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22 साल के इस हिमाचली जवान ने दी थी कारगिल में पहली शहादत

कैप्टन सौरभ कालिया कारगिल युद्ध के वो हीरो जिन्होंने सबसे पहले देश के लिए अपने प्राण न्योछावर किए। महज़ 22 साल उम्र थी। 22 दिनों तक दुश्मन का बेहिसाब दर्द झेला, पर देश के खिलाफ एक भी शब्द न बोले और अपनी शहादत दे दी। जब मौत की खबर आई तो सेना जॉइन किए मुश्किल से चार महीने हुए थे। यहाँ तक कि परिवार ने तो उन्हें सेना की वर्दी में भी नहीं देखा था।

22 साल पहले हुए कारगिल युद्ध में भारत ने अपने 527 जवान खोए थे और 1300 से ज्यादा जख्मी हुए थे। कारगिल युद्ध के पहले शहीद कैप्टन सौरभ कालिया के बलिदान से युद्ध की शुरुआती इबारत लिखी गई।

3 मई 1999 को ताशी नामग्याल नाम के एक चरवाहे ने सेना को खबर दी थी कि उसने कारगिल की ऊंची चोटियों पर कुछ हथियारबंद लोगों को देखा है। 14 मई को कैप्टन कालिया पांच जवानों के साथ पेट्रोलिंग पर निकल गए। जब वे बजरंग चोटी पर पहुंचे तो उन्होंने वहां हथियारों से लैस पाकिस्तानी सैनिकों को देखा।

कैप्टन कालिया की टीम के पास न तो बहुत हथियार थे न अधिक गोला बारूद। और साथ सिर्फ पांच जवान। वे तो पेट्रोलिंग के लिए निकले थे। दूसरी तरफ पाकिस्तानी सैनिकों की संख्या बहुत ज्यादा थी और गोला बारूद भी। उन्होंने चारों तरफ से कैप्टन कालिया और उनके साथियों को घेर लिया।

कालिया और उनके साथियों ने जमकर मुकाबला किया लेकिन जब उनका एम्युनेशन खत्म हो गया तो पाकिस्तानियों ने उन्हें बंदी बना लिया। फिर उनके साथ जो किया उसे लिखना भी मुश्किल है। उन्होंने कैप्टन कालिया और उनके पांच सिपाही अर्जुन राम, भीका राम, भंवर लाल बगरिया, मूला राम और नरेश सिंह की हत्या कर दी और भारत को उनके शव सौंप दिए।

9 जून 1999 को सौरभ कालिया का शव उनके घर पहुंचा था। अंतिम दर्शन के लिए पूरा शहर उनके घर पहुंचा था। कैप्टन सौरभ कालिया और उनके साथियों के साथ जिस तरह की अमानवीय क्रूरता और बर्बरता की गई, वो साफ तौर पर जंग के नियमों की धज्जियां उड़ा रही थी। इस ख़बर ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी हल्ला मचाया था।

कैप्टन कालिया और उनके साथियों के शवों पर ऐसे घाव थे, जिसने न केवल भारतीयों को बल्कि पूरी दुनिया को स्तब्ध कर दिया था। चेहरे पर न आंख थी, न कान। जब शव घर पहुँचा तो परिवार वाले भी नहीं पहचान पा रहे थे।

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