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क्या ये हैं नगर निगम चुनावों में कांग्रेस की ‘जीत’ के सूत्रधार

(नगर निगम चुनावों में बीजेपी और कांग्रेस के प्रदर्शन की समीक्षा पर दूसरी और अंतिम कड़ी) इन हिमाचल डेस्क।। हिमाचल कांग्रेस खुश है नगर निगम चुनावों में उसका प्रदर्शन अच्छा रहा। इसका श्रेय बहुत से लोग प्रदेश कांगेस अध्यक्ष कुलदीप राठौर को दे रहे हैं। मगर राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बयानबाजी से बढ़कर निगम चुनावों में राठौर का खास रोल नहीं दिखा। उनके बयानों में अक्सर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ही मेन टारगेट पर रहे। चारों निगमों के प्रचार में भी उन्होंने ज्यादा समय नहीं गुजारा।

हालाँकि राठौर कभी फायरब्रांड नेता नहीं रहे है, इसलिए जनता के बीच उनके दौरे का कोई ख़ास फर्क पड़ता, यह मानना मुश्किल है। भाजपा की तरह कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष का भी कोई ख़ास रोल निगम के चुनावों में नहीं रहा। हालाँकि, आलाकामन की नजर में बतौर अध्यक्ष उनके हिस्से क्रेडिट जरूर जुड़ा है।

आशीष बुटेल का उभार
पालमपुर नगर निगम की बात करें तो यहाँ बुटेल परिवार के कारण कांग्रेस ने भाजपा का सूपड़ा साफ़ करते हुए जीत का परचम लहराया है। पालमपुर में बुटेल खासकर विधायक आशीष बुटेल के सौम्य व्यव्यहार और पार्टी लाइन से बाहर भी लोगों के मध्य छवि ने कांग्रेस को आशातीत सफलता के पार पहुँचाया है।

आशीष बुटेल कांगड़ा में एक अलग पहचान और कद्दावर नेता के रूप में अब उभर कर आए हैं और भविष्य में भाजपा को उनके सामने चुनौती पेश करने में खासी मशक्कत करनी पड़ सकती है। वहीं, उनके परिवार से ही युवा नेता और चुनावी राजनीति में अपनी संभावनाएं तलाश रहे, पूर्व कांग्रेस सरकार में आईटी सलाहकार रहे गोकुल बुटेल को भी पालमपुर से अपनी जगह बनाने में लम्बा इंतज़ार करना पड़ सकता है। कुल मिलाकर आशीष बुटेल इस छवि से अपने आप को बाहर निकाल पाएं है कि वो अपने पिता और दिग्गज नेता बीबीएल बुटेल की वजह से ही राजनीति में सफल हैं।

सुधीर के लिए चिंता
धर्मशाला नगर निगम के नतीजे भाजपा कांग्रेस से ज्यादा सुधीर शर्मा के लिए ज्यादा चिंताजनक है। शुरू के प्रचार में चुप्पी साधे रहे सुधीर अंत में जोश खरोश और डिजिटल मैनजमेंट के तहत चुनाव प्रचार में उतरे। टिकट आबंटन में सुधीर बनाम नान सुधीर दो धड़े मैदान में उतरे। ध्यान देने वाली बात है कांग्रेस के जीते 5 जीते उम्मदवारों में से सुधीर विरोधी तबके के चार जीते है और इन सब ने चुनाव प्रचार में सुधीर की फोटो लगाना भी मुनासिब नहीं समझा था। सुधीर विरोधी धड़े के अगुआ जग्गी भी इनमे एक है वही दो निर्दलीय कांग्रेस विचारधारा के जीते है वो भी जग्गी के गुट के ही माने जा रहे हैं।

धर्मशाला सिटी जो कभी सुधीर का गढ़ माना जाता था वहां यह हालत उनके भविष्य के लिए निसंदेह चिंता की स्थिति पैदा करती है। यह तय है सुधीर को धर्मशाला से अब चुनौती बढ़ चढ़ कर मिलने की सम्भावना है। वहीं, उनके गुट से रजनी व्यास का जीतकर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से मिलने जाना भी कई कयासों को जन्म दे रहा है।

सुखराम के बोझ तले दबी कांग्रेस
मंडी नगर निगम की बात करें तो कांग्रेस कांग्रेस यहाँ चार सीट निकाल पाई है। जानकारों के अनुसार कांग्रेस का टिकट आबंटन सही था पर सुखराम परिवार के आया राम, गया राम की छवि और आजकल कांग्रेस से नजदकियां, कौल सिंह की बेटी चंपा ठाकुर और आश्रय की बहस, अनिल शर्मा का मुख्यमंत्री जयराम को टारगेट करना…. ये सब भाजपा को फायदा दे गया। खुद कांग्रेस कैडर का यह मानना है कि सुखराम परिवार से दूरी बनाकर कांग्रेस यह चुनाव लड़ती तो और बेहतर प्रदर्शन कर सकती थी।

राणा की मेहनत लाई रंग
सोलन नगर निगम में जीत का श्रेय कांग्रेस में लोकल विधायक धनी राम शांडिल्य की जगह सुजानपुर के विधायक और प्रभारी राजिंदर राणा को मिलता दिख रहा है। बात में दम भी है राणा ने यहाँ खूब मेहनत की और माइक्रो मैनजेमेंट से भाजपा के दिग्गज बिंदल को फेल किया। सोलन प्रवासी लोगों का शहर है। यहाँ बिलासपुर, हमीरपुर, ऊपरी शिमला, सिरमौर और किन्नौर के लोग बहुत बड़ी तादाद में है। भाजपा ने सोलन को जहाँ राजीव बिंदल और सहजल के भरोसे छोड़ा था, वहीं राणा ने यहाँ प्रचार में बिलासपुर से रामलाल ठाकुर, सिरमौर से हर्षवर्धन, विक्रमादित्य अदि नेताओं की पूरी मदद लेकर हर क्षेत्र के लोगों में समर्थन जुटाने को सेंध लगाई।

कुलमिलाकर आशीष बुटेल, राजिंदर राणा के रूप में कांग्रेस में यहाँ नए रणनीतिकारों का उदय इस चुनाव में हुआ। वहीं, सुधीर शर्मा के भविष्य के लिए ये नतीजे चिंता की रेखाएं पैदा करते हैं। कुलदीप राठौर चूंकि लीडर हैं तो उनके क्रेडिट में यह सब तो जुड़ना ही है। सबसे सुखद कांग्रेस के लिए यह बात है कि अक्सर आपसी ईगो-क्लैश में उलझे रह जाने वाले कांग्रेसी दिग्गज इस चुनाव में चुपचाप अपने अपने हिस्से का काम करते गए और बेहतर परिणाम से कुछ सबक भी भविष्य के लिए ले पाए।

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नगर निगम चुनावों में बीजेपी की ‘हार’ के लिए कौन है जिम्मेदार?

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