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कमाई के लिए बंदर पकड़ रहे हैं हिमाचल के बेरोजगार युवक

शिमला।।

पूरा हिमाचल आवारा पशुओं और खासकर बंदरों की वजह से परेशान है। ये न केवल फसलों को चौपट कर रहे हैं, बल्कि आए दिन हमला करके बच्चों और महिलाओं के लिए खतरनाक भी साबित हो रहे हैं। सरकार ने बंदरों पर लगाम लगाने के लिए योजना भी चलाई है, मगर यह सफेद हाथी बनकर रह गई है। यानी बंदर तो कम होते दिख नहीं रहे, लेकिन अब तक सरकार बंदर पकड़ने के लिए 336 लोगों को 3 करोड़ 22 लाख रुपये का भुगतान कर चुकी है।

पिछले दिनों विधानसभा में जानकारी देते हुए राज्य के वन मंत्री ने बताया था कि बंदरों के आतंक से छुटकारा दिलाने के लिए ही आवारा बंदरों को पकड़ने की योजना बनाई गई है। यह योजना अक्टूबर 2011 में शुरू की गई थी। उन्होंने कहा था कि बंदरों को पकड़ने के लिए अब तक 336 लोगों को 3.22 करोड़ रुपए का भुगतान किया जा चुका है। 2007 से लेकर अब तक 94,334 बंदरों की नसबंदी भी की जा चुकी है।

सरकारी आंकड़ों का मखौल उड़ा रहे हैं बंदर, अभी भी परेशान हैं किसान

इस हिसाब से देखें तो कुछ लोगों के लिए हिमाचल प्रदेश में बंदर कमाई का जरिया बन गए हैं। वन मंत्री का कहना था कि इस काम में खासतौर से बेरोजगार युवक जुटे हुए हैं। वन्यजीव विभाग नसबंदी के लिए बंदरों को पकड़ने के लिए बंदर 500 रुपए का भुगतान कर रही है।

भले ही किसानों की मुश्किलें कम नहीं हुई हैं, मगर वन्यजीव अधिकारियों का कहना है कि 2013 में बंदरों की गणना में पता चला है कि राज्य में बंदरों की आबादी घट कर 236,000 हो गई है, जबकि 2004 में राज्य में बंदरों की संख्या 319,000 थी। शिमला, सोलन, सिरमौर, बिलासपुर, हमीरपुर, ऊना, मंडी और कांगड़ा जिलों के हजारों किसान बंदरों की वजह से नुकसान उठा रहे हैं। वन्यजीव विभाग का भी अनुमान है कि बंदरों की वजह से 9 लाख किसान प्रभावित हुए हैं।

एक बंदर पकड़ने पर 500 रुपये का भुगतान कर रही सरकार

अधिकारियों का कहना है कि सरकार ने बंदरों की नसबंदी के लिए सात केंद्र स्थापित किए हैं। इनमें से हर केंद्र एक साल में 5 हजार बंदरों की नसबंदी कर सकता है। इसी तरह के दो और केंद्रों की स्थापना करने की योजना है। नर बंदरों की नसबंदी थर्मोकैट्रिक कॉगलेटिव वैसेक्टॉमी और मादा बंदरों की नसबंदी एन्डोस्कॉपिक थर्मोकॉट्रिक ट्यूबेक्टॉमी तकनीक से की जाती है।

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