तो माना जा सकता है कि चूंकि पुलिस ने शुरुआत में खुलासा कर दिया था कि ये-ये लोग पकड़े हैं, मगर उसे सबूत न मिल मिर रहे थे. हो सकता है कि सूरज पुलिस के हिसाब से गवाही न देना चाह रहा हो और सब सच बताने की बात कर रहा हो। ऐसा होता तो पुलिसवालों के लिए मुश्किल हो जाती। ऐसे में हो सकता है कि तैश में आकर उसे बेतहाशा पीटा गया हो या फिर खुद को बचाने के लिए उसे मार ही डाला गया हो। यह सोचकर कि रेप का आरोपी ही तो है, मर जाएगा तो लोगों को संतोष होगा। और उस वक्त सीबीआई जांच की भी कोई चर्चा नहीं थी।

3) पुलिस के ऊपर प्रेशर था?  तीसरा और एक बड़ा कारण यह भी हो सकता है। अगर प्रेशर में आकर सूरज को मारा गया तो यह समझने वाली बात है कि आईजी जैसे स्तर के अधिकारी पर कोई छोटा-मोटा नेता या व्यक्ति प्रेशर नहीं डाल सकता। यह सही है कि देश में पुलिस को पैसे लेकर मामले दबाने या बनाने के लिए बदनाम समझा जाता है। मगर जिन पुलिसकर्मियों को सीबीआई ने पकड़ा है, उनमें से कुछ की छवि ऐसी नहीं रही है कि वे ऐसे कामों में शामिल हों। ऐसे में संभावना बचती है प्रेशर की। अगर किसी प्रेशर में पुलिस ने असली गुनहगारों को बचाकर इन लोगों को फंसाने की कोशिश की है तो साफ है कि प्रेशर किसी बड़े प्रभावशाली शख्स की तरफ से रहा होगा। अगर तीसरे नंबर वाली आशंका सही है तो आने वाले दिनों में खुलासा हो सकता है कि किसने और क्यों एसआईटी पर प्रेशर बनाया। पुलिसकर्मियों से पूछताछ हो रही है, उनके लाइ डिटेक्टिंग और नारको टेस्ट की बात हो रही है। अगर इस तरह का प्रेशर हुआ तो सीबीआई को नया सबूत मिल जाएगा। ऐसे में आने वाले दिनों में कोई बड़ी मछली भी सीबीआई के हत्थे चढ़ सकती है, अगर उसकी इस केस में भूमिका रही हो तो।

 

चूंकि द ट्रिब्यून का दावा है कि इस मामले में पकड़े गए आरोपियों के डीएनए का मैच विक्टिम के शरीर में मिले सैंपल्स से नहीं हुआ है, इसलिए लोग शक कर रहे हैं कि कहीं वाकई पुलिस ने असली दोषियों को पकड़ने के बजाय गलत लोगों को तो नहीं पकड़ लिया। चर्चा है कि या तो ऐसा जल्दबाजी में किया गया है, या फिर प्रेशर में आने के बाद जानबूझकर। बहरहाल, अटकलों का दौर तब तक जारी रहेगा, जब तक पूरे केस से पर्दा नहीं उठ जाता। साथ ही यह स्पष्ट करना भी जरूरी है कि जिन पुलिसवालों को सीबीआई ने पकड़ा है, वे अभी सिर्फ़ आरोपी हैं, दोषी नहीं। और आरोप लगने से कोई दोषी नहीं हो जाता।

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