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कम जगह में कई फल उगाकर पिता-पुत्र की जोड़ी ने पेश की मिसाल

प्रशांत सेहता।। एक तरफ राज्य के युवा नौकरी की तलाश में बाहरी राज्यों की तरफ पलायन कर रहे है। वहीं कुछ ऐसे युवा बागवान है जो बागवानी के क्षेत्र में अपनी मेहनत, लगन और हुनर के दम पर अपनी अलग पहचान बना रहे है। नावर क्षेत्र के कशैणी गांव से संबंध रखने वाले युवा बागवान कृष जनारथा ने भी विरासत में मिली बागवानी को आधुनिक ढंग से अपनाकर अनपी विशेष पहचान बनाई है।

कृष को बागवानी पिता प्रेम जनारथा से विरासत में मिली है। लेकिन चार साल पहले जब उन्होने 21 बरस की उम्र में बागीचे संभाले थे तब वह बिल्कुल खस्ताहालत में थे। इस हालत में साठ साल पुराने बागीचे से पैदावार लेना मुश्किल था। क्वॉलिटी फ्रूट लेना इससे भी कठिन। लिहाज़ा कृष ने आधुनिक बागवानी की तरफ कदम बढ़ाया।

उन्होने पुराने पौधों को उखाड़कर उनकी जगह क्लोनल रूटस्टॉक लगाए और नए पौधों को टाॅप ग्राॅफ्ट कर उन्हें आधुनिक स्पर किस्मों में बदल दिया। उन्होने पिछले साल इटली से एम 9 रूटस्टाक पर सेब की किंग राॅट और गाला किस्मों के दो सौ पौधे मगवाकर अपने बागीचे में लगाए। इन पौधों पर इस बार फसल भी तैयार हुई है। आधुनिक तकनीक पर आधारित यह बागीचा नावर क्षेत्र के बागवानों में चर्चा का विषय बना हुआ है। गांव व आस पास के क्षेत्र के युवा बागवान कृष की मेहनत और लगन से प्रभावित होकर उनसे आधुनिक बागवानी के गुर सिखने उनके बगीचे पहुंच रहे हैं।

कृष के बागीचे में सेब की 120 से अधिक किस्में लगी हुई है। इनमें से राॅयल डेलिश्यिस के अलावा विदेशों से आयातित किंग राॅट, स्कारलेट स्पर टू, जैरोमाइन, रेडविलौक्स, सुपर चीफ़, ग्रेनी स्मिथ, गाला और फ्यूजी किस्मों पर व्यावसायिक तौर पर काम कर रहे है।

बागीचे में एक साथ कई तरह के फलदार पौधे लगे हैं।

कृष को रिपलंटेशन वाली जगहों पर सेब के नए बागीचे तैयार करने में कई दिक्कते पेश आई। सबसे ज्यादा नुकसान नए पौधों की जडों पर फंगस लगने से हुआ जिसके चलते पौधों में जड़ सड़न से कई पौधे मर गए या ठीक से ग्रोथ नहीं ले पाए। आधुनिक तरीकों और रिप्लांटेशन वाली जगहों के लिए उप्युक्त रूटस्टाॅक से उन्होने इस समस्या पर काबु कर लिया।

यंग एंड युनाईटेड ग्रोवर्स एस्सोसिएशन के वित्त सचिव कृष जनारथा का कहना है कि रूटस्टाक पर स्पर किस्में लगाने से पुरानी किस्मों के मुकाबले जल्दी और बेहतर क्वालिटी का उत्पादन लिया जा सकता है। उनका मानना है कि आधुनिक बागवानी कर बागीचों में अलग अलग किस्मों के फल लगाने से भी आमद में दो से तीन गुणा इज़ाफा किया जा सकता है। उनके बागीचे अभी सैंपल दे रहे है लेकिन आमद पुराने बागीचों के जितनी ही है। आगामी तीन से चार सालों में यह बढ़कर दो से तीन गुणा होने की उम्मीद है। कृष पिता प्रेम जनारथा और माता लीला जनारथा को अपनी सफलता का श्रेय देते हैं।

नाशपाती, प्लम और चेरी के बागीचे भी तैयार
कृष ने पुराने बागीचों की जगह पर नाशपाती, चेरी और प्लम के नए बागीचे तैयार किए हैं। यह सभी किस्में विदेशों से मंगवाई गई है और इनमें सैंपल आ गया है। कृष के बागीचे में इन फलों के 1500 से अधिक पौधे तैयार है। इन फलों को भी आधुनिक तकनीक के ज़रिए उच्च सघनता पर लगाया गया है, ताकि कम ज़मीन से अधिक पैदावार ली जा सके। इस समय उनके बागीचे से नाशपाती की 10, प्लम की चार और चेरी की 6 किस्मों का उत्पादन हो रहा है।

(लेखक शिमला के जुब्बल के रहने वाले हैं। बाग़वानी और लेखन में उनकी रुचि है। उनसे prashantsehta89 @ gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)

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