Site icon In Himachal | इन हिमाचल : In Himachal delivers the latest news, insightful views, and policy analysis in Himachal Pradesh. Join our platform to stay informed and hold politicians and officials accountable as a vigilant civilian watchdog.

वैदिक भारतीय संस्कृति में नारी का स्थान और वर्तमान अवधारणा

भारत में नारी को शक्ति और दुर्गा का प्रारूप माना जाता रहा है इसका एक कारण यह भी हो सकता है की अगर पुरुष के पौरुष की बात की जाए उसके शक्तिशाली व्यकतित्व की बात की जाए उसमें भी माँ  द्वारा  नौ महीने तक बच्चे को गर्भ में रखने और अबोध बालक के रूप में एक पुरुष  का लालन पालन पोषण करने में सब से बड़ा योगदान है।  आज भारतीय समाज में भी इस विषय पर चर्चा चल जाती है की हम महिलाओं को बराबरी पर नहीं ला पाये हैं वर्तमान परिपेक्ष में यह सच भी है परन्तु समाज का एक एलिट क्लास तबका जब द्रौपदी सीता का आदि महान नारियों का उदाहरण देकर यह सिद्ध करने की कोशिश करता है की हम प्राचीन काल से नारी शोषित कर रहे हैं यह भारतीय संस्कृति पर एक मिथ्या आरोप हो सकता है।  हमारे एक पाठक अश्वनी कुमार वर्मा  ने हमें ऐसा ही एक संस्मरण भेजा हैं जिसमे उन्होंने काफी प्रभावी शब्दों में प्राचीन भारत की संस्कृति और नारीवादी सोच को छद्दम एलिट क्लास लोगों के बीच विस्तार से अथ्यों के साथ  परिभाषित किया उन्ही की जुबानी पढ़ें यह लेख। … 
” दिल्ली यूनिवर्सिटी(डीयू) का मिरिंडा हाउस प्रगतिशील महिलाओं के लिए मशहूर हैं| भारत की सबसे सशक्त व जागरूक महिलाएँ यहीं मिलती हैं| एक बार मैंने यहीं की एक महिला को महिला सशक्तिकरण के ऊपर बोलते सुना, हालांकि उन्होने भारतीय महिलाओं की जो समस्याएँ गिनाई ,उससे पूर्णरुपेण सहमत था, उनका कहना था कि भारतीय समाज में एक लड़की को अपनी पसंद का लड़का चुनने का अधिकार नहीं दिया जाता, उसका वस्तुकरण कर दिया है अपने समाज ने, लड़की पढ़ना चाहे तो आज भी बहुत से रोड़े हैं| आदि आदि इत्यादि ! लेकिन तभी उन्होने बोला कि भारत में ये कुरीति यहाँ के संस्कृति के कारण हैं ,जहाँ राम कथा व रामायण का पाठ होगा ,वहाँ महिलाओं के साथ सीता जैसा ही अन्याय किया जाएगा| भारतीय महिलाओं को यूरोपीय महिलाओं की तरह समानता चाहिए|उनका लेक्चर चल रहा था |मुझसे रहा नहीं गया ! 
मैंने उनसे बोला कि आपको मालूम नहीं है क्या कि सीता जी स्वयंवरा थी ? सीता जी ही नहीं ,अपने प्राचीन भारतीय संस्कृति में स्वयंवर के अनेकों उदाहरण हैं| दूसरे वो एक विदुषी महिला थी| इतना ही नहीं अपने देश में गार्गी ,अपाला, घोषा, लोपामुद्रा,निवावरी आदि अनेकों विदुषी महिलाएँ हुई ऋग्वेद में जिनके प्रमाण मौजूद हैं और ये मैं नहीं कहता ,स्वयं वामपंथी इतिहासकारों ने इसे लिखा है|

हो सकता है आप को सीता जी की अग्निपरीक्षा न रास आई हो ,लेकिन आप भूल गयी कि अग्निपरीक्षा के बाद श्रीराम ने उन्हे स्वीकारा तो सही लेकिन समाज की महिलाएँ व्यभिचार में लिप्त होने लगी और उन्होने श्रीराम से न्याय माँगना शुरू किया ये बोलकर जब सालों रावण के पास रहकर आई सीता का वरण राम कर सकते हैं तो हमारे पति हमारा क्यों नहीं ? सीता की पवित्रता जानते हुए भी ,अगाध प्रेम के बावजूद केवल राजधर्म निभाने के लिए राम ने सीता का त्याग किया ! 


दुख: इस बात का है कि अनिर्णय कि स्थिति में भी व्यक्तिगत स्वार्थ से ऊपर निर्णय लेकर भविष्य के लिए राजधर्म की मिसाल कायम करने वाले श्रीराम को अन्यायी कहा जाता है| ये बिल्कुल ठीक हैं कि वर्तमान भारतीय समाज में महिला की स्थिति ठीक नहीं हैं ,वो भी इसीलिए क्योंकि यहाँ पाखंडी बहुत हैं ,श्री राम,रामायण में आस्था रखते हैं , लेकिन अपनी ही बेटे -बेटी को कसम खिला देते हैं कि यदि अपनी मर्जी से विवाह किया,तो एक रिश्ते कि कीमत तुम्हें सभी रिश्तेदारों व नातेदारों के रिश्ते से चुकनी होगी !माँ-बाप तुम्हारे लिए मर जाएँगे ,कभी मुँह नहीं देखेंगे आदि आदि ! नतीजा -प्रेम किसी से ,शादी किसी से और जीवन नर्क ! यहाँ रामायण सिर्फ सिधान्त में है ,व्यवहार में नहीं ! लेकिन जिस पश्चिमी संस्कृति कि हिमायत आप कर रही हैं ,वहाँ क्या स्थिति है? एक ही महिला के ज़िंदगी में 5 विवाह और हर पति से बच्चे और सारे बच्चो का पालन पोषण कान्वेंट (यानि अनाथालय जहाँ शिक्षा दीक्षा,देख रेख होती है) में ? क्या इसमें आपको अच्छाई दिख रही है ? संपन्नता के बावजूद भी कान्वेंट कल्चर के कारण ही यूरोप में अपराध दर किसी भी विकासशील देश से ज्यादा है| सैद्धांतिक रूप से अपनी संस्कृति तो यही है कि विवाह के रिश्ते अपनी मर्जी से वरण हो और एक बार वरण हो जाये तो आजीवन निभाना है, जबकि यूरोप में अपनी मर्जी से वरण के बावजूद भी रिश्ते में केवल भोगवाद होता है ,एक से मजा खत्म तो दूसरा ढूँढ लो ! भारत स्वतन्त्रता में यकीन करता है और यूरोप स्वछंदता में !

अतः हमें किसी से सीखने कि जरूरत नहीं है ,बस केवल पाखंड से बाहर निकलकर सनातन संस्कृति के वास्तविक मूल्यों को वरण करना है, नारी सशक्तिकरण इसी में निहित है “

लेखक : अश्वनी कुमार वर्मा
लेखक नेशनल थर्मल पावर कारपोरेशन (NTPC) के विध्यांचल प्लांट में प्रबंधक के पद पर सेवा दे रहे हैं

Exit mobile version