समुद्र तल से लगभग 3980 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है रोहतांग दर्रा। यह दर्रा सड़क यातायात के मामले में हिमाचल प्रदेश का सबसे खतरनाक दर्रा है। दर्रा यानी वह संकरा रास्ता, जिससे होकर पहाड़ियों को पार किया जाता है। दर्रे को स्थानीय भाषा में जोत भी कहते हैं।
इस दर्रे के नाम ‘रोहतांग’ का अर्थ है- शवों वाला इलाका। यह सच है कि इस दर्रे से पैदर गुजरते हुए असंख्य लोगों ने अपने प्राण गंवाए हैं। संभवत: इसीलिए इसका नाम रोहतांग रखा गया है। इससे पहले इसे भृगुतुंग नाम से भी जाना जाता था। दरअसल तिब्बती भाषा में རོ་ (Ro, रो) का अर्थ होता है शव और ཐང་། (thang, तांग) का अर्थ होता है- मैदान।
दंतकथा
वैसे इसे लाशों वाला मैदान यानी रोहतांग कहे जाने के पीछे भी एक कहानी बताई जाती है। जम्मू कश्मीर रियासत के सेनापति जनरल जोरावर सिंह ने कुल्लू रियासत पर आक्रमण किया और कुल्लू को जीतकर खूब पैसा बटोरा। जोरावर सिंह के मन में लाहौल-स्पीति को जीतने की भी इच्छा आई।
जोरावर ने सेना के साथ कुल्लू से लाहौल स्पीति का रुख किया परन्तु भृगुतुंग जोत (वर्तमान रोहतांग) को पार करते करते सेना समेत जोरावर सिंह बर्फीले तूफ़ान की चपेट में आ गए। मौसम ने ऐसा कहर बरपाया कि पूरी सेना के साथ बर्फ में दबकर मृत्यु को प्राप्त हुए।
गर्मियों का मौसम आया तो कुल्लू की ओर तिब्बत से आने वाले लोग यहां से होकर गुजरे। पिघली हुई बर्फ के नीचे शवों के ढेर देखकर वे डर गए। मनाली पहुंचे तो पता चला कि डोगरा सेनापति जोरावर सिंह ने यहां से आक्रमण की कोशिश की थी। तब उन्हें मामला समझ आया।
इसके बाद बहुत से लोग इकट्ठे हुए, उन्होंने शवों को यहां से निकालकर मनाली के पास एक समतल जगह पर रखा और अंतिम संस्कार किया। इसी जगह का नाम मढ़ी पड़ा। पंजाबी में श्मशानघाट या समाधि को भी मढ़ी कहते हैं। ऐसी जगह, जहां पूर्वजों का अंतिम संस्कार होता था, वहां पत्थर या ईंटों का ढेर लगाकर समाधि यानी मढ़ी सी बना दी जाती है, जिसपर परिवार के सदस्य दिये जलाया करते हैं। हिमाचल के कुछ इलाकों में भी श्मशान को मढ़ी कहा जाता है।
हालांकि यह भी कहा जाता है कि जोरावार सिंह की मौत रोहतांग में हीं, तिब्बत में हुई थी। तिब्बत में एक अभियान के दौरान बर्फीले मौसम में उन्हें और उनकी सेना को मुश्किल हालात का सामना करना पड़ा था। ऐसे में तिब्बतियों और उनके चीनी सहयोगियों के साथ तो-यो की लड़ाई में 12 दिसंबर 1841 की लड़ाई में जख्मी हो जाने के कारण उनका निधन हुआ बताया जाता है।
मगर ऊपर बताई गई दंतकथा के अलावा भी रोहतांग में अचानक बदल जाने वाले मौसम के कारण कई लोगों ने दम तोड़ा है। और ये शव गर्मी होने पर ही सामने आते थे।तो भृगुतुंग में असंख्य शव मिलने के कारण ही इस दर्रे का नाम रोहतांग पड़ गया जो आज तक चलन में है।
संकलन: आशीष नड्डा