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शिमला रूरल के बाद हिमाचल कांग्रेस में और बदलाव के संकेत

सुरेश चंबयाल।। दिल्ली में आलाकमान से बात करके आए मुख्यमंत्री वीरभद्र दिन अपने तेवरों के साथ एक बार फिर संगठन पर भारी पड़े हैं। मुख्यमंत्री ने कह दिया है कि संगठन अब कमरे में रहेगा और फील्ड में मैं। कांग्रेस की बात की जाए तो नेहरू-इंदिरा दौर के बाद राजीव से होते-होते 90 के दशक के दौरान राजेश पायलट और माधव राव सिंधिया जैसे नेताओं ने कांग्रेस में इस बात पर जोर देना शुरू कर दिया था कि कांग्रेस का अध्यक्ष चुनकर आना चाहिए। राजेश पायलट तो इसके मुखर समर्थक हो गए थे। जिस दौर में राजेश पायलट या सींधिया जैसे लोग पार्टी में चुनकर अध्यक्ष बनाए जाने की वकालत कर रहे थे, कहीं से उन्हें समर्थन नहीं मिला। कांग्रेस के ज्यादातर नेता नेहरू-गांधी परिवार के प्रति ही आस्था जता रहे थे। राहुल गांधी जब पैदा हुए थे, तब कांग्रेस समर्थकों ने ऐसे पोस्टर लगा दिए थे कि देश का अगला प्रधानमंत्री पैदा हो गया है।

 

कांग्रेस पीवी नरसिम्हा राव के समय गांधी परिवार के प्रभाव से बाहर निकल चुकी थी। उस वक्त सीताराम केसरी कांग्रेस अध्यक्ष हुआ करते थे। मगर सत्ता पलटने के बाद सीताराम केसरी को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया और एक बार फिर पार्टी का पूरा कंट्रोल नेहरू गांधी परिवार के हाथ में आ गया और अब तक उन्हीं के हाथ में है। यहां तक कि पार्टी के उपाध्यक्ष राहुल गांधी भी मनोनीत हैं, न कि इलेक्टेड। तो फिर वीरभद्र ने तो कभी सींधिया या पायलट की तरह आवाज़ नहीं उठाई कि शीर्ष पदाधिकारी भी उनके बेटे की इलेक्टेड होने चाहिए।

 

क्या वाकई मनोनीत किए जाने के खिलाफ हैं वीरभद्र?
हिमाचल के हालिया प्रकरण की बात करें तो वीरभद्र सिंह भी राजेश पायलट सरीखे नेताओं के विचारों से सहमत नजर आते हैं कि कांग्रेस का अध्यक्ष चुनकर आना चाहिए। हर मंच, हर प्लैटफॉर्म पर वो यही बात करते हैं। यह भी उदाहरण देते हैं कि उनके बेटे विक्रमादित्य सिंह भी चुनकर युवा कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष बने हैं। कहते हैं कि खुद भी कांग्रेस में चुनकर आता रहा हूं और किसी को मनोनीत किए जाने के खिलाफ हूं।

विरोधाभासी बातें करते हैं मुख्यमंत्री
वीरभद्र सिंह की यह मनोनयन वाली सवाल काफी विरोधाभासी प्रतीत होती है। क्योंकि शिमला की ही बात करें तो मुख्यमंत्री ने दिल्ली से आते ही शिमला ग्रामीण संगठन जिला, जिसमें कांग्रेस ने शिमला शहरी सीट को छोड़कर बाकी की 7 सीटों को रखा है, वहां के अध्यक्ष रितेश कपरेट को हटाकर यशवंत छाजटा को अध्यक्ष बना दिया है। कपरेट छात्र राजनीति से कांग्रेस में आए हुए हैं और सुक्खू समर्थक माने जाते हैं। सुक्खू ने भी डैमेज कंट्रोल के लिए उन्हें कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया, परन्तु यह बात समझ नहीं आई कि अध्यक्ष और कार्यकारी अध्यक्ष एक साथ हो सकते हैं क्या? और किस लॉजिक पर? साथ ही एक सवाल और है, वीरभद्र सिंह जब नॉमिनेटड अध्यक्ष के समर्थन में नहीं है तो छाजटा को क्यों नॉमिनेट किया गया?

सीएम की कथनी और करनी में अंतर क्यों?
सूत्रों के अनुसार यह कहानी गहरी है। यूथ कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए जब विक्रमादित्य सिंह ने चुनाव लड़ा था, उस समय परिवहन मंत्री जीएस बाली के बेटे रघुबीर बाली, मनमोहन सिंह कटोच और अन्य दावेदारों के बीच रितेश कपरेट ने भी अध्यक्ष पद के लिए दावेदारी दी थी। रितेश कपरेट को आए मतों के अनुसार उन्हें यूथ कांग्रेस संगठन में उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी भी मिली थी। और अब शिमला ग्रामीण के अध्यक्ष के तौर पर कपरेट वीरभद्र की आँखों में सुक्खू समर्थक के तौर पर भी चुभ रहे थे क्योंकि शिमला ग्रामीण से विक्रमादित्य को चुनाव लड़ना है और कपरेट का वहां होना कहीं न कहीं मुख्यमंत्री को खटक रहा था।

 

कपरेट की जगह जिन यशवंत छाजटा को अध्यक्ष बनाया गया,  उनका कांग्रेस संगठन से ज्यादा गहरा नाता नहीं रहा है। छाजटा कॉन्ट्रेक्टर हुआ करते थे और अभी हिमुडा के उपाध्यक्ष हैं। छाजटा की वीरभद्र परिवार से बहुत नजदीकियां हैं। चर्चा है कि पूर्व सांसद प्रतिभा सिंह भी पूरा जोर लगा रहीं हैं कि यशवंत छाजटा को शिमला शहर से कांग्रेस का उमीदवार भी बनाया जाए। सुनने में आया है कि सुक्खू कपरेट को नहीं हटाना चाहते थे, परन्तु उन्हें प्रदेश प्रभारी की बात माननी पड़ी। प्रदेश प्रभारी शिंदे तक भी छाजटा की व्यक्तिगत पहुंच थी क्योंकि छाजटा की धर्मपत्नी नागपुर यानि महाराष्ट्र से ही हैं। इसलिए सुक्खू को भी मन मसोस कर रहना पड़ा और कपरेट को कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में एक पोस्ट हाल फिलहाल पकड़ा दी गई।

 

क्या होगा यह तो भविष्य के गर्भ में है, मगर फिलहाल यही लग रहा है कि कांग्रेस में मुख्यमंत्री बेशक नॉमिनेटेड बनाम चुनकर आए लोगों में से ‘चुनकर आए’ लोगों को तरजीह देने की बात करें, मगर जहां वह चाहेंगे वहां अपने हिसाब से ही गोटियां सेट करेंगे। शिमला इसका एक उदाहरण है। आगे-आगे कहां क्या होता है, यह देखने वाली बात होगी।

(लेखक हिमाचल प्रदेश से जुड़े विभिन्न मसलों पर लिखते रहते हैं। इन दिनों इन हिमाचल के लिए नियमित लेखन कर रहे हैं।)

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