शिमला।। जयराम सरकार के मंत्रिमंडल में जल्द ही परिवर्तन देखने को मिल सकता है। इसके तहत न सिर्फ कुछ मंत्रियों के प्रभार बदले जा सकते हैं बल्कि कम से कम एक मंत्री की छुट्टी भी हो सकती है। सरकार में होने जा रहे इस कथित फेरबदल की जानकारी रखने का दावा करने वाले बीजेपी संगठन के कुछ सूत्रों का कहना कि सरकार का एक साल पूरा होने वाला है, ऐसे में मंत्रियों के काम और जनता के बीच उनके प्रभाव के आधार पर यह फैसला लिया जाना है।
कांगड़ा में फेरबदल?
गौरतलब है कि कांगड़ा से इस समय चार मंत्री हैं मगर बावजूद इसके यहां से मंत्रियों के आपसी मतभेदों की खबरें तो आती ही रहती हैं, कुछ मंत्रियों की जनता के बीच छवि भी खराब हुई है। इससे सीधे-सीधे सरकार की इमेज पर भी असर पड़ रहा है। सरकार के लिए चिंता की बात यह है कि जिले से तीन मंत्री होने के बावजूद सरकार की नीतियां और योजनाएं जनता तक सही से पहुंच नहीं रही और लोगों में असंतोष की भावना पैदा हो रही है। जिले में निकाय स्तर पर हुई फेरबदल भी पार्टी के लिए असहज करने वाली रही है।
सूत्रों का कहना है कि इन सब बातों के कारण आबादी और विधानसभा सीटों के हिसाब से प्रदेश के सबसे बड़े जिले कांगड़ा से किसी एक मंत्री को बदला जा सकता है। हालांकि यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि अगर कांगड़ा से एक मंत्री को हटाया जाता है तो उसकी जगह कांगड़ा से ही नया मंत्री बनाया जाएगा या कहीं और से। जाहिर है, सरकार नहीं चाहेगी कि पहले से असंतुष्ट दिख रहे कांगड़ा जिले से एक मंत्री कम करके लोगों को और नाराज किया जाए। ऐसे में नया मंत्री यहीं से बनेगा, मगर यह स्पष्ट नहीं है कि किसे यह मौका मिलेगा।
लोकसभा चुनाव का असर
सूत्रों का यह भी कहना है कि मंत्रिमडल में संभावित इस फेरबदल में लोकसभा चुनाव का भी असर पड़ेगा। करप्शन के आरोपों का समान कर रहे शिमला के सांसद वीरेंद्र कश्यप की जगह अगर बीजेपी आलाकमान हिमाचल कैबिनेट में मौजूद किसी मंत्री को लोकसभा चुनाव लड़ने को कहा जाता है तो उसकी जगह किसी और को मंत्री बनाया जाएगा।
चूंकि यह फैसला आलाकमान पर निर्भर करेगा, ऐसे में यहां खुद से कोई बदलाव नहीं किया जाएगा। इसी तरह के हालात कांगड़ा में भी बन सकते हैं। अगर किसी मंत्री को लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए कहा जाएगा तो राज्य सरकार के लिए उसकी जगह नए मंत्री की नियुक्ति करने की राह आसान हो जाएगी।
इस बीच सूत्रों का यह भी कहना है कि मंत्रियों के प्रभार भी बदले जा सकते हैं। यह फैसला भी इस आधार पर लिया जाएगा कि उन्होंने अपने मौजूदा विभागों में क्या नया किया और उन्होंने अपने काम को कितनी गंभीरता से लिया। गौरतलब है कि कुछ मंत्रियों का फीडबैक ऐसा है कि न तो वे अपने महकमे में कुछ नया कर पा रहे हैं, न ही जनता के बीच उनकी पहुंच है। ऐसे में उन्हें वॉर्निंग दी जा सकती है या फिर महकमा बदला जा सकता है। ऐसा इसलिए भी किया जा रहा है ताकि ऐसे मंत्रियों की सुस्ती का खामियाजा पार्टी को लोकसभा चुनाव में न भुगतना पड़े।