आई.एस. ठाकुर।। साल 2012 में हिमाचल प्रदेश विधानसभा के चुनाव हो रहे थे। प्रेम कुमार धूमल चाह रहे थे कि सरकार को रिपीट करवाया जाए। धूमल और सरकार में बैठे अन्य को लगता था कि इस बार सरकार रिपीट हो ही जाएगी। एक तो सरकार को यक़ीन था कि उसने अच्छा काम किया है, फिर चुनाव के दौरान उसने इंडक्शन चूल्हों से लेकर और भी कई कुछ देने जैसे लोक लुभावने वादे किए थे। साथ ही कांग्रेस भी अंतर्कलह से जूझ रही थी।
मगर जब चुनाव के नतीजे आए तो परिणाम कांग्रेस के पक्ष में रहा। कुछ समय पहले तक जिन वीरभद्र के पार्टी छोड़ने की चर्चा हो रही थी, उन्होंने अपने दम पर हिमाचल में कांग्रेस की सरकार बना ली। लेकिन यह सब हुआ कैसे? राजनीति पर नज़र रखने वालों को याद होगा कि चुनाव से ठीक पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के बेटे और हमीरपुर के सांसद अनुराग ठाकुर ने कुछ ऐसा किया था, जो पूरे हिमाचल में चर्चा का विषय बन गया था। उन्होंने एबीपी न्यूज़ के कार्यक्रम ‘कौन बनेगा मुख्यमंत्री’ के दौरान वीरभद्र सिंह को अप्रत्यक्ष तौर पर बंदर कह दिया था।
हमीरपुर में टीवी का कार्यक्रम हो रहा था। इस बीच कांग्रेस की एक कार्यकर्ता ने हाथ में बैनर पकड़ा था जिसमें बंदरों के क़हर से फसलों की बर्बादी की ज़िक्र था और आरोप लगाया गया था कि धूमल सरकार के दौरान कृषि करना भी मुश्किल हो गया है। इस महिला ने साथ में बंदर का एक सॉफ़्ट टॉय भी पकड़ा हुआ था। कार्यक्रम के होस्ट दीपक चौरसिया ने बंदर का यह खिलौना लिया और अनुराग ठाकुर के सामने ले जाकर पूछा कि ये क्या है।
अनुराग ठाकुर का जवाब था- ये वही बंदर है जिनकी शक्ल राजा वीरभद्र सिंह जी से मिलती है। वीडियो देखें:-
वैसे तो यह मामूली और सामान्य सा व्यंग्यात्मक कॉमेंट लगता है मगर इसका खामियाजा पूरी बीजेपी को भुगतना पड़ा। ये वो दौर था जब सोशल मीडिया का चलन इतना अधिक नहीं था और न ही वॉट्सऐप इतना यूज होता था कि किसी घटना का वीडियो वायरल हो। मगर जिस किसी ने इस कार्यक्रम का सीधा प्रसारण देखा था, उसे यह टिप्पणी पसंद नहीं आई थी। लोगों ने यह बात एक-दूसरे को बताई और धीरे-धीरे पूरे प्रदेश में चर्चा होने लगी कि ‘अनुराग ठाकुर ने वीरभद्र सिंह को बंदर कहा है।’
हिमाचल प्रदेश के ऊपरी इलाक़ों, जहां वीरभद्र सिंह का ख़ासा प्रभाव है, में बीजेपी के ख़िलाफ़ माहौल बन गया कि सीएम के बेटे ने ‘राजा साहब’ को बंदर कह दिया है। इस इमोशनल लहर का प्रसार मैदानी इलाक़ों में भी हुआ और यहाँ तक कि बीजेपी से जुड़े लोग भी कहने लगे कि यह अनुराग ठाकुर ने ठीक नहीं किया। नतीजा यह रहा कि इस वाक़ये ने इमोशंस में बहने वाली हिमाचल प्रदेश की जनता के वोटों पर भी असर डाल दिया। मतदाताओं ने कहा कि राजनीतिक विरोध और तनातनी अपनी जगह है मगर इस तरह की टिप्पणियाँ शोभा नहीं देतीं।
नतीजा यह हुआ कि जो बीजेपी सत्ता रिपीट करने की ओर बढ़ती दिख रही थी, वह मामूली से घटनाक्रम से बैकफ़ुट पर आ गई। वीरभद्र सत्ता में आ गए।
सात साल बाद फिर वैसा ही विवाद
ये तो हुई 7 साल पहले की बात। अब हुआ यह है कि अनुराग ठाकुर का एक वीडियो चर्चा है जिसमें वह पार्टी के नए प्रदेशाध्यक्ष की ताजपोशी में शामिल होने शिमला आए थे। वीडियो को देखें तो पता चलता है कि वह मंगल पांडे से मिले, आगे सीएम खड़े थे तो उन्हें नज़रअंदाज़ किया और सीधे डॉक्टर बिंदल के गले लग गए। ऐसा तब हुआ जबकि सीएम जयराम हाथ आगे बढ़ा चुके थे।
यहाँ तक कोई भी कह सकता है कि जोश में ऐसा हो गया हो और बिंदल से गले मिलने की उत्सुकता में सीएम नज़र न आए हों। मगर सवाल उठाए जा रहे हैं कि बिंदल से गले मिलने के बाद अनुराग ने सीएम की आँखों में आँखें मिलाए बग़ैर नमस्कार कहा और अनमने ढंग से हाथ मिलाकर अपनी सीट की ओर बढ़ गए।
इस घटनाक्रम को लेकर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। कुछ लोगों का कहना है कि यह प्रोटोकॉल का उल्लंघन है। कुछ का कहना है कि अनुराग ने जानबूझकर सीएम को नज़रअंदाज़ किया। जितने भी लोगों ने वीडियो देखा, उनका कहना है कि बेशक बाद में अनुराग ने हाथ मिला लिया मगर वह सिर्फ़ औपचारिकता थी क्योंकि सीएम ने उनका हाथ थामा ही था कि वह अपनी सीट की ओर बढ़ गए।
लोग इसे लेकर कड़ी प्रतिक्रिया दे रहे हैं। कांग्रेस से लेकर बीजेपी तक के नेताओं का कहना है कि अनुराग का यह आचरण ठीक नहीं था। यहाँ तक कि प्रेम कुमार धूमल को हराने वाले सुजानपुर से कांग्रेस के विधायक राजेंद्र राणा ने भी अनुराग के व्यवहार की आलोचना की है। अनुराग से ऐसा गलती से हुआ या जानबूझकर किया, इस पर सिर्फ़ क़यास लगाए जा सकते है। ऐसा जानने का कोई तरीक़ा नहीं है कि इस घटना के पीछे क्या था। मगर उस दिन पूरे घटनाक्रम को देखने वाले पत्रकारों का कहना है कि अनुराग ने पहले भी सीएम को इग्नोर किया और बाद में उनके भाषण के दौरान फ़ोन पर बात करते दिखे।
अनुराग का इस तरह के विवादों में फँसना नई बात नहीं है। जब जेपी नड्डा केंद्र की पिछली सरकार (2014) में मंत्री पद के लिए चुने गए तो सबने उन्हें बधाई थी मगर अनुराग ठाकुर की ओर से ट्वीट नहीं किया गया था। बाद में वह एम्स निर्माण को लेकर खुलकर तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा पर निशाना साधते रहे थे। अब यह नई घटना अनुराग के विवादों की लिस्ट में शामिल हो गई है।
अनुराग ठाकुर युवाओं के बीच लोकप्रिय रहे हैं और धर्मशाला क्रिकेट स्टेडियम को युवा उनकी उपलब्धियों में शामिल करते रहे है। भले ही उनकी यह उपलब्धि बतौर क्रिकेट प्रशासक है, बतौर सांसद नहीं। बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो कहते हैं कि अनुराग एक दिन हिमाचल के सीएम बन सकते हैं। मगर जिस तरह की ख़बरों को लेकर अनुराग चर्चा में रहते हैं, उससे उनके प्रशंसकों को झटका ज़रूर लग सकता है। क्योंकि हिमाचल प्रदेश में कोई भी नेता तभी अपना क़द बढ़ा पाया है, जब वह विवादों से दूर रहा है।
कुल मिलाकर शिमला वाली घटना से एक बार फिर अनुराग को लेकर वैसा माहौल बनता दिख रहा है, जैसा 2012 में बना था। बंदर वाले घटनाक्रम का नतीजा था कि उसके बाद प्रेम कुमार धूमल का फिर सीएम बनना संभव नहीं हो पाया क्योंकि 2017 के चुनावों में तो वैसे भी वह हार गए। हालाँकि, इस हार के लिए भी लोग उनके छोटे बेटे अरुण ठाकुर की ओर से वीरभद्र सिंह पर किए गए प्रहारों को ज़िम्मेदार मानते हैं।
हिमाचल प्रदेश जैसे छोटे से प्रदेश में लोग इन छोटी-छोटी बातों को ध्यान में रखते हैं। हिमाचल के लोगों के लिए राजनीति में विकास मुद्दा नहीं है, करप्शन मुद्दा नहीं है, उनके लिए मायने रखता है नेताओं का आचार-व्यवहार। पिछड़े इलाक़ों की कम जागरूक जनता को छोड़ दें तो बाक़ी हिमाचल के लोग कभी ऐरोगेंट नेताओं को पसंद नहीं करते और यह बात छिपी हुई नहीं है। उदाहरण के लिए सतपाल सत्ती अगर सोचते होंगे कि जब प्रदेश में पार्टी की सरकार बन गई तो उनके अपने इलाक़े की जनता ने उन्हें क्यों हरा दिया तो एक बार उन्हें अपने बयानों पर नज़र डालनी चाहिए।
ऐसी बातें, ऐसा व्यवहार अपने समर्थकों की तालियाँ और वाहवाही तो बटोर सकता है मगर संवेदनशील जनता की नज़रों में सम्मान को कम कर देता है। हिमाचल प्रदेश में कभी सरकार रिपीट इसीलिए नहीं हुई क्योंकि वे सत्ताधारी नेताओं की हेकड़ी को पसंद नहीं करते और मौक़ा मिलते ही पाँच साल बाद उन्हें आसमान से ज़मीन पर ले आते है।
इसलिए नेताओं को अपनी छवि को लेकर जागरूक रहना चाहिए और सचेत रहना चाहिए कि भूलकर भी कोई ऐसी चूक न हो जिससे कि ग़लत संदेश चला जाए। उदाहरण के लिए अगर वह घटना महज़ चूक थी तो अब तक अनुराग ठाकुर की ओर से बयान आ जाना चाहिए था कि बे-सिर पैर बातें न करें, ऐसा कुछ नहीं है, मैं जयराम जी का सम्मान करता हूँ। मगर ऐसा नहीं हुआ और न ही शायद उनकी ओर से इसकी ज़रूरत समझी गई। इससे स्पष्ट हो जाता है कि किसका इरादा क्या था।
राजनीति में विरोध होना, एक दूसरे से टकराव होना सामान्य सी बात है। इसके लिए एक-दूसरे को रणनीति से घेरना, बैकफ़ुट पर डालना स्वाभाविक है। मगर यह टकराव जनता की नज़रों में उजागर होना या इसके कारण जनता के हित प्रभावित होना ठीक नहीं।
सही तरीक़ा है- संयम और धैर्य रखकर उचित समय का इंतज़ार करना और फिर अपना क़द इतना बढ़ाना कि आपके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी आपके सामने बौना हो जाए और फिर आप इस स्थिति में हों कि आपका एक कदम उसे राजनीति में अप्रासंगिक कर दे। एक समय प्रदेश में अपनी ही सरकार से त्रस्त होकर मंत्री पद से इस्तीफ़ा देकर केंद्र में संगठन का काम सँभालने गए जेपी नड्डा इसका उदाहरण हैं जो आज सबसे बड़ी पार्टी के सर्वोच्च पद पर बैठे हैं।
इसलिए अनुराग क्या, किसी भी नेता को राजनीति में लंबे समय तक टिकना है तो ख़ुद परिपक्वता लानी चाहिए। राजनीति में बच्चों की तरह रूठने और दूरदर्शी सोच रखे बिना प्रतिक्रियावादी कदम उठाने का मतलब है अपने पाँव पर ख़ुद कुल्हाड़ी मारना।
(लेखक लंबे समय से हिमाचल प्रदेश से जुड़े विषयों पर लिख रहे हैं, उनसे kalamkasipahi @ gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है)
ये लेखक के निजी विचार हैं
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