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मुख्यमंत्री जी, बदलना ही है तो ‘शिमला’ का नाम ‘जुमला’ कर दो

शिमला जैसे शहर पहले ही बेतरतीब निर्माण का खामियाजा भुगत रहे हैं।

आई.एस. ठाकुर।। सुनने में आया कि उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज हो जाने के बाद हिमाचल में भी कुछ शेर नाम बदलने की मुहिम चला रहे हैं। ये अलग बात है कि ये शेर भेड़चाल चल रहे हैं। वैसे भेड़चाल की तो अपने देश में आदत है ही। जब यूपी में कोई काम हो सकता है तो हिमाचल में क्यों नहीं?

ये देखकर फिर अखबार में अपने नाम पढ़ने का शौक रखने वाले कुछ लोगों ने अपने संगठनो के नाम से शिमला का नाम श्यामला करने का ज्ञापन सौंपा दिया। हर दूसरे सवाल पर ‘हम विचार कर रहे हैं’ का जवाब देने वाले हिमाचल के मृदुभाषी मुख्यमंत्री जी से जब पत्रकारों हिमाचल में जगहों के नाम बदले जाने को लेकर सवाल किया तो उन्होंने जवाब दिया, “हम विचार कर रहे हैं।”

लेकिन विचार क्यो कर रहे हैं?
सीएम साहब की क्लिप सुनने में गलती न हुई हो तो वह कह रहे थे कि बहुत सी बातें जो अंग्रेज़ों की गलत बातों का स्मरण करवाती हैं, उनके नाम बदलने पर विचार हो सकता है। मुख्यमंत्री ने स्कैंडल पॉइंट, रिज, पीटरहॉफ जैसी जगहों का जिक्र किया। आखिर में उन्होंने यह तो कहा कि जनता से सुझाव मांगेंगे, मगर सवाल ये उठता है कि आखिर नाम बदलने की जरूरत क्यों महसूस हो गई?

वैसे हिमाचल में जो नाम मौजूद हैं, उनमें बुराई क्या है? जो इमारतें अंग्रेजों ने बनाई, जिन शहरों और कस्बों को अंग्रेजों ने बसाया, अगर उनके नाम अंग्रेज़ी हैं तो इसमें दर्द की कौन सी बात है? और अगर इन नामों से इतनी ही दिक्कत है तो India नाम भी चेंज करवा दीजिए।

तो क्या भारत को भी तोड़ दोगे?
और फिर नाम ही क्यों, देश को भी अलग-थलग कर दीजिए क्योंकि आज भारत जिस सूरत में है, वह सूरत अग्रेजों की ही बनाई हुई है। आज का भारत छोटे-छोटे राजे-रजवाड़े अपनी-अपनी रियासतों में बंटा हुआ था। तो क्या आज से इंडिया, आज के भारत को आप इसलिए छिन्न-भिन्न करना चाहेंगे कि इसे अंग्रेजों ने ये शक्ल दी है?

वैसे मुझे पता है कि कुछ लोग ये तर्क देंगे कि अंग्रेजों ने तो भारत तोड़ा है, पाकिस्तान बनाया है वरना पुराना भारत को ऊपर अफगानिस्तान से लेकर म्यांमार तक था, अखंड भारत था। और यही वो लोग हैं जो नाम बदलने की संस्कृति का समर्थन करते हैं। यही लोग हैं जो वर्तमान में तो कुछ नहीं करते मगर गौरवशाली इतिहास के भ्रम में पड़े रहते हैं।

हीनभावना और नाम बदलने की मांग
हीनभावना के शिकार ये लोग इतिहास को बदल देना चाहते हैं, उसे स्वीकार नहीं करना चाहते। वे उससे सीखना नहीं चाहते, वर्तमान में अच्छे काम करके नया इतिहास रचने की क्षमता नहीं रखते। बस, जो बीता हुआ कल है, उससे छेड़छाड़ करते रहेंगे। मौजूदा शहरों की दुर्दशा ठीक नहीं करेंगे, बस नाम बदल देंगे और खुश हो लेंगे।

शिमला अंग्रेजों की ग्रीष्मकालीन राजधानी थी। इस शहर को बसाया है अंग्रेजों ने। अपना बनाया हिमाचल सरकार के पास है ही क्या? कई बड़ी इमारतें और सरकारी दफ्तर अंग्रेजों की बनाई सड़कों पर चल रहे हैं। नई ट्रेन हिमाचल में आप कहीं ढंग से चला नहीं सके, अंग्रेज यहां शिमला तक ट्रेन ले आए थे। उससे आगे आपने एक फुट पटरी नहीं बिछाई।

पूरी दुनिया में हिमाचल की पहचान शिमला से रही है।

और जिस रिज का नाम बदलने की आप बात कर रहे हैं, रिज का मतलब होता है पहाड़ी का ऊपरी समतल हिस्सा। उसका टॉप। तो रिज अंग्रेजों का दिया नाम इसलिए है क्योंकि वह जाखू वाली पहाड़ी के तल पर थोड़ा समतल हिस्सा था। खैर, ये बेकार की बहस है। अगर किसी जगह का नाम अपमानजक हो और उससे वहां रहने वालों को शर्म आए तो उसे स्थानीय लोगों के नाम पर बदलना चाहिए। जैसे एक जगह किसी नाले का नाम *तड़ नाल था जिसे लोग चतुर नाला कहने लगे हैं। त्रपड़ नाल को तारापुर कहने लगे हैं।

समझदारों की भी सुने सरकार
ऐसे नाम बदलने हों तो बदलिए। मगर जो नाम आपके इतिहास के प्रतीक हैं। उन्हें क्यों बदलना? जो लंबे समय से आपकी संस्कृति का हिस्सा हैं, उन्हें क्यों बदलना? यह मूर्खतापूर्ण कदम है। अगर कहीं और कोई नासमझी भरा काम कर रहा है तो इसका मतलब यह नहीं कि आप भी वैसा ही करने लगें। और कुछ मुट्ठी भर लोग कुछ भी मांग करने लगें तो सरकार को उस पर विचार करने से पहले यह विचार करना चाहिए कि वह बात विचार करने लायक है भी या नहीं।

सरकार को चंद नासमझों को खुश करने के बजाय यह भी सोचना चाहिए कि वह पढ़े-लिखे, शिक्षित और समझदार लोगों का भी प्रतिनिधित्व करती है। उसके बीच अपनी छवि की भी चिंता सरकार को करनी चाहिए। क्योंकि किसी जगह का नाम बदलने से आप न सिर्फ उस जगह से जुड़े इतिहास पर पर्दा डाल देते हैं बल्कि पहचान को खत्म कर देते हैं। जगहों के नाम बदलने पर होने वाले खर्च को क्या कर्ज में डूबा प्रदेश सह सकता है, इस पर भी विचार होना चाहिए।

नए शासकों को ही दिक्कत क्यों?
हिमाचल निर्माता डॉक्टर वाई.एस. परमार ने नाम नहीं बदले, मगर अब के शासकों को नाम बदलने की जरूरत महसूस हो रही है। वह भी चंद निठल्ले लोगों की मांग पर। शांता कुमार की सरकार थी तो शिमला में कई ऐतिहासिक इमारतों के नाम बदल दिए थे। शायद ये काम कांग्रेस से प्रेरित था जिसने स्नोडन का नाम इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज कर दिया था। लेडी रीडिंग को कमला नेहरू अस्पताल कर दिया था। बीजेपी ने रिपन को दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल कर दिया। ओक ओवर को शांता कुमार ने शैल कुंज बना दिया था तो पीटरहॉफ को मेघदूत। कुछ नाम वैसे के वैसे रह गए तो कुछ नाम फिर अपने पुराने रूप में लौट आए हैं।

फिर भी अगर मौजूदा सरकार को लगता है कि नाम बदलना ही है तो मेरा सुझाव भी ले ले। शिमला स्मार्ट सिटी तो बन नहीं पाया बड़े-बड़े दावों के बीच, इसलिए इसका नाम बदलना ही है तो ‘शिमला’ की जगह ‘जुमला’ रख दीजिए। क्योंकि हिमाचल को लेकर प्रधानमंत्री जी ने चुनाव से पहले जितनी भी बातें की थीं, उनमें से अधिकतम ‘जुमला’ ही साबित हुई हैं। बाकी प्रदेश में जिस जगह का नाम जो भी रख दीजिए, आपकी मर्जी। हिमाचल की राजधानी जुमला होगी तो सीधे वर्तमान शासकों की अकर्मण्यता की याद दिलाएगी। आपको भी अंग्रेजों की तथाकथित बुरी बातों की याद नही आएगी।

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

लेखक हिमाचल और देश से जुड़े विषयो पर लिखते रहते हैं, उनसे kalamkasipahi@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।

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