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‘भ्रम ऋषि’ संग मिलकर हिमाचल को गुमराह करते अखबार

इन हिमाचल डेस्क।। ‘प्रधानमंत्री मोदी बोले- 2022 तक सबके सिर पर होगी छत।’ अगर कोई अखबार इस तरह का शीर्षक लगाए तो उसपर यकीन किया जा सकता है क्योंकि यह समाचार है। इसलिए क्योंकि अखबारों का काम होता है खबरें देना और अगर बड़े-बड़े अक्षरों में वह इस तरह से कुछ लिखे तो विश्वास करना लाजिमी है क्योंकि मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं और वह ऐसा कर सकते हैं। मगर आपको किसी अखबार में यह लिखा मिले- शिवजी बोले- इस पाठ से अब कलयुग में निश्चित ही होगी सभी कामनाओं की पूर्ति। तो इसका क्या मतलब है, जरा नीचे देखें, आज हिमाचल प्रदेश में पंजाब केसरी ने क्या छापा है-

क्या भगवान शिव कलियुग में अवतरित हुए और इस तथाकथित बाबा को बयान दिया कि फ्लां पाठ से सभी दुखों से मुक्ति मिलेगी? क्या बाबा के पास इस बात के सुबूत हैं या फिर यह अखबार इस घटना की रिपोर्टिंग कर रहा था? पेज नंबर 3 पर बॉटम में छपी यह खबर दरअसल विज्ञापन है, जिसे खबर की शक्ल में पेश किया गया है। इसमें कहीं पर भी यह नहीं लिखा कि यह विज्ञापन है। पहले भी ऐसे ऐड छपे हैं-

जिन लोगों को समझ आ गया कि यह विज्ञापन है, वे सोचें कि आपके आसपास के भोले भाले लोग, खासकर कम पढ़े लिखे और मजबूर लोग समझ पाएँगे कि यह विज्ञापन है। मगर अखबार ने कहीं पर भी यह स्पष्ट नहीं किया कि यह विज्ञापन है। मगर यह इकलौता अखबार नहीं है, हिमाचल के कई अखबार ऐसे विज्ञापन छाप चुके हैं। बाबा की बात बाद में करेंगे, पहले अखबारों की कर लें। देखें, हिमाचल में एक अखबार ने 2014 में क्या विज्ञापन दिया था और वह भी पहले पन्ने पर। खबर की शक्ल में।

अगर इस तरह का विज्ञापन छापना हो तो बड़े अक्षरों में स्पष्ट लिखें कि यह विज्ञापन है, समाचार नहीं। वरना आपके ऊपर भी भ्रामक जानकारी देने और अंधविश्वास फैलाने संबंधित कानूनों के आधार पर कोई कानूनी कार्रवाई कर सकता है।

हिमाचल के लगभग हर छोटे-बड़े अखबार कई बाबाओं, कई संगठनों आदि के विज्ञापनों को समाचारों की तरह पेश कर रहे हैं। रही ऋषि कुमार स्वामी की बात, उन्होंने इस तरह के विज्ञापनों के माध्यम से ही हिमाचल में पैठ बनाई है। अचानक इस तरह के विज्ञापन हिमाचल में आने लगे और रातो-रात दुख निवारण समागम होने लगे और फिर माउथ पब्लिसिटी होने लगी।

आप इन विज्ञापनों पर नजर डालें, इनमें हर छोटी-मोटी बात को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाता है। अगर कोई भी शख्स, संगठन आदि राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री को चिट्ठी भेजता है तो उसकी पावती आती है। उसमें शुभकामनाओं वाला संदेश दिया गया होता है। मगर देखिए, प्रधानमंत्री मोदी की ऐसी ही चिट्ठी की पावती को उनकी तस्वीर के साथ विज्ञापन में इस्तेमाल किया गया है मानो उन्होंने एक दिन पहले तारीफ की हो और यह समाचार हो। इसीलिए इन्हें शीर्षक में सांकेतिक रूप से  ‘भ्रम ऋषि’ कहा गया है यानी जो भ्रम फैला रहे हैं। इन विज्ञापनों के लिए इनके ऊपर कार्रवाई हो सकती है क्योंकि ये भ्रामक हैं।

इसी तरह से विदेशी संस्थाओं के निजी कार्यक्रमों और छोटे-मोटे कार्यक्रमों में सम्मानित किए जाने को बड़ी उपलब्धि की तरह दिखाया गया है, मानो बाबा बहुत बड़े तोप हों। ऊपर से लोगों को आकर्षित करने के लिए लोगों के कुछ दावे शेयर किए गए हैं, जिनमें कहा गया है कि बीज मंत्रों के जाप से ब्लड कैंसर तक क्योर हुआ है। अब समाज में इतने दुख हैं, जब कहीं से सहारा न मिले तो आदमी मजबूरी में ऐसे विज्ञापनों से भ्रमित हो ही जाता है।

इन जनाब ने ऐसे विज्ञापन में तो यहां तक दावा किया था कि बिल क्लिंटन बीज मंत्रों के जाप से राष्ट्रपति बने हैं। लखनऊ के छात्रों ने ऐसे ही दावों पर शिकायत की थी और कानूनी नोटिस भेजा था कुछ साल पहले कि आप अपने दावों के सबूत दें (खबर पढ़ें), मगर उसका जवाब नहीं आया था। इन्हीं ने कहा था कि बाबा ने अपनी वेबसाइट पर www.cosmicgrace.org पर अविश्वसनीय दावे किए हैं (पढ़ें)।

वैसे बाबा और उनके बेटे पर कई आरोप लग चुके हैं और एक शख्स ने तो टीवी कार्यक्रम पर उनके बीज मंत्रों को लेकर सवाल उठाया था। अखबारों में विज्ञापनों कहा जाता है कि बीज मंत्रों से  ‘अदभुत कृपा’ होगी मगर इस कार्यक्रम में बाबा कहते दिखे- मैंने ऐसा कब बोला? कृपा हो भी सकती है, नहीं भी। उन्होंने यह भी कहा कि मंत्रों से मरीजों का इलाज नहीं करता।

बहरहाल, बाबा के विज्ञापनों में जिन लोगों के अनुभव होते हैं, उनमें दिखाया जाता है कि बीज मंत्रों से पढ़ाई में कमाल हो गया, टेस्ट निकल गया या नौकरी लग गई या रोग ठीक हो गया। यही कॉमन समस्याएं आज समाज में हैं और विज्ञापनों के माध्यम से भुनाया जाने लगा।

इसके साथ ही कृपा लेने के विशेष पैकेज की भी व्यवस्था है और साथ ही बीज मंत्रों के लिए पत्रिका लगवाने से लेकर पूजन सामग्री, जल आदि को खरीदवाने की व्यवस्था अलग है। साथ ही हिमाचल के मंत्री और राजनेता भी सावधान रहे, अगर किसी इन तथाकथित ऋषि के किसी समागम में आपको न्योता मिले तो मंच से कहा जाएगा कि फ्लां नेता जी गुरु जी को सम्मानित करेंगे। आप सम्मानित करके माला पहनाएंगे और फिर अगली बार आपकी वही तस्वीर विज्ञापन में हो सकती है- फ्लां नेता ने किया गुरु का सम्मान।

धर्म और धार्मिक चीजों का प्रचार-प्रसार करना अलग बात है, मगर इनकी आड़ में लोगों के दुखों का व्यापार करना ग़लत। और इस काम में अखबार भी साथ देने लग जाएं तो किससे उम्मीद की जाए? बाबाओं का तो आजकल काम ही हो गया है, मीडिया को कम से कम सम्मान के साथ अपना फर्ज निभाना चाहिए। विज्ञापन जरूरी हैं, मगर पत्रकारिता भी।

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