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गहरे घाव दे गई कुदरत, दिल पर पत्थर रख अपनों का इंतजार करते रहे परिजन

एमबीएम न्यूज नेटवर्क, मंडी।। कोटरोपी में आए भूस्खलन में दबे लोगों को निकालने के लिए सर्च ऑपरेशन चल रहा था। जिन लोगों के परिजन इस रूट पर यात्रा कर रहे थे और लापता थे, वे बदहवास होकर कोटरोपी पहुंचे हुए थे।

 

चारों तरफ तबाही का मंजर देखकर समझ आ जाता था कि दबे हुए लोगों के बचने की कोई उम्मीद नहीं है। मगर कोई ऐसे ही कैसे मान ले कि उसका अपना अब इस दुनिया में नहीं है। इसलिए परिजनों की उम्मीदें कायम थीं। रुलाई को रोके हुए आंखें लाल थीं, गला रुंधा हुआ था, बेचैन थे, कांप रहे थे मगर मन में दुआ कर रहे थे कि उनका अपना ज़िंदा हो।

 

बहुत मुश्किल हालात से जूझ रहे इन लोगों में एक मां भी थी जो बिलख रही थी। पहले एक सड़क हादसे में इस महिला ने अपने पति को खो दिया था और उसकी दो बेटियां और बेटा मलबे में लापता था। उसकी हालत देख हर कोई दुआ करता कि काश कोई चमत्कार हो और इसके बच्चे सुरक्षित हों। मगर अफ़सोस, होनी को कुछ और ही मंजूर था। दिन खत्म होने तक चंबा-मनाली बस से 43 यात्रियों के शव निकाले गए।

 

कुल्लू के रामशिला में रह रही माली देवी अपने बच्चों का इंतजार कुल्लू बस स्टैंड पर कर रही थी। उसे नहीं पता था कि वह बस कभी आएगी ही नहीं। मूल रूप से वह चंबा से हैं और कुल्लू में एलआईसी में नौकरी करके परिवार का पेट पाल रही थीं। उनकी बेटियां मुस्कान और पलक अपने भाई अरमान के साथ छुट्टियां मनाने के लिए अपने दादा-दादी के पास चंबा गए हुए थे।

 

ये बच्चे अपनी चाची गीता ेक साथ चंबा से मनाली आ रही एचआरटीसी की बस से अपनी मां के पास वापस आ रहे थे। मां कुल्लू बस स्टैंड पर अपने बच्चों को लेने पहुंची थी। बहुत देर हुई और बस आई नहीं तो लगा पता लगाने की कोशिश की कि कहीं बस मनाली तो नहीं चली गई। मगर किसी ने बताया कि बस तो कोटरोपी में भूस्खलन की चपेट में आ गई है।

 

इसके बाद इस मां की हालत क्या हुई होगी। अपने रिश्तेदारों के साथ वह कोटरोपी पहुंचीं और बिलखते हुए इंतज़ार करने लगीं। शायद उन्हें अहसास था कि वह जिन बच्चों का इंतज़ार कर रही है, वे अब इस दुनिया में नहीं हैं। मगर मां तो मां होती है।

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यह तो माली देवी की कहानी है। इस हादसे ने दर्जनों परिवारों को हिलाकर रख दिया था। कुछ अपने बच्चों का इंतजार कर रहे थे, कुछ बच्चे अपने मम्मी-पापा का इंतजार कर रहे थे तो कहीं किसी और का इंतजार हो रहा था। मगर होनी को कुछ और ही मंजूर था। बड़े गहरे घाव दिए हैं कुदरत ने। भरने में वक्त लगेगा।

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